कानूनी कार्यवाही के साथ साथ अपने पैरों पर खड़े होने के प्रयास करें।
|समस्या –
ग्वालियर, मध्यप्रदेश से पूजा ने पूछा है –
मेरी शादी हिंदू रीति रिवाज से 2008 में हुई थी। शादी के बाद से ही मेरे ससुराल वाले मुझे परेशान करते थे। जब मैं गर्भवती हुई तो ससुराल वाले गर्भ गिरा दो कहने लगे। उन को बच्चा नहीं चाहिए था। मैं अपने बच्चे को नहीं मार सकती थी। कई बार मुझे और मेरे अजन्मे बच्चे को मरने की कोशिश की गयी। एक दिन मुझे आधी रात को घर से निकाल दिया मेरे पास न पैसे थे, न ही कोई और साधन। किसी तरह में महिला थाने पहुँची और अपनी आप बीती बताई। वहाँ के टीए ने मेरे पति को बुलवाया। पति ने मुझसे माफी मांगी और दुबारा ऐसा नहीं होगा, ऐसा कहकर मुझे अपनी शिकायत वापस लेने को कहा। मैं बेसहारा और बीमार थी। सब की बातें मान कर मैं ने अपनी शिकायत वापस ले ली। फिर मेरे पति मुझे घर की बजाय मेरे माता पिता के पास जबरदस्ती छोड़ गये। मेरी हालत बहुत बिगड़ चुकी थी। 2009 मे मैं ने एक बेटी को जन्म दिया। मेरे घर वाले मुझे और मेरी बेटी को किसी तरह ससुराल छोड़ आए। मेरे पति मुझ से बहुत बुरा बरताव करते थे। मेरी सास ने मेरे साथ कई बार मारपीट की। मेरी सास हर बात पर मुझे अपमानित करती थी। मानसिक रूप से मुझे पागल कर देगी ये धमकी देती थी। अपने माता पिता से पैसे लाओ बस यही एक मुद्दा होता था। मेरे माँ बाप ने अपनी क्षमता से ज्यादा दिया। एक दिन मेरे पति मुझे और मेरी बेटी को मेरे माता पिता के घर छोड़ गये। मैं ने उनसे ऐसा ना करने की बहुत मिन्नत की। पर उन्होंने नहीं सुना। मेरे बूढ़े माँ-बाप मेरा और मेरी बेटी का खर्चा बहुत मुश्किल से उठा पा रहे थे। मेरी दो छोटी बहनों की शादी का जिम्मा भी मेरे माता पिता पर था। मेरे ससुराल वाले मेरी बहनों को और मेरे माता पिता को डराते धमकाते थे। अपने परिवार की बदनामी की वजह से माँ ये सब सहती रही। एकदिन मेरे पति ने मुझसे तलाक़ के लिए नोटिस भेज दिया। मैं बहुत डर गयी। मेरे पति ना तो मुझे पैसे देते हैं। ना ही साथ रखते हैं। वो मुझसे रिश्ता तोड़ना चाहाते हैं। मैं क्या करूँ? कैसे अपनी बेटी को पालूँ? वकील को खरीद लिया है। सब कहते हैं मर जाओ तुम। मेरी ग़लती क्या है? मुझे नहीं पता। मैं और मेरी बेटी बहुत बुरी दशा में हैं। मैं क्या करूँ मुझे जीना है। और अपनी बेटी को बचाना है मेरी मदद करें। में क्या करूँ बताएँ?
