शोएब को आयशा को तलाक क्यूँ देना पड़ा? -एक ठोस वजह
|आखिर शोएब ने आयशा को तलाक दे दिया और सानिया के साथ निकाह होने में किसी तरह की बाधा नहीं रही। लेकिन यह प्रश्न अभी भी रहस्य बना हुआ है कि जो शोएब यह कहता था कि मेरा किसी आयशा के साथ निकाह नहीं हुआ है वही तलाक को कैसे तैयार हो गया? उस ने एक ऐसी खातून को कैसे तलाक दे दिया जिस से उस का निकाह हुआ ही नहीं था? इन प्रश्नों का उत्तर हम कानून में तलाश करने की कोशिश कर सकते हैं।
इस विवाद की आयशा एक भारतीय हैं, जब कि शोएब एक पाकिस्तानी। भारत में आजादी के बाद से इस्लामी कानून को किसी भी तरह से संहिताकृत किए जाने का प्रयास नहीं हुआ। जब जब ऐसा किया गया तब तब मुसलमानों ने उस का विरोध किया और वोट की खातिर जो भी संसद में प्रभावी दल रहा उस ने हथियार डाल दिए। सब से बड़ी बात यह कि इस्लामी कानून का संहिताकरण करने के लिए किसी भी मुस्लिम मजलिस ने जोर नहीं दिया। इस का नतीजा यह है कि भारत में इस्लामी कानून अभी भी पुराने ढर्रे पर चल रहा है। इस के विपरीत पाकिस्तान में इस्लामी कानून को अनेक तरह की व्याख्याओं से बाहर निकाल कर उसे स्पष्ट आकार देने के प्रयास वहाँ हुए हैं। इस से वहाँ कानून स्पष्ट ही नहीं हुआ है अपितु उस के कारण स्त्रियों को कुछ अधिकार भी हासिल हुए हैं। हम इस विवाद की रोशनी में उन में से कुछ पर बात करेंगे।
पाकिस्तान में 1961 में मुस्लिम फैमिली लॉ ऑर्डिनेंस-1961 जारी किया गया। इस के आमुख में कहा गया था कि यह शादी और फैमिली कानून के मामले में गठित आयोगों की सिफारिशों को लागू करने के लिए जारी किया जा रहा है।
मुस्लिम विवाह का पंजीकरण
इस कानून के अंतर्गत पाकिस्तान में होने वाले प्रत्येक मुस्लिम विवाह का पंजीकरण कराया जाना अनिवार्य बना दिया गया तथा यूनियन कौंसिल को अधिकार दिया गया कि वह विवाह पंजीयक नियुक्त करे, यह भी निर्देशित किया गया कि एक वार्ड के लिए एक से अधिक विवाह पंजीयक नहीं होंगे। इस में उपबंधित किया गया कि जो भी विवाह विवाह पंजीयक के द्वारा संपन्न नहीं कराया जाएगा उस की सूचना विवाह संपन्न कराने वाला विवाह पंजीयक को देगा। विवाह संपन्न कराने वाला व्यक्ति (काजी) द्वारा विवाह की सूचना विवाह पंजीयक को नहीं देना अपराध घोषित किया गया और उस अपराध के लिए तीन माह तक का कारावास और एक हजार रुपए जुर्माने या दोनों से दंडित किया जाना निश्चित कर दिया गया। यूनियन कौंसिल द्वारा विवाहों का रिकार्ड रखना और निश्चित शुल्क पर निकाहनामे की नकल देने का प्रावधान किया गया।
बहुविवाह पर प्रतिबंध
इसी कानून के अंतर्गत बहुविवाह पर भी प्रतिबंध लगाने के लिए प्रावधान बनाए गए। एक आर्बीट्रेशन कौंसिल का गठन किया गया और यह प्रावधान किया गया कि कोई भी विवाहित पुरुष जिस की पत्नी मौजूद है आर्बिट्रेशन कौंसिल की लिखित अनुमति के बिना दूसरा विवाह नहीं करेगा और आर्बिट्रेशन कौंसिल की लिखित अनुमति के बिना ऐसा कोई भी विवाह पंजीकृत नहीं किया जाएगा। दू्सरे विवाह की अनुमति के लिए आवेदन आर्बिट्रेशन कौंसिल को दूसरा विवाह करने के कारणों का वर्णन करते हुए तथा वर्तमान पत्नी या पत्नियो की पूर्व स्वीकृति और निर्धारित शुल्क के साथ प्रस्तुत की जाएग
More from my site
18 Comments
सार्थक पोस्ट…..
