कानून की नजरों में सब समान क्यों नहीं हैं?
| अश्विनी कुमार ने पूछा है – – –
कहा जाता है कि कानून की नजर में हम सब समान हैं, लेकिन ऐसा नहीं होता। एक बार हम बाइक से जा रहे थे, हम तीन सवारी थे, हमारा चालान कर दिया गया। उस के बाद एक और बाइक को रोका जिस पर तीन सवारी थीं, लेकिन उस का चालान नहीं कर के उसे छोड़ दिया गया। ऐसा क्यों होता है? कई बार ऐसे मामले भी देखने में आते हैं कि एक ही जुर्म साबित होने पर सजा किसी को कम तो किसी को अधिक होती है।
उत्तर – – –
अश्विनी जी,
आप ने बहुत दिलचस्प और उपयोगी प्रश्न पूछा है। कानून की नजर में सब को समान समझा जाना चाहिए। हम इस बात को यूँ भी कह सकते हैं कि कानून सब के लिए समान होना चाहिए, वह हो भी सकता है। लेकिन यह तभी संभव है, जब कि देश में कानून का शासन हो। यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो समझिए देश में कानून का शासन नहीं है। यह कहा जाता है कि भारत में कानून का शासन है, भारत के संविधान में ऐसा ही विहित भी है। लेकिन व्यवहार में यह सही नहीं ठहरता है। तब हमें यह मानना चाहिए कि भारत में भी पूरी तरह कानून का शासन नहीं है। अपितु ऐसी ताकत का शासन है जो कानून को अपने मन मुताबिक बरतती है। हम सांसदों को चुन कर भेजते हैं उन से संसद बनती है। वहाँ जिसे बहुमत का समर्थन प्राप्त है उस की सरकार बन जाती है। प्राथमिक रूप से उस सरकार की जिम्मेदारी है कि वह कानून के अनुसार शासन चलाए। लेकिन वह जहाँ चाहती है वहाँ कानून का उपयोग करती है। जहाँ नहीं चाहती है वहाँ आँख मूंद लेती है। उसी तरह की उस की पुलिस है, उस का प्रशासन है। वह जहाँ चाहती है वहाँ कानून का उपयोग करती है, जहाँ चाहती है वहाँ आँख मूंद लेती है।
सरकार की इस बात पर नजर रखने के लिए संविधान ने न्यायपालिका को सरकार से स्वतंत्र बनाया है। लेकिन न्याय पालिका की नब्ज सरकार के हाथ में है। न्यायपालिका को चलाने के लिए वित्तीय व्यवस्था करना सरकार का काम है। सरकार क्यों चाहेगी कि उस पर नकेल रखने वाली न्यायपालिका मजबूत हो? वह न्यायपालिका के लिए पर्याप्त राशन-पानी की व्यवस्था ही नहीं करती। नतीजे में न्यायपालिका का विकास अवरुद्ध हो जाता है। अब अविकसित न्यायपालिका सरकार का कुछ बिगाड़े भी तो कितना बिगाड़ लेगी? भारत में संसद द्वारा पारित संकल्प के अनुसार 10 लाख की आबादी पर पचास अधीनस्थ न्यायालय होने चाहिए। इस तरह भारत में लगभग 60000 अधीनस्थ न्यायालय होने चाहिए लेकिन हैं लगभग 15 हजार। उन में भी लगभग तीन हजार न्यायाधीशों की नियुक्ति में विलम्ब के कारण काम नहीं कर पाती हैं। लगभग 12 हजार अदालतें 60000 अदालतों का काम जिस तरह कर सकती हैं वैसे ही कर रही हैं। एक विद्युत ट्रांसफोर्मर चार हजार मकानों को बिजली सप्लाई कर सकता है लेकिन उसे बीस हजार मकानों को बिजली सप्लाई करनी पड़े तो ऐसे ही करेगा कि हर स्थान पर केवल चार-चार घंटे बिजली मिलती रहे। इस व्यवस्था में कुछ लोग जुगाड़ कर के इस से अधिक बिजली भी हासिल कर सकते हैं और कर लेते हैं। वही हालत न्याय की भी हो गई है। न्याय सीमित है। उस में भी कुछ लोग इस बात का जुगाड़ कर लेते हैं कि उन्हें तो न्य
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2 Comments
… samay, kaal, paristhitiyaan ke badalaav ke saath saath najariyaa men badalaav ki sambhaavanaa rahatee hai jisake kaaran hamen ek hi prakaar ke drashy men badalaav najar aanaa sambhaavit rahtaa hai !!!
बहुत सुंदर विश्लेशन जी. धन्यवाद