समाधान –
पूजा जी, सब से अच्छी बात तो आप के पास यह है कि आप जीना चाहती हैं और अपनी बेटी को बचाना चाहती हैं। इस हालत में भी आप के इस जज्बा सलाम करने लायक है। आप की गलती ये है कि आप, आप के माता-पिता और बहनें यह सोचती हैं कि जीवन में एक स्त्री के लिए शादी करना, पति पर निर्भर रहना और उस की हर अच्छी बुरी बात को सहन करना चाहिए। लेकिन आप अपने खुद के जीवन से यह समझ चुकी हैं कि पति पर निर्भरता स्त्री के जीवन की सब से बड़ी हार और दुखदायी चीज है। इस कारण पहला काम तो ये करें कि आप अपने माता-पिता और बहनों को इस सोच से निकालें। उन्हें समझाएँ कि विवाह से बड़ी चीज लड़कियों और महिलाओं के लिए अपने पैरों पर खड़े होना है।
वकील को खरीद लिया है। आप की यह बात जमती नहीं है। यदि आप यह समझती हैं कि वकील को खरीद लिया है तो उस वकील से साफ कह दें कि वह आप की पैरवी न करे। आप अपने यहाँ के जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में आवेदन दे कर आप के मुकदमे लड़ने के लिए सहायता मांगें। विधिक सेवा प्राधिकरण अध्यक्ष जिला न्यायाधीश होते हैं तथा सचिव मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट होते हैं। आप उन में से किसी से भी व्यक्तिगत रूप से मिल कर अपनी व्यथा बता कर उन से मदद मांग सकती हैं।
आप को तुरन्त अपने व अपने बेटी के लिए धारा स्त्रियों के प्रति घरेलू हिंसा अधिनियम के अन्तर्गत आवेदन प्रस्तुत कर निर्वाह खर्च की तथा पृथक आवास के लिए आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए। यदि आप के पति तलाक की अर्जी पेश करें तो वहाँ जवाब देने के पहले धारा 24 हिन्दू विवाह अधिनियम में आवेदन कर के स्वयं तथा अपनी बेटी के लिए निर्वाह खर्च तथा न्यायालय आने जाने के खर्च हेतु आवेदन करना चाहिए। जब तक आप के पति निर्वाह खर्च न देंगे तब तक वह मुकदमा आगे न चलेगा। इस के अलावा आप 498-ए भारतीय दंड संहिता में आप के साथ हुई क्रूरता और मारपीट के लिए आप अपनी सास व पति के विरुद्ध पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराएँ। इसी रिपोर्ट में धारा 406 में अपने स्त्री-धन आप को न लौटाने की शिकायत भी करें। इस के अलावा आप धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता में अपने व अपनी पुत्री के लिए निर्वाह खर्च देने के लिए भी आवेदन कर सकती हैं।
इन सब कार्यवाहियों के अलावा सब से बड़ी बात यह है कि आप को अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास करना चाहिए। सब बड़े शहरों में कुछ संस्थाएँ महिलाओं की मदद करने वाली होती हैं। आप ऐसी ही किसी संस्था से संपर्क कर के मदद प्राप्त कर सकती हैं और वे आप को अपने पैरों पर खड़े होने में मदद कर सकती हैं। आप सीधे अपने राज्य के मुख्यमंत्री को तथा महिला व बाल कल्याण मंत्री को भी अपनी सारी व्यथा लिख कर भेज सकती हैं वहाँ से भी आप को मदद मिल सकती है।
जेलों में बंद निर्दोष कैदी
देश के कारागारों में जितने लोग बंद हैं उनमें 50 प्रतिशत से अधिक लोग निर्दोष हैं अथवा उनके द्वारा जो अपराध हुआ वह साधारण स्तर का था। यह कानून व्यवस्था की कमी है कि हजारों ऐसे लोग भी जेलों में पड़े हैं जिन्हें सरकार की भाषा में हवालाती या अंडर ट्रायल कहा जाता है। इसका अर्थ है कि अभी इन आरोपियों के बारे में सिद्ध नहीं हो सका कि उन्होंने अपराध किया है या नहीं। यह ऐसे लोग हैं जो बिना अपराध सिद्ध हुए वर्षो तक जेल की सलाखों में बंद हैं। अपराध के लिए जितना दंड कानून की किताब में उनके लिए लिखा है उससे कहीं ज्यादा समय वे आरोपी के रूप में सलाखों के पीछे बिता चुके