२० मार्च को झालावाड गया था २१ को सोनीपत पहुंचना था सो आपके दर्शन नहीं कर पाया इस ऒर की अगली किसी यात्रा तक क्षमा
सर, आपने जो जानकारी दी वह महत्त्वपूर्ण होने के साथ ही वर्तमान में प्रासंगिक भी है. समय आ गया है कि सानिया-सोहैब के मामले के बहाने ही सही मुस्लिम पर्सनल लॉ का पुनर्मूल्यांकन करने की बहस चलाई जाये.
अगर शोएब भारत का नागरिक होता तो यह कहने में ज़रा भी देर न लगाता कि- 'दो' क्या मैं तो 'चार' भी कर सकता हूं और उस वक़्त सानिया मिर्ज़ा को जाति से बाहर करने वाले 'मज़हब के ठेकेदार' भी शोएब के 'सुर में सुर' मिलाते नज़र आते…
आगे शायद कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है…
आदरणीय दिनेश जी,
आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है… दुनिया के कई इस्लामी देशों ने अपने देश के क़ानून में सुधार किया है… और ऐसा होना भी चाहिए… पाकिस्तान में औरतों को हिन्दुस्तान के मुक़ाबले ज़्यादा क़ानूनी हक़ हासिल हैं…
हमारे देश की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि यह 'धर्मनिरपेक्ष' है और सभी सरकारें वोट बैंक के खिसकने के डर से 'सुधार' से कतराती हैं… लेकिन ये सरकारें यह नहीं सोचतीं कि 'सुधार' करके वो अपने देश के एक बड़े वोट बैंक के 'आधे हिस्से' (महिलाओं) को तो अपना बना ही लेंगी… पर यह बात किसी की समझ में तो आए…
यहां एक रोड़ा 'बहन जी' जैसी महिलाएं भी हैं, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता… जो सिर्फ़ मर्दों के हाथ की 'कठपुतली' ही बनी रहना चाहती हैं… और अपनी बहनों को ग़ुलाम बनाने वालों के हाथ मज़बूत करती हैं… मगर यह भी सच है कि…आख़िर जीत सच्चाई की ही होती है… हिन्दुस्तान में में कभी न कभी वो दिन ज़रूर आएगा… जब यहां की मुस्लिम औरतें भी खुली फ़िज़ां में सांस ले सकेंगी….
आज के समय में इस पोस्ट की बहुत जरूरत थी सर । बढिया जानकारी दे दी आपने वो भी सब कुछ स्पष्ट कर दिया आपने
अजय कुमार झा
बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना। भाई अपनी शादी की बात करो दूसरों के फटे दिखाने से क्या मक्सद हल करना चाह रहे हैं ?
एक अच्छी जानकारी. शोर शराबे के बीच एक कीमती पोस्ट है यह.
दोनों देशों के आगे कुछ प्रश्न खुल गए…
समयनुरूप भारत में भी कानूनों में सुधार होने चाहिए. बाधा कहाँ है? समझ में नहीं आता.
अच्छी जानकारी. ब्लॉगिंग की सार्थकता उजागर हुई.
कानूनी जानकारियां देती एक समसामयिक पोस्ट
आभार
आपने बहुत ही बारिकी से इस प्रकरण को हमें समझाया इसके लिए तो आपका आभार। इस सारे प्रकरण से अब भारत में भी कानून पर बहस होनी चाहिए। जिससे भारत में भी मुस्लिम महिलाओं को न्याय मिल सके।
इस विषय पर एक नवीन जानकारी प्राप्त हुई. बहुत आभार आपका.
