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क्या शादी के बाद लड़की अपने पापा के घर रह सकती है?

समस्या –

हाथरस, उत्तर प्रदेश से प्रवीण पाठक ने पूछा है –

क्या शादी के बाद लड़की अपने पापा के घर रह सकती है? यदि हाँ तो किस आधार पर?

समाधान-

father & married daughter1  आप का प्रश्न बिना किसी संदर्भ के है। इस कारण इस प्रश्न के अनेक आयाम हो सकते हैं। एक संदर्भ इस का यह हो सकता है कि लड़की पिता के घर रहना चाहती है और पिता उसे अपने घर रखने से इन्कार कर रहा है। तब प्रश्न यूँ होता कि क्या एक लड़की को विवाह के उपरान्त भी अपने पिता के घर रहने का अधिकार प्राप्त है? दूसरा संदर्भ यह हो सकता है कि एक लड़की विवाह के उपरान्त भी अपने पिता के साथ रह रही है और उस के पिता के साथ रहने पर उस के पति को आपत्ति हो सकती है। तब प्रश्न यह होगा कि पत्नी क्या पति को त्याग कर पिता के घर रह सकती है? तीसरा संदर्भ यह हो सकता है कि पति और पिता दोनों को लड़की के पिता के साथ रहने पर आपत्ति नहीं है लेकिन पिता के साथ रह रहे भाइयों को आपत्ति हो सकती है। तब प्रश्न यह हो सकता है कि विवाह के उपरान्त भी पिता को पुत्री को अपने घर रखने का अधिकार है क्या? हम यहाँ इन तीनों ही प्रश्नों के संदर्भ में विचार करेंगे। लेकिन कुछ प्रश्न हम यहाँ और आप के विचारार्थ प्रस्तुत करना चाहते हैं।

क्या विवाह के उपरान्त भी एक लड़का अपने पिता के घर रह सकता है? क्या उसे ऐसा अधिकार है? क्या वह अपनी पत्नी को छोड़ कर पिता के घर रह सकता है? क्या विवाह के उपरान्त भी पिता को पुत्र को अपने घर रखने का अधिकार है? हमें आश्चर्य नहीं है कि इस तरह के प्रश्न लड़कों/पुरुषों के संबंध में आम तौर पर नहीं पूछे जाते। यहाँ तक कि इस तरह के प्रश्न किसी के मस्तिष्क में उत्पन्न ही नहीं होते। उस का मुख्य कारण है कि हमारा समाज ही नहीं वरन् दुनिया भर का समाज पुरुष प्रधान समाज है। इस समाज की सामान्य मान्यता है कि विवाह के उपरान्त स्त्री को उस के पति के घर जा कर रहना चाहिए। पिता के घर और संपत्ति पर विवाह के उपरान्त स्त्री का कोई अधिकार नहीं है। वर्तमान पुरुष प्रधान समाज स्त्री को मानुष ही नहीं समझता। वह समझता है कि स्त्री एक माल है। वह समझता ही नहीं है अपितु उस के लिए इस शब्द का प्रयोग भी करता है।

लेकिन समाज में उपस्थित जनतांत्रिक, समतावादी, साम्यवादी और स्त्री मुक्ति आंदोलन ने स्थिति को बदला है। इस बदलाव का परिणाम यह हुआ कि भारत के संविधान ने स्त्री और पुरुष को समान दर्जा दिया। उस के बाद कानूनों के बदलने का सिलसिला आरंभ हुआ। एक हद तक कानून बदले गए। लेकिन आज भी कानून के समक्ष स्त्री को पुरुष के समान दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है। हम आप के प्रश्न के संदर्भों में कानूनी स्थिति पर विचार करते हैं।

