लॉर्ड कॉर्नवलिस के गवर्नर बनने के समय अपराधिक न्याय प्रशासन में पूरी अराजकता थी। दंड न्यायालयों में शोषण, दमन और भ्रष्टाचार व्याप्त था। जेलें अपराधियों से भरी पड़ी थीं। दोषी व्यक्ति बच जाते थे और निर्दोष व्यक्तियों को सजा हो जाती थी। दांडिक व्यवस्था आम लोगों की लूटखसोट का माध्यम बन गई थी। लॉर्ड कॉर्नवलिस ने गवर्नर बनने के उपरांत इस व्यवस्था का गंभीर रूप से अध्ययन किया और पाया कि इसे आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है। न्यायालय प्रणाली में सुधार और मुस्लिम दंड विधि के दोषों के उन्मूलन हेतु उस ने 1790 में एक नई योजना तैयार की जिसे 3 दिसंबर 1790 को लागू किया गया। इस योजना के अंतर्गत सदर निजामत अदालत में नायब नाजिम के पद और मुफस्सल निजामतों को समाप्त कर दिया गया। नयी व्यवस्था में न्यायालयों की स्थिति पहले से भिन्न हो गई।
सदर निजामत अदालत
सदर निजामत अदालत के मुख्यालय को मुर्शिदाबाद से हटा कर कलकत्ता ले जाया गया। नायब नाजिम के स्थान पर गवर्नर जनरल और उस की परिषद के सदस्यों को ही सदर निजामत अदालत के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त किया। उन की सहायता के लिए मुस्लिम विधि में पारंगत एक मुख्य काजी और दो मुफ्ती नियुक्त किए। सदर निजामत अदालत मुख्यतः अपील अदालत थी। उसे आवश्यक मामलों में दंड को निलंबित करने अथवा दंड को कम करने या दया याचिका को गवर्नर जनरल या उस की परिषद को प्रेषित करने की शक्ति प्रदान की गई। सदर निजामत अदालत अपीलों का निर्णय विचारण मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट, सर्किट न्यायालय की कार्यवाही और बचाव के लिखित अभिवचनों के आधार पर किया जाता था। अदालत की समस्त कार्यवाही का अभिलेख रखा जाता था। वकील अथवा पक्षकार को अदालत में बहस करने की अनुमति नहीं थी। सदर निजामत अदालत को न्यायिक कार्यवाही के अतिरिक्त पुलिस व्यवस्था के निरीक्षण का अधिकार भी दिया गया था।
सर्किट न्यायालय
लॉर्ड कॉर्नवलिस ने मुफस्सल निजामत अदालतों को समाप्त कर समस्त क्षेत्र को चार खंडों कलकत्ता, मुर्शिदाबाद, ढाका और पटना में विभाजित कर दिया और प्रत्येक खंड में एक-एक सर्किट न्यायालय की स्थापना की। प्रत्येक न्यायालय में कंपनी द्वारा अनुबंधित दो-दो अंग्रेज अधिकारियों को न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और उन की सहायता के लिए काजी और मुफ्ती की नियुक्ति की गई जो विधि की व्याख्या करने के साथ ही विभिन्न मामलों में फतवा जारी करते थे। उन के फतवे के अनुसार ही दंडादेश दिया जाता था और उस का प्रवर्तन किया जाता था। मुस्लिम विधि अधिकारियों को स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करने के अधिकार के साथ ही उन्हें सुरक्षा प्रदान की गई थी। उन्हें अक्षमता और अवचार का दोषी पाने पर ही सपरिषद गवर्नर के द्वारा पदच्युत किया जा सकता था। सर्किट न्यायालय चल-न्यायालय के रूप में कार्य करते थे। वे वर्ष में चार बार कलकत्ता में, वर्ष में दो बार प्रत्येक जिले में और माह में एक बार प्रान्तीय केंद्र में न्यायिक कार्य करते थे। ये न्यायालय संबंधित जिलों का दौरा कर के अभियोगों का विचारण करते थे। वे मृत्युदंड, आजीवन कारावास और विधि अधिकारियों से असहमति के मामलों पर अंतिम निर्णय नहीं कर सकते थे और ऐसे मामलों को सदर निजामत अदालत को प्रेषित कर दिया जाता था।
मजिस्ट्रेट के न्यायालय
मुफस्सल अदालत प्रणाली को समाप्त कर सर्किट न्यायालय स्थापित करने के साथ ही प्रत्येक सर्किट को जिलों मे विभाजित कर दिया गया था। प्रत्येक जिले में मजिस्ट्रेट का न्यायालय स्थापित किया गया जिस की मुखिया कलेक्टर होता था। उक्त न्यायालय को अपराधियों को बंदी बनाने, उन के विरुद्ध साक्ष्य लेने और विचारण हेतु सर्किट न्यायालय के सुपुर्द करने के कार्य कर सकता था। मजिस्ट्रेट मामूली अपराधों के लिए 15 कोड़ों और 15 दिन तक के कारावास का दंड दे सकता था। न्यायालय अपनी बैठक के लिए अधिसूचना जारी करता था। न्यायालय कार्यवाही का अभिलेख रखा जाता था और विचारण किए गए और लंबित मामलों की सूची रखी जाती थी। यह सूची सदर निजामत अदालत को प्रेषित की जाती थी। यह न्यायालय सर्किट न्यायालय द्वारा दिए गए दंड़ों का निष्पादन भी करती थी। कलेक्टर मजिस्ट्रेट शांति न्यायाधीश का काम भी करता था।
कलेक्टर मजिस्ट्रेट शांति न्यायाधीश का काम भी करता था।
बिल्कुल सही सर। इस पद को आज भी लगभग इसी भूमिका का निर्वहन करना पड़ता है।
दोषी व्यक्ति बच जाते थे और निर्दोष व्यक्तियों को सजा हो जाती थी।
ये तो आज भी हो रहा है कहीं न कहीं।
इस वाक्य में सिर्फ़ थी की जगह है रीप्लेस हो गया है।
सदर निजामत अदालत हम वक़ीलों की सेहत के लिए उपयुक्त नहीं थी, हा हा।
मजिस्ट्रेट मामूली अपराधों के लिए 15 कोड़ों और 15 दिन तक के कारावास का दंड दे सकता था।
सर इसमें कोड़े की जगह झाड़ की संटी और छोटी छोटी अवधि के कारावास आज भी कुछ अपराधों के लिए दिए जाना चाहिए जैसे बारबार सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण करना, लहराते हुए बाईक चलाना तीन तीन बिठा कर और फिर बुज़ुर्गों को राँग साईड से ओवरटेक करके कट मारना और उनका २७९/३३७ या ३३८ बनवा देना, आदि आदि। हा हा।
बहुत आनंद आ रहा है सर, इंडियन लीगल हिस्ट्री का रिवीज़न करके।
दिनेश जी बहुत सुंदर जानकारियां बांट रहे है, मेरे लिये तो यह बहुत ही अच्छी है क्योकि पिता जी मुझे जब इन सब के बारे पढाते थे, तो यह सब मेरे ऊपर से निकल जाता ओर बदले मै खुब सरी पिटाई होती थी
बेहद उपयोगी व जानकारी से भरा हुआ लेख रहा हमेशा की तरह ।
बहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद । फाँट कनव्र्ट करने के लिये आपका धन्यवाद अभिभूत हूँ आपके सहयोग से। इतना व्यस्त रहते हुये भी आप लोगों लिये इतना समय निकालते हैं शुभकामनायें
आभार जानकारी का!
nice
nice
बहुत उप्योगी जानकारी.
रामराम.
अच्छी जानकारी.