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हकत्याग भी एक तरह का संपत्ति हस्तान्तरण है।

समस्या-

बिदासर, राजस्थान से अजयकुमार ने पूछा है-

मैंने एक राजस्व वाद सन् 2005 में श्रीमान् उपखण्ड अधिकारी महोदय, सुजानगढ़ के न्यायालय में घोषणात्मक, चिर निषेधाज्ञा व रिकार्ड दुरूस्ती का अनुतोष प्राप्त करने हेतु संस्थित किया था।  उक्त वाद में मैंने यह घोषणा चाही थी कि प्रतिवादी संख्या एक कहीं अन्यत्र गोद चला गया है  इसलिए उसका अपने नैसर्गिक पिता की वादगत सम्पत्ति में कोई हक-हिस्सा नहीं रहा है।  उक्त वाद में प्रतिवादी संख्या एक मेरा भाई है लेकिन वह बाल्यकाल में ही मेरे नाना के गोद चला गया था।  मेरे पिता के नाम 100 बीघा भूमि राजस्व अभिलेखों में दर्ज थी जो उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके उतराधिकारियों मुझ वादी व प्रतिवादी संख्या दो ता तीन के नाम दर्ज होनी चाहिए थी।  लेकिन मेरे बडे़ भाई प्रतिवादी संख्या एक ने अपना नाम भी वादग्रस्त खेत के राजस्व अभिलेखों में मेरे पिता के उतराधिकारी के रूप में दर्ज करवा लिया। जिस समय मेरे द्वारा उक्त वाद संस्थित किया गया था, उस समय मेरे संयुक्त खातेदारी के वादग्रस्त खेत के राजस्व अभिलेखों में मेरा व मेरे दो भाईयों (प्रतिवादी संख्या एक व दो) तथा मेरी दो बहिनों (प्रतिवादिनी संख्या तीन व चार) का नाम अंकित था इसलिए मेरे द्वारा उन्हें प्रतिवादीगण संख्या एक व चार के रूप में पक्षकार बनाया गया था।  उक्त वाद के लम्बित रहने के दौरान ही मेरी बहिन प्रतिवादीनी संख्या तीन ने अपने हिस्से की भूमि के खातेदारी अधिकारों का त्याग मेरे भाई प्रतिवादी संख्या एक के पक्ष में ‘‘हक त्याग विलेख’’ के जरिये कर दिया तथा मेरी दूसरी बहिन प्रतिवादिनी संख्या चार ने अपने हिस्से की भूमि के खातेदारी अधिकारों का त्याग मेरे भाई प्रतिवादी संख्या दो के पक्ष में ‘‘हक त्याग विलेख’’ के जरिये कर दिया।  उक्त हक त्याग विलेखों के आधार पर मेरी उक्त दोनों बहिनों के नाम वादग्रस्त खेत के राजस्व अभिलेखों से हटाकर उनके हिस्से की भूमि मेरे उक्त दोनों भाइयों प्रतिवादी संख्या एक व दो के नाम दर्ज कर दी गई।  वर्तमान में वादगत खेत के राजस्व अभिलेख में 20 बीघा भूमि मेरे नाम तथा 40-40 बीघा भूमि प्रतिवादी संख्या दो व तीन के नाम दर्ज है।  जिस समय उक्त हक परित्याग पत्र निष्पादित किये गये थे उस समय तक उक्त वाद के साथ प्रस्तुत अस्थाई निषेधाज्ञा प्रार्थना पत्र में ‘‘यथास्थिति बनाये रखने का आदेश’’ न्यायालय द्वारा नहीं पारित किया गया था लेकिन उस समय मेरे द्वारा संस्थित उक्त वाद लम्बित था। उक्त हक परित्याग पत्र निष्पादित किये जाने के कुछ समय बाद उक्त वाद के साथ प्रस्तुत अस्थाई निषेधाज्ञा प्रार्थना पत्र मुझ वादी के पक्ष में निर्णित किया गया जिसके विरूद्ध प्रतिवादी संख्या एक ने राजस्व अपील प्राधिकारी, बीकानेर के समक्ष अपील दायर की जिसे आंशिक रूप से मंजूर करते हुए मुझ वादी व प्रतिवादी संख्या एक दोनों को उक्त वाद के अन्तिम निर्णय तक यथास्थिति बनाये रखने हेतु पाबन्द कर दिया गया है।  उक्त विचाराधीन वाद में प्रतिवादीगण संख्या एक व चार के विरूद्ध दो वर्ष पूर्व एकपक्षीय कार्यवाही उनके अनुपस्थित रहने के कारण अमल में लाई जा चुकी है।  उक्त एकपक्षीय कार्यवाही का आदेश होने के बाद मेरे द्वारा एकतरफा साक्ष्य वादी में दो गवाहों के बयान लेखबद्ध करवाये जाकर वादपत्र के समर्थन में प्रस्तुत सभी दस्तावेजों को प्रदर्शित करवाया जा चुका है तथा अब उक्त वाद बहस अन्तिम के प्रक्रम पर चल रहा है।  उक्त प्रकरण के सम्बन्ध में मैं आपसे निम्नलिखित प्रश्नों के सम्बन्ध में सलाह लेना चाहता हूं:-

