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कुछ चीजें पूरी तरह मिटायी नहीं जा सकतीं।

rp_gavel1.jpgसमस्या-

संतोष सोनकर ने जबलपुर, मध्यप्रदेश से पूछा है-

मेरी शादी 05/06/2006 को कानपुर(उ।प्र।) में हुई थी। विवाद के चलते पत्नी कानपुर अपने मायके में थी मैंने पत्नी को एक पात्र रजि. पोस्ट से भेजा था।  जिसमें मैंने साथ रहने के लिये समझाया था। पत्र मैंने 01/07/2009 को भेजा था। पत्र मिलने के बाद और भी विवाद मच गया। विवाद के चलते मैंने 22/07/2009 को डाइवोर्स के लिए आवेदन किया। फैमिली कोर्ट जबलपुर द्वारा पत्नी को कानपुर के पाते पर रजि.नोटिस भेजा गया था जो कि 27/07/2009 को रिफ्यूज़्ड कर दिया गया और नोटिस रिफ्यूज़्ड करने तुरंत बाद 1/08/2009 को कानपुर के थाने में 13 लोगों के खिलाफ  धारा 498ए/323/504/506 आईपीसी  व धारा 3 & 4 दहेज अधिनियम के तहत एफआईआर कर दी गई। और यहा मुझे जबलपुर में 21/10/2009 को एक पक्षीय डाइवोर्स मिल गया। मैंने अपील पीरियड के करीब 11 महीने बाद 11/08/2010 को विवाह कर लिया है। मुझे इलाहाबाद हाइकोर्ट से एफआईआर  पर  27/01/10 को स्टे चार्जशीट तक मिला। उसके बाद चार्जशीट ज्यों की त्यो  पेश हो गई किसी का भी नाम नहीं कटा। मैंने चरगेशीट के खिलाफ फिर से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कार्यवाही की तो 11/08/10 को स्टे मिल गया और मध्यस्थता विपक्षी पक्षकार के अनुपस्थित रहने से असफल हो गयी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कोई सुनाई नहीं हुई। केस मे एक भी नाम नहीं हटा। फिर से मैं सुप्रीम कोर्ट गया  परंतु मामला फिर मध्यस्थता में भेज दिया गया। कोई हल नही निकलने से सुप्रीम कोर्ट ने अभी स्टे दिया है। जब कि मध्यस्थता का कोई भी मतलब नहीं क्योकि अगली पार्टी इलाहाबाद के मिडियेशन के समय से ब्लैकमेलिंग कर रही है। उनकी डिमांड 20 लाख रुपया है।जबकि मैं हेल्थ क्लब में प्राइवेट नोकरी करता हूँ। मुझे महीने का 3500/ रु. मिलता है। जबकि मैंने 21/10/2009 के डाइवोर्स के लगभग 11 महीने बाद कोर्ट से दूसरा विवाह 12/08/2010 को कर लिया हू। एक पक्षीय डाइवोर्स के खिलाफ रिविषन  के लिए उस पार्टी का आवेदन 22/03/2011 को आया है जो कि अल्टिमेट्ली खारिज हो गया है और उस पार्टी ने 125(मैनटनंसे) का केस कानपुर में लगाया था जो कि 3500/ प्रतिमाह निश्चित हुआ। जबकि कोई भी संतान  नहीं है। आप मुझे सही और उचित सलाह दें कि अब क्या होगा और क्या करें। जबकि अभी सुप्रीम कोर्ट में स्टे है और अभी 04/08/2015 को फाइनल ऑर्डर हो गया जिसमें 13 से 9 लोगों का नाम हटा दिया है और साथ ही कोर्ट ने लिखा है की मामला बहुत बढ़ा चढ़ा कर बनाया गया है  जब कि 4 नाम में मेरे मेरी मां जो कि बड़े भाई के साथ अलग रहती है करीब 80 साल की है और मेरे बड़े भाई और मेरे जीजा हैं जो कि 6 किलोमीटर दूर रहते हैं। वकील साहेब कहना है 4 नाम भी कट जाएंगे 21/10/2009 के डाइवोर्स के बाद 24/3/2010 को चार्जशीट पेश की है।   हम आगे क्या कार्यवाही करें।

समाधान-

प की समस्या यह थी कि आप का विवाह बेमेल था और पत्नी आप के साथ नहीं रहना चाहती थी। आप ने जो कुछ भी किया बिलकुल सही किया। आप सुप्रीम कोर्ट तक लड़े हैं और लड़ रहे हैं। आप को सुप्रीमकोर्ट तक वकीलों की सलाह हासिल हुई है। आप आज भी अच्छे वकीलों के संपर्क में हैं जो पूरे मामले के सारे विवरण और तथ्यों से परिचित हैं। वैसी स्थिति में तीसरा खंबा का उपयोग करने का कोई अर्थ नहीं है। यहाँ हम उन लोगों को सलाह देते हैं जिन्हें उचित कानूनी सलाह उपलब्ध नहीं हो रही होती है। आम तौर पर जिन मामलों में इस स्तर की कानूनी सलाह हासिल हो हम कोई उत्तर नहीं देते। लेकिन यहाँ आप को केवल इस कारण दे रहे हैं जिस से लोग समझ सकें कि अच्छी कानूनी सलाह मिल जाने और प्राप्त करने में सक्षम होने पर इस तरह के सलाह मंचों की कोई भूमिका नहीं रह जाती है और ऐसे लोग इस तरह के मंचों का उपयोग न करें।

आप के मामले में केवल एक अपराधिक मुकदमा रह गया है। सुप्रीम कोर्ट ने आप सहित पाँच व्यक्तियों को अभियुक्त बनाए रखते हुए बाकी को आरोप पत्र से निकाल दिया है। दूसरा मामला धारा 125 का है। इन दोनों मामलों का हल मेरिट पर न्यायालय से ही होगा। आप को इन दोनों मामलों को उच्च स्तर तक लड़ना चाहिए। यह पूरी तरह संभव है कि इन का हल आप के पक्ष में हो जाए। अपने वकीलों पर भरोसा रखें लेकिन दोनों मामलों में कोताही बिलकुल न बरतें। जब तक आप यह सिद्ध न कर दें कि आप की पूर्व पत्नी स्वयं अपने भरण पोषण में समर्थ है भरण पोषण तो आप को देना पड़ सकता है। आप ने भले ही डाइवोर्स प्राप्त कर लिया हो पर एक बार विवाह तो किया ही था। एक बार जब आप एक पौधा रोप देते हैं तो उस के मर जाने पर उस का अवशिष्ट तो बचता ही है। ऐसा ही कुछ समझें, कुछ चीजें पूरी तरह मिटाई नहीं जा सकती।

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