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दीवानी और अपराधिक मामलों में विरोधी निर्णय होना संभव है।

समस्या-

मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने 2014 में धारा 498ए आईपीसी में झूठी रिपोर्ट की। उसी आधार पर फेमिली कोर्ट ने 2018 मे डाइवोर्स की डिक्री पारित कर दी।  अब 2019 मे मे झूठे 498ए के केस में मैं बरी हो गया और कोर्ट ने कहा ये सोची समझी साजिश के साथ मेरी पत्नी ने डाइवोर्स लेने के लिए केस लगाया. अब मैं क्या करूँ जिससे इन झूठे लोगों के विरुद्ध कार्यवाही कर सकूँ?

-राज कुमार, उज्जैन (मध्य प्रदेश)

समाधान-

धारा 498ए आईपीसी में मुकदमा एक अपराधिक मुकदमा है जो किसी स्त्री पर उसके पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता किए जाने के कारण दर्ज होता है। इस तरह के मुकदमे में अपराध को संदेह के परे साबित करना होता है। आम तौर पर परिवादी स्त्री द्वारा सीधे या मजिस्ट्रेट को प्रस्तुत परिवाद पर मजिस्ट्रेट के आदेश से मुकदमा दर्ज होता है और पुलिस अनुसंधान कर न्यायालय में आरोप पत्र प्रस्तुत करती है। 498ए के अधिकांश मुकदमे इस कारण भी खारिज होते हैं कि अनुसंधान ठीक से नहीं होता। आम तौर पर अनुसंधान करने वाला अधिकारी प्रथम सूचना रिपोर्ट का समर्थन करने वाला बयान खुद ही लिख लेता है जिस से आरोप पत्र मंजूर हो जाए। बाद में गवाह अदालत में बयान देते समय कहता है कि उस ने तो ऐसा कोई बयान दिया ही नहीं। इस के अलावा भी अनेक कारण होते हैं जिस से अपराधिक मुकदमे में मुलजिम दोषी होते हुए भी बरी हो जाता है।

इस के विपरीत तलाक का मुकदमा एक दीवानी मुकदमा है। दीवानी मुकदमों में किसी भी तथ्य को संदेह के परे साबित नहीं करना होता अपितु सबूतों के बाहुल्य और प्रबलता के आधार पर निर्णय होता है। यहाँ मुकदमे में स्त्री की ओर से एक वकील पैरवी करता है। मुकदमे की ठीक से देखभाल करते हुए अपने मुवक्किल को राहत प्रदान करता है। दोनों न्यायालयों के निर्णयों का एक दूसरे पर कोई असर नहीं होता। दोनों मामलों में विरोधी निर्णय होना संभव है। हमने आप के दोनों मुकदमों के निर्णय नहीं पढ़े हैं। इस कारण दोनों में विरोधी निर्णयों के बारे में टिप्पणी करना उचित नहीं है।

आम तौर पर हमारा समाज ऐसा है कि उसमें स्त्रियों के प्रति क्रूरता पुरुषों के जीवन का एक हिस्सा हो गया है। बहुत सारी क्रूरताएँ जो स्त्रियों के प्रति की जाती हैं ऐसी हैं जिन पर 498ए का प्रकरण भी दर्ज हो जाता है और विवाह विच्छेद की डिक्री भी पारित की जा सकती है। लेकिन इन क्रूरताओं को हमारा समाज अभी तक सामान्य व्यवहार समझता है। मसलन सार्वजनिक रूप से अपनी पत्नी को भद्दी गालियाँ देना, उस के साथ मारपीट कर देना, उस पर दूसरे पुरुषों के साथ संबंध होने का आरोप लगा देना आदि ऐसी ही क्रूरताएँ हैं। जब स्त्री अदालत जाती है तो पति यही कहता है कि उसके विरुद्ध झूठा मुकदमा किया गया है।

आपके मामले में तलाक की डिक्री की आपने अपील की हो तो आप को अपनी बात अपील न्यायालय में कहने का अवसर है। अपराधिक मामले में आप को लगता है कि आप को बदनीयती से फंसाया गया था तो आप अपनी पत्नी और गवाहों के विरुद्ध दुर्भावनापूर्ण अभियोजन के लिए वाद संस्थित कर सकते हैं और मुआवजा प्राप्त कर सकते हैं। आप ने दो मुकदमे लड़े हैं, आपको वकील की सहायता प्राप्त है। आप अपने स्थानीय वकील से इस मामले में सलाह करें कि क्या किया जा सकता है। यदि उस से संतुष्ट न हों तो किसी वरिष्ठ वकील से सलाह करें।