(1) क्या उक्त प्रकार से दो बहिनें अपने संयुक्त हिस्से का हक परित्याग मुझ एक भाई (वादी) को वंचित रखकर दो भाईयों के पक्ष में कर सकती है?  इस सम्बन्ध में हक परित्याग सम्बन्धित विधि व नियमों का वर्णन करते हुए कानूनी स्थिति स्पष्ट करने की कृपा करें।

(2) क्या वाद के लम्बित रहने के दौरान उक्त दो बहिनों द्वारा अपने दो भाईयों के पक्ष में किया गया हक परित्याग वैध है? अगर यह वैध नहीं है तो क्या मुझ वादी को उक्त हक परित्याग सम्बन्धी तथ्यों को रिकार्ड पर लाने हेतू वादपत्र में संशोधन करवाना आवश्यक है? और क्या बिना संशोधन के उक्त तथ्यों को अन्तिम बहस के दौरान उठाया जाना कानूनी रूप से सही है? और क्या उक्त प्रकार से वाद के लम्बित रहने के दौरान किये गये अन्तरण के परिप्रेक्ष्य में वाद संस्थित करने के समय जो स्थिति वादग्रस्त खेत की थी उसी स्थिति में वादगत खेत को लाने हेतु मुझ वादी द्वारा बहस अन्तिम के प्रक्रम पर धारा 144 सी.पी.सी. के तहत आवेदन किया जा सकता है।  कृपया इस सम्बन्ध में उचित सलाह देने की कृपा करें।

(3) क्या उक्त प्रकार से एकतरफा चल रही वाद की कार्यवाही के दौरान हक परित्याग सम्बन्धी तथ्यों को रिकार्ड पर लाने हेतु वादपत्र में संशोधन करवाना पड़े तो क्या प्रतिवादीगण को उक्त संशोधन प्रार्थना पत्र की सूचना देने हेतु न्यायालय द्वारा तलब किया जायेगा या उसकी सुनवाई एकतरफा रूप से कर ली जावेगी?  कृपया इस सम्बन्ध में उचित सलाह देने की कृपा करें।

(4) क्या वाद संस्थित करने के दौरान यदि कोई आवश्यक पक्षकार, पक्षकार के रूप में संयोजित करने से वंचित रह जावे तो क्या उक्त प्रकार से एकतरफा चल रही वाद की कार्यवाही के दौरान उस आवश्यक पक्षकार को बहस अन्तिम के प्रक्रम पर पक्षकार के रूप में जोड़ा जा सकता है और यदि जोड़ा जा सकता है तो उस वंचित पक्षकार की ओर से आदेश 1 नियम 10 (2) सी. पी. सी. का प्रार्थना पत्र पेश करवाना आवश्यक है या मुझ वादी द्वारा उस आवश्यक पक्षकार को पक्षकार के रूप में संयोजित करने के लिए आदेश 1 नियम 10 (2) सी. पी. सी. का प्रार्थना पत्र पेश किया जा सकता है या उस वंचित पक्षकार को पक्षकार के रूप में जोड़ने के लिए मुझ वादी द्वारा आदेश 6 नियम 17 सी. पी. सी. के तहत वादपत्र में संसोधन करवाया जा सकता है और क्या उक्त संसोधन प्रार्थना पत्र की सूचना देने हेतू न्यायालय द्वारा उस वंचित पक्षकार को एवं सभी प्रतिवादीगण को तलब किया जायेगा या उसकी सुनवाई एकतरफा रूप से कर ली जावेगी। कृपया इस सम्बन्ध में उचित सलाह देने की कृपा करें।

समाधान-

justiceदि उक्त कृषि भूमि आप के पिता को उत्तराधिकार में 16 जून 1956 के बाद प्राप्त हुई है तो आप का वाद सही है। लेकिन यदि वह आप के पिता को इस के पूर्व उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है तो उस में 16 जून 1956 तक जन्म लिए हुए आप के पिता के सभी पुरुष उत्तराधिकारियों को भी जन्म से सहदायिक अधिकार प्राप्त हुआ है। तब आप के मुकदमे में जटिलताएं उत्पन्न हो सकती है।  चूंकि आप ने इस संबंध में कोई तथ्य नहीं रखे हैं और कोई प्रश्न नहीं पूछा है इस कारण अधिक कुछ कहना उचित नहीं है।

आप का पहला प्रश्न है कि क्या दो बहिनें अपने संयुक्त हिस्से का हक परित्याग मुझ एक भाई (वादी) को वंचित रखकर दो भाईयों के पक्ष में कर सकती है?  

