बिना न्यायालय की डिक्री के हिन्दू विवाह विच्छेद संभव नहीं है।
समस्या-
प्रियंका जैन ने उदयपुर, राजस्थान से समस्या भेजी है कि-
मेरी शादी नवंबर 2016 में हुई थी शादी के कुछ दिनों बाद ही मुझे ससुराल में मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताण्डित किया जाने लगा। एक दो महीने तक तो बर्दाश्त किया लेकिन फिर मैं ने अपने माता पिता को यह बात बताई और शादी के 5 महीने बाद अलग हो जाने का निर्णय लिया। आपसी रज़ामंदी एवं सामाजिक स्तर पर स्टाम्प वगैरह लिखवाकर हम अलग हो गए। न्यायालय का इस में कोई योगदान नहीं था। अब घरवाले मेरे लिए लड़का ढूंढ रहे हैं, मुझे इस बात का डर है कि मेरा तलाक वैध है या नहीं? कहीं इस तरह शादी कर के मैं अपने होने वाले पति की मुसीबत तो नही बढ़ा रही हूँ? डिक्री क्या है? इसका होना आवश्यक है क्या? कृपया उचित मार्गदर्शन करें।
समाधान-
आप जैन हैं और आप पर हिन्दू विवाह विधि प्रभावी है। हिन्दू विवाह विधि में कोई भी विवाह विच्छेद बिना न्यायालय के निर्णय और डिक्री के संभव नहीं है। आपसी समझौते से आप लोग अलग हो गए हैं लेकिन वैवाहिक संबंध वैध रूप से समाप्त नहीं हुआ है। अभी भी कानूनी रूप से आप के पूर्व पति ही आप के पति हैं और आप उन की पत्नी हैं। यदि आप विवाह विच्छेद के न्यायालय के निर्णय व डिक्री के बिना विवाह करती हैं तो वह पूरी तरह अवैध होगा। क्यों कि इस के बाद आप के नए पति से यौन संबंध स्थापित होंगे जो आप के पूर्व पति की सहमति के बिना होंगे तो आप के नए पति भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अंतर्गत दोषी माने जाएंगे। इस कारण आप के लिए यह आवश्यक है कि आप न्यायालय से विवाह विच्छेद का निर्णय व डिक्री प्राप्त करें।
न्यायालय का निर्णय कई पृष्ठ का होता है। उस में विस्तार से दोनों पक्षों के अभिकथन, साक्ष्य व उन की विवेचना के साथ निर्णय अंकित होता है। जब कि डिक्री किसी भी दीवानी (सिविल) मामले में हुए निर्णय की प्ररूपिक अभिव्यक्ति है जिस में वाद के पक्षकारों के अधिकारों को प्रकटीकरण होता है। किसी विवाह विच्छेद के मामले में डिक्री दो पृष्ठ की होगी जिस में पक्षकारों का नाम पता लिखा होगा तथा यह लिखा होगा कि इन दोनों के बीच विवाह विच्छेद हो चुका है। कहीं भी आप को बताना हो कि आप का विवाह समाप्त हो गया है तो दो पृष्ठ की इस डिक्री की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करना पर्याप्त होगा।
किसी भी मामले में सामान्य रूप से विवाह के एक वर्ष तक विवाह विच्छेद के लिए आवेदन कोर्ट में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। इस कारण आप के मामले में भी नवंबर 2017 में पूरा एक वर्ष व्यतीत हो जाने तक यह आवेदन प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। यदि दोनो पक्ष सहमत हों तो जिस समय आप के विवाह को एक वर्ष पूर्ण हो आप और आपके पति मिल कर सहमति से विवाह विच्छेद के लिए न्यायालय के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करें। आवेदन प्रस्तुत करने के छह माह बाद न्यायालय से विवाह विच्छेद का निर्णय व डिक्री मिल जाएगी। यदि दोनो पक्ष सहमति से तलाक के लिए अर्जी प्रस्तुत नहीं करते तो फिर आप को अकेले किसी आधार पर संभवतः क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद के लिए आवेदन प्रस्तुत करना होगा। उस में विवाह विच्छेद में समय लग सकता है।
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- एक-तरफा डिक्री कैसे अपास्त हो सकती है?
- विवाह विच्छेद की डिक्री सक्षम न्यायालय से प्राप्त किए बिना दूसरा विवाह वैध नहीं होगा
- स्त्री से उसका स्त्री-धन वापस प्राप्त करने का विचार त्याग दें।
- पति/पत्नी की नपुंसकता के कारण विवाह का उपभोग न हो तो विवाह को अकृत किए जाने की डिक्री प्राप्त की जा सकती है।
- विवाह विच्छेद का आवेदन विवाह अथवा अंतिम सहनिवास के स्थान पर ही प्रस्तुत किया जाएगा।
- तलाक का आधार हो तो दूसरे पक्ष की सहमति की जरूरत नहीं।
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भोत अछि जानकारी वकील साहब जी