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अनुकम्पा नियुक्ति पूरी तरह मेहरबानी है, पर सरकार द्वारा की गई मेहरबानी भी न्यायपूर्ण होनी चाहिए।

कानूनी सलाहसमस्या-

सीहोर, मध्य प्रदेश से विशाल शर्मा ने पूछा है-

मेरे पिता जी का देहान्त 27.05.2003 को हुआ था वे जिला कलेक्ट्री सीहोर में सहायक ग्रेड-2 में नौकरी में थे। मैं उस समय 16 वर्ष का था, मैं ने तुरन्त अनकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया। मैं 2005 में बालिग हुआ, मैं ने पुनः आवेदन किया, लेकिन दो वर्ष तक कुछ नहीं हुआ यह कहा गया कि स्थान रिक्त नहीं है। फिर 2006 में मेरी बहिन संविदा शिक्षक के रूप में नौकरी करने लगी। विभाग ने जाँच कराई और इस आधार पर आवेदन रद्द कर दिया कि परिवार का सदस्य (बहिन) नौकरी कर रही है। एक साल बाद उस का विवाह हो गया। मैं ने पुनः आवेदन किया है लेकिन मेरी सुनवाई नहीं हो रही है।

समाधान-

सेवा में रहते हुए कर्मचारी की मृत्यु हो जाने पर परिवार के सदस्य को मिलने वाली नौकरी अनुकंपा नौकरी है जिस का आधार पूरी तरह से मेहरबानी है। मेहरबानी का अर्थ है कोई करे तो करे न करे तो न करे। आप को आपत्ति उठाने का अधिकार नहीं है। लेकिन सरकार तो सब की है तो कानून यह कहता है कि सरकार किसी के प्रति मर्जी से अन्याय नहीं कर सकती उसे न्यायपूर्ण तरीके से काम करना चाहिए।

प के मामले में जब आप का आवेदन बहिन के संविदा शिक्षक के रूप में काम करने के कारण निरस्त की गई थी तभी आप को उच्च न्यायालय में उस आदेश के विरुद्ध रिट याचिका कर देनी चाहिए थी। अब आपने बहुत देरी कर दी है। तब उच्च न्यायालय यह देखता कि जिस दिन आपने आवेदन किया था उस दिन तथा पिता की मृत्यु के समय परिवार का कोई सदस्य नौकरी नहीं कर रहा था।

स मामले में आप अभी भी उच्च न्यायालय के किसी वकील से मिल कर सरकार को एक नोटिस दे दें और उस के बाद अपनी रिट याचिका उच्च न्यायालय में दाखिल करवाएँ। इस मामले में यदि आप का राहत मिल सकती है तो केवल उच्च न्यायालय से ही मिल सकती है। जरूरी नहीं कि वहाँ से भी राहत मिल जाए क्यों कि अनुकम्पा नियुक्ति के मामले में कानून बहुत लचीला है। लेकिन आप को प्रयत्न तो करना ही चाहिए।

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