father & married daughter2भारत में प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता का मूल अधिकार प्रदान किया गया है। इस कारण से प्रत्येक वयस्क स्त्री या पुरुष जहाँ चाहे वहाँ निवास कर सकती/सकता है चाहे उस का विवाह हुआ है या वह अविवाहित है। यदि कोई चाहता/चाहती है कि वह पिता के घर रहे और यदि पिता को आपत्ति नहीं है तो वह पिता के घर रह सकता/सकती है। पिता के साथ रहने में किसी तरह की कोई बाधा नहीं है। यदि पिता के साथ रहने वाले व्यक्ति का पति या पत्नी भी उस के साथ रह रहा/रही है तो कोई संकट उत्पन्न नहीं होगा। पिता के घर पुत्र का रहना तो सामान्य बात है और अक्सर ऐसे पुत्र के साथ पत्नियाँ भी बहुधा रहती ही हैं। समस्या तब उत्पन्न होती है जब एक स्त्री विवाह के उपरान्त उस के पिता के साथ रहती है। अब यदि उस का पति भी उस के साथ आ कर रहने लगे और स्त्री के पिता को कोई आपत्ति नहीं हो तो कोई कानूनी समस्या उत्पन्न नहीं होती। बस इतना मात्र होता है कि समाज यह कहता है कि वह घर जमाई बन गया है। समाज इसे निन्दा की बात समझता है। पर यह भी अक्सर होता है और सामान्य बात है।

लेकिन यदि कोई स्त्री अपने पति की इच्छा के विरुद्ध अपने पिता के साथ रहती है तो कानूनी समस्या उत्पन्न होती है। प्रत्येक विवाहित स्त्री व पुरुष का यह दायित्व है कि वह अपने जीवनसाथी के साथ सामान्य दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करे। लेकिन इस से उस निर्वहन में बाधा उत्पन्न होती है। पति यह कह सकता है कि पत्नी सामान्य दाम्पत्य जीवन का निर्वाह नहीं कर रही है। वह कानून के समक्ष पत्नी से सामान्य दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करने की डिक्री प्राप्त करने का आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। न्यायालय इस आवेदन को स्वीकार कर पत्नी को पति के साथ सामान्य दाम्पत्य जीवन निर्वाह करने का आदेश डिक्री के माध्यम से दे सकता है। लेकिन न्यायालय ऐसा तभी कर सकता है जब कि पत्नी के पास अपने पति से अलग निवास करने का उचित कारण उपलब्ध न हो। पत्नी को ऐसा आदेश दे दिए जाने पर भी यदि पत्नी पति के साथ निवास नहीं करना चाहती है तो ऐसे आदेश की जबरन पालना नहीं कराई जा सकती है। ऐसे आदेश का प्रभाव मात्र इतना होता है कि पति को पत्नी से विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने का आधार प्राप्त हो जाता है।

father & married daughter3क और परिस्थिति यह हो सकती है कि पिता विवाहित पुत्री को अपने साथ रखना चाहता है लेकिन पिता के पुत्र आपत्ति करते हैं। इस से कोई कानूनी समस्या उत्पन्न नहीं होती। क्यों कि भाइयों को ऐसी आपत्ति करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।

क अन्य स्थिति यह हो सकती है कि विवाहित पुत्री पिता के घर रहना चाहती है लेकिन पिता इस के लिए तैयार नहीं है। वैसी स्थिति में पुत्री को यह अधिकार नहीं कि वह पिता के घर निवास कर सके। यदि विवाहित पुत्री असहाय है और उस का पति भी उस का भरण पोषण करने व आश्रय देने में सक्षम नहीं है तो वह पिता से भरण पोषण व आश्रय की मांग कर सकती है और इस के लिए न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर सकती है। न्यायालय पिता की क्षमता को देख कर उचित आदेश प्रदान कर सकता है।

ब से विकट स्थिति तो तब उत्पन्न होती है जब किसी स्त्री को अपने पति का आश्रय भी नहीं मिलता और पिता भी आश्रय देने को तैयार नहीं होता। वैसी स्थिति में यदि स्त्री स्वयं अपना भरण पोषण करने में समर्थ न हो तो उसे दर दर की ठोकरें खाने को विवश होना पड़ता है। इस कारण यह जरूरी है कि प्रत्येक स्त्री अपने पैरों पर खड़ी हो और अपना भरण पोषण करने में सक्षम बने। स्त्री मुक्ति का एक मात्र उपाय यही है कि स्त्रियाँ अपने पैरों पर खड़ी हों।

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