बैंकों की उपभोक्ताओं के प्रति जिम्मेदारी और सूचना का अधिकार अधिनियम
| रोमी ने पूछा है – – –
क्या बैंक की आम लोगों के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं होती है? मैं जब भी बैंक जाता हूँ वहाँ के लोग हमेशा हम से गलत और गंदा व्यवहार करते हैं। क्या बैंक के कर्मचारियों के लिए भी कोई कानून होते हैं? क्या बैंक में सूचना अधिकार नियम लागू होता है अगर हाँ तो किस हद तक?
उत्तर – – –
रोमी भाई!
बैंक की आम लोगों के प्रति जिम्मेदारी की तो मैं बात नहीं करूंगा। क्यों कि किसी बैंक की राह चलते व्यक्ति या ऐसा व्यक्ति जो कभी बैंक गया ही नहीं उस के प्रति क्या जिम्मेदारी हो सकती है। मुझे लगता है कि आप यह जानना चाहते हैं कि बैंक की उस के उपभोक्ताओं के प्रति क्या जिम्मेदारी होती है? यदि आप का प्रश्न यही है तो उस का उत्तर भी यही है कि एक सेवा प्रदाता की जो जो जिम्मेदारियाँ हो सकती हैं वे सब एक बैंक की भी होती हैं। जिन में यह भी सम्मिलित है कि बैंक के कर्मचारियों को उन से सद्व्यवहार करना चाहिए। उन से जो जानकारी मांगी जाए वह उन्हें देना चाहिए। यदि कर्मचारी गलत और गंदा व्यवहार करते हैं तो यह सेवा में गंभीर त्रुटि है और कर्मचारी के लिए एक गंभीर दुराचरण भी है। आप इस तरह के व्यवहार की शिकायत बैंक के उच्चाधिकारियों को कर सकते हैं। आप की शिकायत के आधार पर संबंधित कर्मचारी के विरुद्ध अवश्य ही अनुशासनिक कार्यवाही की जाएगी। यदि आप को इस व्यवहार से कोई शारीरिक या मानसिक या दोनों तरह का संताप हुआ हो तो आप जिला उपभोक्ता समस्या निवारण मंच को शिकायत कर समुचित हर्जाने की मांग कर सकते हैं।
समस्या यह है कि हम गंदे और गलत व्यवहार का उत्तर गाली-गलौच से देते हैं और हमारा जो अहम् आहत होता है उस की तुष्टि हो जाती है। हम दयावान भी बहुत हैं सोचते हैं कि गाली दे कर हमने उसे दंडित कर ही दिया है, बेचारे की नौकरी में क्यूँ पंगा किया जाए। लेकिन कर्मचारी को इस से कोई सबक नहीं मिलता। उस ने अनुशासनहीनता की है तो निश्चित ही उसे अनुशासनिक कार्यवाही के लिए तैयार रहना चाहिए। लेकिन जब शिकायत ही नहीं होती है तो अनुशासनिक कार्यवाही कहाँ होगी? कोई शिकायत करता भी है और उस पर अनुशासनिक कार्यवाही होती भी है तो संबंधित कर्मचारी उस के पैर जा पकड़ता है। अनेक लोगों से आप पर सिफारिशें पहुँचाता है। अपने बाल-बच्चों पर रहम की भीख मांगता है। आप फिर द्रवित हो उठते हैं। आप या तो अनुशासनिक कार्यवाही में बयान देने नहीं जाते, या फिर उस के बहुत पहले ही अनुशासनिक अधिकारी को लिख देते हैं कि उन के बीच गलतफहमी हो गयी थी जिस के कारण आप ने शिकायत कर दी। अब गलतफहमी दूर हो गई है इस लिए आप कोई कार्यवाही नहीं चाहते।
अब आप ही बताइए कि इन हालातों में कैसे कर्मचारियों को अनुशासन में रखा जा सकता है। इस के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जनता में जागरूकता होनी चाहिए कि व
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बहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद। दिवेदी जी जानती हूँ आप बहुत दिनों से व्यस्त हैं इस लिये मेरे ब्लाग पर नही आ सके मगर जब भी मै कोई कहानी पोस्ट करती होऔँ तो आपकी प्रतिक्रिया के बिना मुझे अधूरी सी लगती है। क्यों कि आप प्रोत्साहन के साथ उसकी कमियाँ भी बताते हैं। इस लिये इस बार कहानी पोस्ट कर के मुझे सन्तुष्टी नही हुयी। धन्यवाद।
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बहुत सही सलाह दी , आज ही मै किसी की नोकरी को खतरे मै डाल कर आया हुं, कारण यही था, लेकिन वो डा० के कलिनिक मे हादसा हुआ.धन्यवाद