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मिथ्या अपमानजनक कथन के लिए अपराधिक व मुआवजे के लिए दीवानी मुकदमा किया जा सकता है।

Desertedसमस्या-

दिल्ली से विनय पाण्डे ने पूछा है –

मेरे चाचा की लड़की की शादी होने वाली थी और मेरे एक रिश्तेदार ने लड़के से जा कर कहा कि लड़की ने पहले ही किसी के साथ कोर्ट मैरिज कर रखी है। इस से मेरे चाचा की लड़की की शादी नहीं हो सकी रिश्ता टूट गया। जब कि ऐसा कुछ भी नहीं था। क्या मैं इस के लिए उस रिश्तेदार पर मानहानि का दावा कर सकता हूँ जिस ने ये झूठी बात फैलाई थी?

समाधान-

दि आप यह प्रमाणित कर सकते हैं कि जिस रिश्तेदार के खिलाफ आप मुकदमा करना चाहते हैं उसी रिश्तेदार ने स्वयं यह बात किसी व्यक्ति से कही थी और उस व्यक्ति ने यह बात आप के चाचा की लड़की के होने वाले ससुराल तक यह बात पहुँचाई है तो आप निस्संकोच मानहानि के लिए अपराधिक व मुआवजे के लिए दीवानी न्यायालयों में कार्यवाही कर सकते हैं। इस बात को प्रमाणित करने के लिए आप को ऐसे व्यक्ति की गवाही करानी होगी जिस के सामने यह बात उस रिश्तेदार ने किसी व्यक्ति को कही हो और फिर जिसे यह बात कही हो और फिर यह बात किसी तरह आप के चाचा की लड़की के होने वाले ससुराल पहुँची हो। आप जिस पर आरोप लगा रहे हैं उस से बात के कहने से ले कर चाचा की लड़की के होने वाले ससुराल तक पहुँचने की हर कड़ी को आप को गवाहियों से साबित करना होगा।

मारी राय है कि यदि आप इन सारी कड़ियों को प्रमाणित करने में सक्षम हों तो एक विधिक नोटिस उस व्यक्ति को किसी वकील के माध्यम से भिजवाएँ जिस में यह संदेश दें कि उस व्यक्ति के द्वारा मिथ्या और अपमानजनक बात कहने और वह चाचा की लड़की के होने वाले ससुराल पहुँचा देने से न केवल लड़की, अपितु उस के सारे परिवार का घोर अपमान हुआ है और समाज में प्रतिष्ठा को आघात पहुँचा है और रिश्ता टूट गया है। वे उस लड़की और आप के चाचा को अमुक राशि मुआवजा के बतौर दें, साथ ही इस कृत्य के लिए न केवल सार्वजनिक रूप से अपनी गलती को स्वीकार करें अपितु सार्वजनिक रूप से क्षमा भी मांगें, अन्यथा उस के विरुद्ध दंड दिलाने हेतु अपराधिक और दुष्कृत्य विधि में मुआवजा प्राप्त करने के लिए दीवानी मुकदमा चलाया जाएगा।  यह विधिक नोटिस देने के बाद नोटिस की अवधि व्यतीत हो जाने पर आप अपराधिक व दीवानी मुकदमा चला सकते हैं। ध्यान रखें कि दोनों मामलों में समयावधि निश्चित है अवधि समाप्त हो जाने के बाद आप दोनों ही कार्यवाही नहीं कर सकेंगे। अपराधिक मामलों में यह अवधि अपराध घटित होने तीन वर्ष तक की है वहीं दीवानी मामलों में यह अवधि एक वर्ष तक की ही है।