ससुर की संपत्ति में पुत्र वधु का कोई अधिकार नहीं।
सीमा ने छत्तीसग़ढ़ से पूछा है-
मेरे पति से मैं सात वर्ष से अलग हूँ। मेरा 14 वर्ष का पुत्र भी है। मेरा तलाक नहीं हुआ है। मेरे ससुर जी का देहान्त हो चुका है अब उन की संपत्ति का बंटवारा हो रहा है जिस में मेरे पति उन के बड़े भाई व दो बहनों को हिस्सा दिया जा रहा है। क्या इस संपत्ति में मेरा या मेरे पुत्र का भी अधिकार है?
समाधान-
आप के ससुर जी की संपत्ति का बंटवारा हो रहा है। यदि इस संपत्ति में कोई संपत्ति ऐसी हुई जो कि पुश्तैनी /सहदायिक संपत्ति है तो उस में आप के पुत्र का हिस्सा हो सकता है। ससुर की संपत्ति में केवल विधवा पुत्रवधु का अधिकार हो सकता है, आप के पति जब तक जीवित हैं आप का कोई हिस्सा नहीं हो सकता।
अपने पुत्र के अधिकार की जाँच करने के लिए आप को पहले पता लगाना होगा कि आप के पति के परिवार में कोई संपत्ति ऐसी है या नहीं जो कि पुश्तैनी हो। पुश्तैनी संपत्ति वही है जो कि 17 जून 1956 के पूर्व किसी पुरुष को अपने पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई हो और उस के पश्चात उत्तराधिकार में ही उस पुरुष के उत्तराधिकारियों को प्राप्त हुई हो और उस के बाद उस उत्तराधिकारी के उत्तराधिकारियों को प्राप्त हुई हो।
आपका कथन है कि पुश्तैनी संपत्ति वही है जो कि 17 जून 1956 के पूर्व किसी पुरुष को अपने पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई हो
तो क्या आज की तारीख में किसी पुत्र वधु को ये साबित करना जरुरी है की उसके ससुर के पिता से पहले भी यह सम्पति थी
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सास-ससुर की संपत्ति पर पुत्रवधू का अधिकार नहीं…
नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने एक महिला को अपने सास-ससुर के मकान में रहने के अधिकार से वंचित कर दिया है। अदालत ने कहा कि उसका अपने ससुर की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं है। मजिस्ट्रेट अदालत का आदेश निरस्त करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने महिला के ससुर की ओर से दायर अपील स्वीकार कर ली। अदालत ने कहा कि वह उस मकान में आवास के अधिकार का दावा करने की तभी हकदार है जब यह संपत्ति उसके पति की हो या उसमें उसका हिस्सा हो। न्यायाधीश ने कहा, ‘इस तरह के निर्विवाद तथ्यों और आवेदक (महिला) के पति के पहले ही किराए पर मकान ले लेने, जिसमें वह आवास का अधिकार मांग सकती है, निचली अदालत का आदेश टिकने लायक नहीं है।’ उच्चतम न्यायालय के फैसले के आधार पर न्यायाधीश ने कहा, ‘पुत्रवधू का उस संपत्ति में कोई अधिकार नहीं है जो उसके सास-ससुर की है और इस तरह की संपत्ति को साझा आवास नहीं माना जा सकता है।’ अदालत ने महिला के आवास के अधिकार के दावे पर नए सिरे से विचार करने के लिए मामला वापस मजिस्ट्रेट अदालत के पास भेज दिया और महिला और उसके सास-ससुर को निर्देश दिया कि वे मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष उपस्थित हों। अपील घरेलू हिंसा के मामले में निचली अदालत के आदेश के खिलाफ महिला के सास-ससुर ने दायर की थी। इसमें उन्हें निर्देश दिया गया था कि वे साझा आवास मानते हुए पुत्रवधु को मकान में फिर से आने की अनुमति दें।