संविदा के बाहर के काम में गलती होने पर कर्मचारी को दोषी ठहराना गलत है।
|समस्या-
दीपक ने इन्दौर मध्यप्रदेश से पूछा है-
सरकारी कार्यालयों में आजकल संविदा नियुक्ति होती है। जिसमें किसी पद विशेष के लिए कार्यालय प्रमुख और नियुक्त व्यक्ति के बीच संविदा का निष्पादन होता है। इस संविदा निष्पादन में उल्लिखित पद के अतिरिक्त किसी उच्च पद का प्रभार सम्बन्धित संविदा कर्मी को दिया जाये और उसमें उच्च पद कार्य करते हुए कोई गलती हो जाये तो संविदा निष्पादन अनुसार क्या सम्बन्धित दोषी होगा? क्योंकि संविदा निष्पादन में उस कार्य का उल्लेख ही नहीं था जो उसे अलग से दिया गया था।
समाधान-
आपने जो प्रश्न भेजा है वह एक समस्या के रूप में नहीं है। हम इस फोरम में केवल वास्तविक समस्याओं के लिए समाधान सुझाते हैं। आपने तमाम तथ्यों को एक ओर रखते हुए केवल सिद्धान्त रूप में समस्या को रखा है। यह प्रश्न महत्व का है इस कारण हम सिद्धान्त रूप में समाधान सुझा रहे हैं। लेकिन यह समाधान किसी वास्तविक समस्या के लिए काम में लेने के लिए उस समस्या के सभी पहलुओँ पर विचार करना आवश्यक है। इसे किसी समस्या विशेष के समाधान के रूप में न देखें। यदि आप वास्तविक समस्या तमाम आनुषंगिक तथ्यों के साथ हमारे समक्ष रखेंगे तो हम वास्तविक समाधान भी सुझा सकेंगे।
सभी कर्मचारी संविदा अर्थात काँट्रेक्ट पर ही रखे जाते हैं। जिनकी स्थायी नियुक्ति होती है वे कर्मचारी भी संविदा पर ही होते हैं। कोई नियोजन बिना संविदा के नहीं होता। लेकिन वे लोग जो भर्ती और नियुक्ति के सरकारी नियमों के स्थान पर एक निश्चित अवधि के लिए एक निश्चित वेतन पर काम करने के लिए की गयी संविदा पर रखे जाते हैं उन्हें संविदा कर्मी कहा जा रहा है। स्थायी, अस्थाई और निश्चित अवधि की संविदा पर रखे हुए कर्मचारियों में केवल यह अन्तर होता है कि पहले का नियोजन स्थायी होता है, दूसरे का अस्थायी होता है लेकिन अवधि निश्चित नहीं होती। तीसरे के नियोजन की अवधि भी निश्चित होती है और वेतन भी स्थिर और अपरिवर्तनीय होता है। इन तमाम प्रकार की संविदाओं को हम सेवा संविदा कहते हैं।
जब किसी कर्मचारी को नियोजन में रखा जाता है तो यह अनुमान नहीं होता है कि उस कर्मचारी से किसी और पद का कार्य भी लिया जा सकता है इस कारण उसकी संविदा में ऐसी कोई शर्त नहीं होती। लेकिन किसी कार्यालय में अचानक कोई पद रिक्त हो जाता है और कार्यालय या विभाग प्रमुख समझता है कि उसके अधीनस्थ कार्य करने वाला कोई कर्मचारी उस पद विशेष के लिए कर्मचारी उपलब्ध होने तक उसका काम कर सकता है तो अधिकारी यह प्रस्ताव देता है कि वह अपने कार्य के साथ उस विशेष पद का कार्य भी संभाले। इस तरह अतिरिक्त कार्यभार के लिए नियम बने हुए हैं, जिनके अंतर्गत अतिरिक्त कार्यभार के लिए भत्ते की व्यवस्था होती है। इस तरह जब किसी व्यक्ति को कोई अतिरिक्त कार्यभार सौंपा जाता है तो यह किसी लिखित आदेश के अन्तर्गत होता है और यह लिखित आदेश भी एक तरह की संविदा होती है।
आम तौर पर एक संविदाकर्मी को यदि अतिरिक्त कार्य दिया जाता है तो और कोई भत्ता वगैरह नहीं दिया जाता है तो उसे ऐसा काम करने से मना कर देना चाहिए जिससे वह उस अतिरिक्त संविदा में न फँसे। यदि फिर भी उसे काम करने को कहा जाता है तो वह अतिरिक्त संविदा के अन्तर्गत नहीं होता है। क्यों कि बिना किसी प्रतिफल के किसी कार्य को करने को कहा जाए तो ऐसा अनुबन्ध संविदा नहीं हो सकता।
यदि कोई कर्मचारी उस अतिरिक्त पद के कार्य के लिए अतिरिक्त भत्ता प्राप्त कर रहा है तो वह गलती के लिए दोषी भी माना जाएगा। लेकिन यदि अतिरिक्त कार्यभार के लिए उसे कोई भत्ता नहीं दिया गया है तो वह अपने बचाव में कह सकता है कि उससे यह कार्य उसकी इच्छा के विपरीत कराया गया है, चूंकि वह संविदाकर्मी था इस कारण प्रतिरोध करता तो उसकी संविदा निरस्त कर उसे तत्काल बेरोजगार बनाया जा सकता था इस कारण वह एक बेगार के रूप में कार्य कर रहा था। जो कार्य किसी कर्मचारी का नहीं है उससे कराए जाने पर उससे गलती हो जाने पर उसे दोष नहीं दिया जा सकता। ऐसा कर्मचारी अपने बचाव में कह सकता है कि यह उसका कार्य नहीं था इस कारण उसे दोष नहीं दिया जा सकता।