औद्योगिक विवाद अधिनियम की वर्तमान व्यवस्था में सूराख की कोशिश
प्रस्तावित संशोधन विधेयक का प्रासंगिक अंश निम्न प्रकार है ……
4. In section 7 of the principal Act, in sub-section(3), after clause (e), the following clauses shall be inserted, namely:—
“(f) he is or has been a Deputy Chief Labour Commissioner (Central) or Joint Commissioner of the State Labour Department, having a degree in law and at least seven years’ experience in the labour department including three years of experience as Conciliation Officer: Provided that no such Deputy Chief Labour Commissioner or Joint Labour Commissioner shall be appointed unless he resigns from the service of the Central Government or State Government, as the case may be, before being appointed as the presiding officer; or (g) he is an officer of Indian Legal Service in Grade III with three years’ experience in the grade.”.
5. In section 7A of the principal Act, in sub-section (3), after clause (aa), the following clauses shall be inserted, namely:—
“(b) he is or has been a Deputy Chief Labour Commissioner (Central) or Joint Commissioner of the State Labour Department, having a degree in law and at least seven years’ experience in the labour department including three years of experience as Conciliation Officer: Provided that no such Deputy Chief Labour Commissioner or Joint Labour Commissioner shall be appointed unless he resigns from the service of the Central Government or State Government, as the case may be, before being appointed as the presiding officer; or (c) he is an officer of Indian Legal Service in Grade III with three years’ experience in the grade.”.
इस संशोधन को किए जाने का कारण और आशय यह बताया गया है कि श्रम न्यायालयों और औद्योगिक न्यायाधिकरणों को पर्याप्त मात्रा में अच्छे न्यायाधीश उपलब्ध नहीं होते जिस के कारण वे अक्सर खाली पड़े रहते हैं और ओद्योगिक विवादों के निपटान में देरी होती है। लेकिन यह आधार पूरी तरह अनुचित है। वास्तव में अच्छे न्यायाधीश नहीं होने के कारण कुछ भिन्न हैं। उन में सब से प्रमुख है कि उन्हें काम करने के लिए आवश्यक पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान नहीं की जाती हैं। वे राज्य सरकारों से सुविधाओं की मांग करते रहते हैं लेकिन राज्य सरकारें उन की बिलकुल नहीं सुनती हैं। मसलन बहुत से अधिकरणों में टाइप मशीनें ही तीस-तीस साल पुरानी हैं वे कम्प्यूटरों की मांग कर रहे हैं लेकिन राज्य सरकार सुनती नहीं है। अधिकरणों में कर्मचारी सेवा निवृत्त हो जाते हैं उन के स्थान पर नए कर्मचारी नियुक्त नहीं किए जाते हैं। पद रिक्त पड़े रहते हैं। अब दो कर्मचारी तो छह का काम नहीं कर सकते। राज्य सरकारों के लिए औद्योगिक विवादों का निपटारा उतना अहम् मसला नहीं है अपितु उन का निपटारा न होना और श्रमिक पक्ष का निपटारे की आस में इन अधिकरणों के चक्कर काट काट कर थक जाना और मर जाना अधिक अहम बात है औऱ राज्य सरकारें ऐसा होने देतीं हैं। उन की प्रतिबद्धता उद्योगपतियों के साथ है कर्मकारों के साथ नहीं।
फिर यदि आप को औद्योगिक न्यायाधि
आपके विचारों से सहमत हूँ.# निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन:09868262751, 09910350461 email: sirfiraa@gmail.com महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है.
बहुत सहि जानकारी दी आप ने, धन्यवाद
आपसे सहमत.
रामराम.