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शान्तिपूर्वक और आपसी समझदारी से अलग होने का उपाय हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13-ख में आपसी सहमति से विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करना है।

Counsellingसमस्या-

दिल्ली से रेशु ने पूछा है –

हुत ही शान्ति पूर्वक और आपसी समझदारी से अलग होने का उपाय बताएं।  दो बच्चे हैं 15 व 8 वर्ष के  बच्चों के विषय में न्यायालय क्या निर्णय कर सकता है?  आर्थिक मसलों की भी समुचित जानकारी दें।  तलाक प्रक्रिया में कितनी फ़ीस है?

समाधान-

शान्तिपूर्वक और आपसी समझदारी से अलग होने का उपाय हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13-ख में आपसी सहमति से विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करना है।

ब से पहला काम तो यह है कि पति-पत्नी में यह सहमति बने कि वे विवाह का विच्छेद चाहते हैं। यदि दोनों को भविष्य में एक दूसरे से किसी तरह की मदद नहीं चाहिए तो एक दूसरे के भरणपोषण के बारे में तय किया जा सकता है कि दोनों एक दूसरे से भरण पोषण के लिए दावा नहीं करेंगे। यदि दोनों में से एक नहीं कमाता है तो यह भी तय करना पड़ेगा कि कौन किसे कितना भरण पोषण देगा। लेकिन भरण पोषण की राशि एक मुश्त दे दी जाए तो अच्छा है। बच्चे 15 और 8 वर्ष के हैं। यदि दोनों बेटे हैं तो आपसी समझ से तय किया जा सकता है कि वे किस के पास रहेंगे। यदि उन में एक भी बेटी है तो उस का माँ के साथ रहना ही उचित है। वैसी स्थिति में बेटे का भी माँ के साथ ही रहना उचित है क्यों कि दोनों भाई बहनों को अलग करना उचित नहीं है। हाँ संताने किसी के साथ रहें। वे अपने माता या पिता से जिस के साथ वे नहीं रह रही हैं मिल सकती हैं। लेकिन ये सब बातें तय कर लेनी चाहिए। यदि संताने माँ के साथ रह रही हैं तो यह भी तय कर लेना चाहिए कि उन के भरण पोषण के लिए पिता एक मुश्त कोई राशि माँ को देगा या मासिक रूप से कोई राशि माँ को देगा।

संतानों के मामले में न्यायालयों का रुख यह रहता है कि संतानों का हित किस के साथ रहने में है। इस मामले में यदि माँ स्वयं भी कमाती है तो वे उन की अभिरक्षा माँ को सौंपने में प्राथमिकता देते हैं। वैसे भी बड़ी सन्तान 15 की हो चुकी है। 3 वर्ष बाद तो वह स्वयं ही तय करेगी कि उसे किस के साथ रहना है।

प दोनों यदि ये सब मसले आपस में तय कर लें तो इन पर जो भी सहमति बनी है उस का उल्लेख करते हुए न्यायालय के समक्ष सहमति से विवाह विच्छेद की डिक्री के लिए संयुक्त आवेदन कर सकते हैं। आवेदन प्रस्तुत होने के छह माह बाद भी यदि सहमति बनी रहे तो न्यायालय विवाह विच्छेद की डिक्री पारित कर सकता है।

हाँ तक इस मामले में न्यायालय शुल्क का सवाल है तो वह नाम मात्र की होती है और खर्चा भी कुल मिला कर एक हजार रुपयों से अधिक का नहीं होगा। केवल वकील की फीस वकील और पक्षकार आपस में मिल कर तय करते हैं। यह परिस्थितियों के हिसाब से तय होती है। यहाँ राजस्थान में इस के लिए 10-11 हजार रुपया फीस पर्याप्त मानी जाती है। दिल्ली में यह दो गुना से दस गुना तक हो सकती है। एक वीआईपी मामले में दिल्ली में सहमति से विवाह विच्छेद की फीस ढाई लाख रुपया लिए जाने की खबर मुझे है। लेकिन आप के मामले में यह 10 से 25 हजार तक हो सकती है।

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