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उच्च न्यायालय कानून के विरुद्ध कोई राहत प्रदान नहीं करेगा …

jobsसमस्या-

प्रहलाद कुमार सोनी ने  भीलवाडा, राजस्थान से समस्या भेजी है कि-

मैं वर्ष 2008 से राजस्थान सरकार द्वारा संचालित संविदा शिक्षक (विद्यार्थी मित्र) के रूप में संविदा पर कार्यरत रहा, 6 सालों तक लगातार सेवा में रखने के बाद सरकार ने हमें जुलाई 2014 में निकाल दिया। सरकार का ये तर्क है कि हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इस योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। माननीय कोर्ट का कहना है कि वर्तमान कानून के अनुसार ये शिक्षक सेवा में रहने योग्य नहीं हैं। मेरा मामला थोडा अलग है मैंने सरकार द्वारा शिक्षक भर्ती के लिए जो भी योग्यतायें निर्धारित है पूरी कर रखी हैं। इसके अलावा पिछली सरकार ने हमें 2013 में अनुभव के अंक देकर नियमित करने का प्रयास किया था जो एक वर्ष 10अंक दो वर्ष 20 अंक, तीन वर्ष 30 अंक तथा 70 %अंक कक्षा 10 के थे। लेकिन यह मामला भी राजस्थान उच्च न्यायालय में चला गया और हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार अधिकतम अनुभव के 15 अंक संविदाकर्मियो को दे सकती है वह मामला भी राज्य सरकार ने एसएलपी के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन प्रस्तुत किया। उसी दौरान 21/10/2013को हाईकोर्ट का फैसला हमारे खिलाफ आया। परन्तु दिसम्बर 2013में विधानसभा के चुनाव और अप्रैल 2014 में लोकसभा के चुनावो के कारण राज्य सरकार ने हमें सेवा में लगातार रखा और जैसे ही लोकसभा के चुनाव समाप्त हुए हमें नए सत्र जुलाई 2014 में निकाल दिया। जिससे हमारे सामने बेरोजगारी का संकट आ गया। इसी दौरान हम संविदाकर्मियो ने 30 दिन तक विधानसभा के सामने प्रदर्शन भी किया जिस पर सरकार ने हमें आश्वासन दिया कि आपके लिए कानून बनाकर कोई रास्ता निकाल लेंगे। पर तीन माह से हम बेरोजगार हैं अब आप से मैं ये व्यक्तिगत सलाह चाहता हूँ….जिसके तथ्य इस प्रकार है मैंने वर्ष 2010में आयोजित व्याख्याता परीक्षा दी जिसमें मै लिखित परीक्षा में सफल रहा और इंटरव्यू में मुझे उतने ही अंक मिले जितनी कट ऑफ़ गई। लेकिन मेरा चयन नहीं किया गया और मुझे वेटिंग लिस्ट में रखा गया क्योंकि राजस्थान सरकार के भर्ती नियमो के अनुसार समान अंक होने पर जिसकी जन्म तिथि पहले हो उसे नौकरी दी जाती है और मेरा चयन नहीं हो सका। जब कि उसी पद पर मैंने संविदा पर 6 वर्ष तक कार्य किया। तो क्या अब मैं अपनी नौकरी की रक्षा के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता हूँ।

समाधान-

र्वोच्च न्यायालय का मानना है कि केन्द्र व राज्य सरकारों में व पब्लिक सैक्टर अंडरटेकिंग सार्वजनिक क्षेत्र हैं। यहाँ किसी को भी स्थाई सेवा केवल और केवल प्रतियोगिता व नियमों के अनुसार ही होना चाहिए। नियम विरुद्ध कुछ भी नहीं होना चाहिए। यही कारण है कि संविदा शिक्षकों के मामले में उच्च न्यायालय का निर्णय संविदा शिक्षकों के विरुद्ध आया। न्यायालय का कहना है कि जब किसी पद पर नियुक्ति के लिए नियम बने हुए हैं तो उसी पद के लिए नियुक्ति किसी अन्य रीति से किया जाना सैंकड़ों सामान्य अभ्यर्थियों के साथ अन्याय है। राजस्थान सरकार ने इसी कारण यह आश्वासन दिया है कि कानून बना कर कोई रास्ता निकाल लेंगे। राजस्थान सरकार ऐसा कोई मार्ग निकालेगी भी तो उस कानून को को भी कोई न कोई चुनौती देने आ जाएगा। यदि स्वयं सरकार को अड़चन खड़ी करनी होगी तो वे ही इस के लिए किसी व्यक्ति को प्रेरित कर देंगे।

राजस्थान सरकार की स्थाई पद भरने की कोई नीयत प्रतीत नहीं होती। राजस्थान सरकार का कोई विभाग नहीं है जहाँ 25 से 30 प्रतिशत पद खाली न पड़े हों। इन रिक्त पदों के कारण ही राजस्थान सरकार के विभाग सुचारू रूप से कार्य नहीं कर पा रहे हैं। प्रत्येक जिले में जिस अधिकारी का एक एक पद है उन में पूरे संभाग के सभी जिला मुख्यालयों के पदों का कार्यभार एक ही अधिकारी देख रहा है। उस का पूरा सप्ताह तो एक जिला मुख्यालय से दूसरे जिला मुख्यालय तक यात्रा करने में निकल जाता है वह काम कब निपटाएगा।

प ने 2010 व्याख्याता भर्ती में वेटिंग लिस्ट में होने और जन्मतिथि के आधार पर आप की नियुक्ति न होने को चुनौती देने के मामले में हमारी राय मांगी है। यदि आप को नियुक्ति नियम के अनुसार नहीं मिल रही है तो उच्च न्यायालय भी आप को कोई राहत दे पाएगा यह नहीं लगता है। उस भर्ती में संविदा शिक्षक के रूप में छह वर्ष तक का आप का कार्य आप को कोई लाभ नहीं दे पाएगा यदि ऐसा नियमों में नहीं है। यदि इस एक आधार के अतिरिक्त और कोई आधार भी आप को उपलब्ध हो तो आप रिट याचिका प्रस्तुत कर सकते हैं।

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