हैं। जब यह अदालतों द्वारा बरी कर दिए जाते हैं तो इसका कोई जवाब नहीं होता कि उन्हें किसी दोष के लिए जेल की सजा काटनी पड़ी। क्या कोई उनके समय का मुआवजा दे सकता है? क्या कोई उम्र के बीते हुए दिन लौटा सकता है? कई बार तो जेल में पूरा का पूरा परिवार ही बंद हो जाता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जब लागू की गई तब उद्देश्य था कि महिलाओं विशेषकर बहुओं को ससुराल में मानसिक और शारीरिक यातना न सहनी पडे़। पहले तो इस धारा का सदुपयोग हुआ पर धीरे-धीरे 498-ए की आड़ में शोषण प्रारंभ हो गया। अगर कोई महिला ससुराल में किसी भी कारण प्रसन्न नहीं, उसे पति पसंद नहीं, सास का व्यवहार उसके अनुकूल नहीं, उसकी इच्छानुसार सभी सुविधाएं प्राप्त नहीं अथवा उसका अपना ही स्वभाव परिवार में अनबन का कारण बन जाता है तो इसी धारा का आश्रय लेकर अदालत में केस जाने लगे और पूरे परिवार को ही आरोपी बनाकर जेल में भेजना प्रारंभ हो गया। लुधियाना, नाभा, पटियाला, अमृतसर आदि जेलों में मैंने अपनी आंखों से ऐसे परिजनों की दुर्गति देखी है जो बहू से झगड़े के कारण वर्षो से कारागार में सड़ रहे हैँ, सिसक रहे हैं। उस परिवार की पीड़ा की क्या सीमा होगी जहां आरोप लगाने वाली युवती अथवा झगड़े के बाद आत्महत्या कर लेने वाली महिला का पति, देवर, जेठ, सास, जेठानी, देवरानी सभी जेल में बंद हैं। एक की गोद में तो नवजात शिशु भी था, जिसका जन्म ही जेल में हुआ। क्या कोई यह विश्वास करेगा कि सारा परिवार ही बुरे स्वभाव का है? क्या कोई यह मानेगा कि नवविवाहिता देवरानी भी उस महिला को तंग करेगी जो परिवार में उसकी जेठानी है? मेरा अपना यह अनुभव है कि जहां कोई युवती अपने पति को उसके परिवार से अलग करके संपत्ति का विभाजन नहीं करवा सकी उसने ऐसे ही आरोप लगावाए और अपने प्रभाव से अथवा रिश्तेदारों के बल पर पति के परिवार को उजाड़कर रख दिया।
अधिकांश लड़कियां किसी भी कारण जब आत्महत्या करती हैं तब हत्या का ही केस दर्ज होता है। जहां पुलिस आत्महत्या लिखती है, वहीं आंदोलन होते हैं। कभी-कभी तो पुलिस को विवश होकर हत्या का केस बनाना पड़ता है। यह बहुत बड़ा सच है कि आज भी सामाजिक कुरीतियों की शक्ति अधिक है। दहेज के कारण बेटियों के माता-पिता सहमे रहते हैं। जिनके बेटे शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में शिखर पर पहुंच गए,उनके लिए तो बेटे का विवाह दो-चार करोड़ का सौदा है। योग्य बेटियों के माता-पिता भी अपनी बेटी के लिए सुयोग्य वर नहीं ढूंढ पाते। यह भी सत्य है कि कई युवतियां दहेज दानव की सताई हुई हैं पर सच यह भी है कि सभी पारिवारिक विवाद दहेज के कारण नहीं होते, इसलिए हर विवाद को और हर आत्महत्या को दहेज से जोड़ देना सही नहीं। आज की आवश्यकता यह है कि हम मानसिकता बदलें, नया दृष्टिकोण अपनाएं और बदले समय के अनुसार ही किसी का समर्थन या विरोध करें। मैं यह भी चाहती हूं कि समाजसेवी संस्थाएं जेलों में जाकर अपनी आंखों से यह देखें कि विवाह संबंधी विवादों ने कितने घरों, परिवारों और व्यक्तियों को उजाड़ दिया है। यह उजड़ना तभी रुकेगा जब नई सोच आए, झूठी गवाही देने वालों और झूठे केस बनाने वालों के विरुद्ध जनजागरण प्रारंभ हो, अन्यथा विवाह की संस्था और संयुक्त परिवार कमजोर होते जाएंगे।
लेखिका लक्ष्मीकांता चावला पंजाब सरकार में मंत्री हैं
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जेलों में बंद निर्दोष कैदी | जागरण मेहमान कोना
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yah mamla bada hee pechida hai aapki salah bahoot hai sarahniy hai .