रामराम.
वकील साहब, निकाह और तलाक पर तो आपने रोशनी डाली पर ये प्रश्न मेरी समझ मे नही आया कि इस कहानी के नायक (प्रति नायक) शोएब ने पहले तो नकार दिया कि निकाह हुआ ही नही और फिर तलाक दे दिया. अब तलाक दे दिया तो दे दिया पर तलाक का कोई नैतिक कारण भी तो हो. जिस निकाहनामे पर उन्होने धोखे से दस्तखत किये बताये उस धोखे मे आने की बजह क्या थी? दूसरा विवाह करने के लिये तलाक देना तो हमे कोई बजह नज़र नही आती. अगर ये बजह है तो शोएब एक नितान्त छिछोरा लडका है और हमारी बिटिया के भविष्य के लिये हमे बहुत सी चिन्ता है. टीप लम्बी हो गयी है पर नीति शास्त्र मे रुचि रखने के कारण मेरी चिन्ताये नैतिक और गहरी है.
आपने अनायास ही (और अत्यन्त सहजता से) भारतीय मीडिया की नासमझी, कमअकली और चिन्दी का थान बना देनेवाली मानसिकता उजागर कर दी। मामले का पेंच बहुत ही मामूली भले ही रहा हो किन्तु था सर्वाधिक महत्वपूर्ण। किन्तु मीडिया से जुडे एक भी व्यक्ति, एक भी चैनल, एक भी अखबार ने इस पेंच पर ध्यान देने की आवश्यकता ही नहीं समझी।
आपकी यह पोस्ट, भारत में मुस्लिम लॉ के संहिताकरण की आवश्यकता को पुरजोर तरीके से प्रतिपादित भी करती है। मुस्लिम समुदाय को ही इसके लिए पहल करनी पडेगी। अन्यथा मामला एक बार फिर वोट के गलियारों में उलझ जाएगा।
चलिए, इसी बहाने कुछ और कानूनी जानकारियाँ मिल गई.
वोट बैंक की फिकर बड़ी,
मुझे क्या पड़ी ईमान-धरम की!
मेरी कुर्सी, मेरा ओहदा,
मुझको तो बस यही है प्यारी!
जब तक इस देश के नेता ऐसी विचारधारा के प्रवाह में बहते रहेंगे, कोई भी सामाजिक उन्नति या सुधार ईद के चाँद से भी अधिक धूमिल रहेगा…
सानिया-शोएब-आयशा प्रकरण हमारे पत्रकारिता का एक और ओछा रूप हमें दिखा गया… कोई जवाबदेही नहीं, कोई जज्बात नहीं बस लग गयी होड़…
अंत में हुआ वही धक् के तीन पात की बस उंट पहाड़ के नीच आ ही गया…
काफी कुछ क़ानूनी जानकारी मिली…. धन्यवाद!
आपने पूरी गंभीरता से जानकारी दी और मामले को जिस चिरकुटिया अंदाज में मीडिया परोस रहा है उस की गहन पड़ताल के साथ इस दोयम दर्जे के प्रकरण को इस प्रतिष्ठित ब्लाग के अनुकूल बनाया।
अमरकुमारजी जैसी शैली में भी बहुत कुछ कहा जा सकता है, पर दिक्कत यही है कि यह आपकी शैली नहीं, और इस ब्लाग का चरित्र नहीं।
अलबत्ता डाक्टसाब की बात निराली है।
Amar kumar ji sab khara-khara kah gaye..
kai jankariyan mileen post se aabhar.
जहाँ दो वोट का जुगाड़ हो, वह रास्ता दिखाओ ।
किसने किसको क्यों छोड़ा, ये कानून न पढ़ाओ ।
चूड़ीसँख्यक सोच क्यों पहने कानून की पायल ?
बस यह बताओ कि कितने मरे कितने घायल ।
हमारा देश सर्वनिरपेक्ष है.. हमें ऎसे सुधारों से क्या लेना देना ?
अलबत्ता मुल्क बदलने के साथ शरीयत के मिज़ाज़ भी बदल जाते हैं, क्या ?