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अचल संपत्ति का लिखित बँटवारा पंजीकृत होना चाहिए।

partition of propertyसमस्या-
शशांक तिवारी ने सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश से पूछा है-

मेरे दादा जी 5 भाई हैं। इन का एक पैतृक घर है, जिस में 2 भाईयों  ने घर में हिस्सा लेने से मना कर दिया था और 3 भाइयों में बटवारा हो गया। 60 फुट जमीन थी जिस में तीनों भाइयों को 20-20 फुट जमीन मिली है। मेरे दादा जी ने अपनी 20 फुट जमीन पर 3  साइड से दिवार खींच ली है। जिस में उन्होंने सिर्फ १७ फुट पर दिवार खीचीं है। अब मेरे दादा जी के भाई जिन्होंने हिस्सा लेने से मना कर दिया था। उस में से एक  भाई अपना हिस्सा मांग रहे हैं और मेरी दिवार को खीचने नही दे रहे हैं। उन्हों ने जो बटवारा किया था उस में लिखा था की तीनों भाई को 20-20 फुट हिस्सा मिला है जिस में उन दादा के भी हस्ताक्षर हैं जो हिस्सा मांग रहे हैं। पुलिस भी कह रही हे हम इसमें करें? क्या अब हमें अपनी दीवार गिरानी पड़ेगी जो 9 फुट से ऊपर उठ चुकी है? या कोई और साधन है जिस से बटवारा हो सके? और अगर मेरी पूरी दिवार खींचने के बाद (चारो साइड) वो हिस्सा मांगते तो क्या पूरा घर गिराना पड़ता?

समाधान-

बँटवारे से सम्बन्धित समस्या इस कारण से आती है कि लोग कानून के अनुसार बँटवारा न कर के अपनी सुविधानुसार करते हैं और उसे वैधता प्रदान नहीं करते। बाद में इतनी समस्या आती है कि या तो भाइ-बहनों और रिश्तेदारों के बीच फौजदारी वारदातें होती हैं, फौजदारी मुकदमे चलते हैं और साथ ही साथ दीवानी मुकदमे चलते हैं जिन में अनेक पीढ़ियों तक निर्णीत नहीं होते।

बँटवारे का कानून यह है कि या तो बँटवारा आपसी सहमति से लिख कर पंजीकृत कराया जाना चाहिए। अपंजीकृत बँटवारा कानून के समक्ष मान्य नहीं है। यदि बँटवारा मौखिक किया गया हो तो बाद में संपत्ति के सभी हिस्सेदार उस का एक मेमोरेण्डम लिख कर गवाहों के समक्ष हस्ताक्षर कर सकते हैं और गवाहोँ से हस्ताक्षर करवा सकते हैं। इस बँटवारे के मेमोरेण्डम को नोटेरी से सत्यापित भी कराया जा सकता है। इस के अतिरिक्त यदि किसी तरह का विवाद हो तो संपत्ति का कोई भी एक साझीदार अन्य साझीदारों के विरुद्ध बँटवारे का दीवानी वाद प्रस्तुत कर सकता है और न्यायालय के निर्णय से बँटवारा हो सकता है। आप के दादाओं के बीच में किस तरह बँटवारा हुआ है यह आप के प्रश्न से स्पष्ट नहीं है।

प के मामले में एक स्थिति और है कि पाँच में से दो भाई अपनी संपत्ति छोड़ रहे हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि वे शेष सभी भाइयों के हक में छोड़ रहे हैं या किसी एक या दो भाइयों के हक में छोड़ रहे हैं। किसी भाई या शेष सभी भाइयों के हक में अपना हक छोड़ना एक तरह का संपत्ति हस्तान्तरण है। कोई भी अचल संपत्ति का हस्तान्तरण बिना पंजीकरण के नहीं हो सकता। यदि एक दादाजी ने अपंजीकृत बँटवारे पर हस्ताक्षर कर भी दिए हैं जिस में वे कोई हिस्सा नहीं लेना चाहते तो भी यह हस्तान्तरण मान्य नहीं होगा। इस के लिए हिस्सा छोड़ने वाले दादा जी के लिए आवश्यक था कि वे शेष तीनों भाइयों के हक में या किसी एक भाई के हक में अपना हिस्सा छोड़ने की रिलीज डीड निष्पादित करवा लेते।

प के मामले में एक बार हिस्सा छोड़ देने वाले दादाजी अब हिस्सा मांग रहे हैं तो उन से कहा जा सकता है कि आप हिस्सा देने को तैयार हैं, लेकिन उन्हें दीवार गिराने और फिर से बनाने का खर्चा देना होगा। इस पर आपसी सहमति बन सकती है। एक और दादाजी भी भविष्य में अपना हिस्सा मांग सकते हैं। इस कारण यह आवश्यक है कि पाँचों भाइयों में से जो भी हिस्सा छोड़ना चाहता है वह अन्य के हक में अपने हिस्से की रिलीज डीड निष्पादित कर पंजीयन करवा दे। इस के बाद वह रिलीज किए गए हिस्से को फिर वापस नहीं मांग सकता है। अच्छा तो यह है कि सारे झगड़े एक साथ निपटा लिए जाएँ और फिर बँटवारानामा लिख कर उसे पंजीकृत करवा दिया जाए। यदि झगड़ा नहीं निपटता है तो आप बँटवारा करने और अपने हिस्से का अलग कब्जा मांगने के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत कर सकते हैं। वहाँ आपसी सहमति का उत्तर दे कर बँटवारा कराया जा सकता है।

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