संयुक्त संपत्ति का बँटवारा न होने पर भी उस में सभी संयुक्त स्वामियों का अपने अपने हिस्से पर अधिकार है।  कृषि भूमि में कोई भी हिस्सेदार उस भूमि में अपना हिस्सा विक्रय या अन्यथा हस्तांतरित कर सकता है।  इस का परिणाम यह होता है कि संयुक्त स्वामित्व में हिस्सेदार का स्थान वह व्यक्ति ले लेता है जिसे हिस्सा हस्तांतरित किया गया है। किसी एक हिस्सेदार द्वारा अपना हिस्सा किसी दूसरे हिस्सेदार को हस्तांतरित कर देना भी एक तरह का हस्तांतरण ही है।  इस तरह कोई भी व्यक्ति संयुक्त संपत्ति का बँटवारा कराए बिना अपना हिस्सा किसी दूसरे हिस्सेदार के पक्ष में हकत्याग विलेख द्वारा हस्तांतरित कर सकता है।

ह हक त्याग वाद के लंबित रहने के दौरान भी किया जा सकता है और वैध है। क्यों कि इस पर किसी तरह की कोई रोक नहीं है।  इस हक त्याग को हकत्याग विलेख निष्पादित होने तथा उस के अनुसार नामांतरण हो जाने की जानकारी मिलते ही संशोधन के माध्यम से न्यायालय के रिकार्ड पर लाया जाना चाहिए था। संशोधन का आवेदन अन्तिम बहस होने के पूर्व न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है लेकिन ऐसा आवेदन देरी के आधार पर निरस्त भी किया जा सकता है। वैसे आप को संशोधन के लिए आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए। लेकिन धारा 144 इस मामले के तथ्यों के आधार पर प्रभावी होना प्रतीत नहीं हो रहा है। क्यों कि यह धारा तभी लागू होगी जब कि किसी डिक्री या आदेश द्वारा कार्यवाही में फेरफार किया गया हो।

कोई भी संशोधन का आवेदन प्रस्तुत होने पर उस की सूचना उस प्रकरण के सभी पक्षकारों को दिया जाना आवश्यक है, उन पक्षकारों को भी जिनके विरुद्ध एकतरफा कार्यवाही किए जाने के आदेश प्रदान किए जा चुके हैं और जो अब प्रकरण में उपस्थित नहीं हो रहे हैं।  इस के लिए आवेदन की प्रति उन्हें नोटिस के साथ प्रेषित की जाएगी और यदि वे उपस्थित होते हैं तो उन्हें सुना जाएगा। वैसे भी जिन प्रतिवादियों के विरुद्ध एक तरफा कार्यवाही का आदेश है वे प्रकरण में किसी भी स्तर पर उपस्थित हो कर आगे होने वाली कार्यवाही में भाग लेने के अधिकारी हैं।

वाद संस्थित करने के दौरान यदि कोई आवश्यक पक्षकार, पक्षकार के रूप में संयोजित करने से वंचित रह जाता है तो उक्त प्रकार से एकतरफा चल रही वाद की कार्यवाही के दौरान उस आवश्यक पक्षकार को बहस अन्तिम के प्रक्रम पर पक्षकार के रूप में जोड़ा जा सकता है।  इस के लिए उस वंचित पक्षकार की ओर से आदेश 1 नियम 10 (2) सी. पी. सी. का प्रार्थना पत्र पेश किया जा सकता है। वाद का कोई भी पक्षकार उसे पक्षकार के रूप में संयोजित करने के लिए आदेश 1 नियम 10 (2) सी. पी. सी. के अंतर्गत प्रार्थना पत्र पेश कर सकता है।  आप भी उस वंचित पक्षकार को पक्षकार के रूप में जोड़ने के लिए आदेश 6 नियम 17 सी. पी. सी. के तहत वादपत्र में संशोधन हेतु आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं।  लेकिन संशोधन प्रार्थना पत्र की सूचना सभी प्रतिवादीगण को देना आवश्यक है। हाँ आदेश 1 नियम 10 (2) सी. पी. सी. के अंतर्गत प्रार्थना पत्र की सूचना विपक्षी पक्षकारों को देने की आवश्यकता नहीं है उन की अनुपस्थिति में आवेदन की सुनवाई की जा सकती है।