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किन अपराधों में समझाौता संभव है किन में नहीं, जानने के लिए खुद गूगल सर्च करें और खोजें

समस्या-

मुझ पर अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम के साथ साथ भारतीय दंड संहिता के धारा 307, 354 आदि के तहत मुकदमा दायर किया गया है। इस मुकदमे मे कैसे समझौता किया जा सकता है?  इसके तहत कितने साल की सजा हो सकती है? कृपया विस्तार से बताएँ।

-राना प्रताप, ग्राम- देव नगर, पो. थाना मनेर, जि. पटना, बिहार

समाधान-

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं में किस धारा में कितना दंड दिया जा सकता है, किन धाराओं में समझौता किया जा सकता है और किन धाराओं में अदालत की अनुमति से समझौता किया जा सकता है और किन में समझौता संभव नहीं है यह सब दंड प्रक्रिया संहिता को पढ़ने से पता लग जाता है। अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम या अन्य किसी विशेष कानून के संबंध में यही सब जानने के लिए आप को वह विशेष कानून पढ़ना चाहिए। आप के प्रश्न में आप ने अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम की किस धारा में मुकदमा दर्ज है यह नहीं बताया है। फिर आदि का उल्लेख भी किया है। ऐसे में आप को विस्तार से क्या बताया जाए। बेहतर है कि इस तरह के सवालों के उत्तर खुद खोजें जाएँ। ये सभी कानून इंटरनेट पर उपलब्ध हैं आप गूगल सर्च करें और खुद पढ़ें।

आप ने जिन धाराओँ और कानूनों के अंतर्गत मुकदमे का उल्लेख किया है उन सभी के अंतर्गत आप को 10 वर्ष तक के कारावास और जुर्माने की सजा हो सकती है। इन धाराओं में न्यायालय के समक्ष समझौता कानून के अनुसार संभव नहीं है। यदि अभी तक प्रथम सूचना रिपोर्ट ही दर्ज हुई है और मामला अभी पुलिस के अन्वेषण के अधीन है तो इसी स्तर पर आपस में समझौता कर लीजिए। परिवादी स्वयं ही पुलिस को बयान दे दे कि हमारे बीच गलत फहमी हो गयी थी और वह मामले को वापस लेना चाहती है तो अदालत में आरोप पत्र दाखिल होने से रोका जा सकता है। एक बार यदि अदालत में आरोप पत्र प्रस्तुत हो गया तो मुकदमा फिर अंत तक लड़ना ही पड़ेगा।

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