नियमितिकरण के लिए आप को उच्च न्यायालय में याचिका करनी चाहिए
| प्रकाश महाले पूछते हैं –
मैं एक दैनिक वेतन भोगी/मस्टररोल कर्मचारी हूँ, मेरी प्रथम नियुक्ति दिनांक वर्ष 1997 की है, मप्र शासन ने वर्ष 2000 में समस्त दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को सेवा से पृथक कर दिया था, लेकिन बाद में सुश्री उमा भारती के मुख्यमंत्री बनने के बाद पुन: उन्हें सेवा में लेने का निर्णय लिया गया। इसके बाद वर्ष 2004-05 में समस्त विभागों द्वारा उन कर्मचारियों को पुन: काम पर रख लिया गया। लेकिन कुछ विभागों द्वारा ऐसा नहीं किया गया, मैं भी उन्हीं कर्मचारियों में शामिल हूँ। मेरे द्वारा लगातार पुन: सेवा में बहाली के आदेश का हवाला देते हुए नियोक्ता को लगातार आवेदन किये गये, 2006 में मुझे पुन: सेवा में ले लिया गया और अभी भी निरंतर सेवारत हूँ।
मप्र शासन द्वारा 10 वर्ष की सेवा पूर्ण कर चुके कर्मचारियों को नियमित करने का निर्णय लिया गया है, इसके लिए वर्ष 2000 से 2004 तक के सेवा ब्रेक को शिथिल करने का निर्णय भी लिया गया है, चूंकि मेरी पुन:नियुक्ति 2006 में हुई है, तो क्या मेरे प्रकरण में नियमितीकरण की कार्यवाही संभव है, हालांकि मेरे द्वारा अब तक किसी प्रकार का वाद दायर नहीं किया गया है। मेरी पुन: बहाली में नियोक्ता के स्तर से ही विलम्ब हुआ है…. कृपया आवश्यक सुझाव देते हुए सहायता करें।
मप्र शासन द्वारा 10 वर्ष की सेवा पूर्ण कर चुके कर्मचारियों को नियमित करने का निर्णय लिया गया है, इसके लिए वर्ष 2000 से 2004 तक के सेवा ब्रेक को शिथिल करने का निर्णय भी लिया गया है, चूंकि मेरी पुन:नियुक्ति 2006 में हुई है, तो क्या मेरे प्रकरण में नियमितीकरण की कार्यवाही संभव है, हालांकि मेरे द्वारा अब तक किसी प्रकार का वाद दायर नहीं किया गया है। मेरी पुन: बहाली में नियोक्ता के स्तर से ही विलम्ब हुआ है…. कृपया आवश्यक सुझाव देते हुए सहायता करें।
उत्तर –
महाले जी,
आप के मामले में राज्य सरकार द्वारा कर्मचारियों को नियमित करने के लिए 2000 से 2004 तक के सेवा ब्रेक को शिथिल करने के लिए जो निर्णय लिया गया है, उस का जो परिपत्र राज्य सरकार द्वारा जारी किया गया है वह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उसे हम ने नहीं देखा है। उस में केवल 2000 से 2004 तक का सेवा ब्रेक शिथिल करने का ही निर्णय लिया गया है तो उस से आप को कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। लेकिन यदि उस में यह उल्लेख है कि 2004 के आदेश से जिन लोगों को पुनर्नियुक्ति दी गई है उन के सेवा ब्रेक के काल को सेवा में मानते हुए नियमितिकरण के लिए उन्हें निरंतर सेवा में माना जाएगा, तो आप उस का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। अन्यथा आप को न्यायालय की शरण लेना होगा।
इस के लिए आप को वर्ष 2004 में की गई आप की सेवा समाप्ति को चुनौती देते हुए यह विवाद उठाना पड़ेगा कि आप की सेवा समाप्ति अनुचित और अवैध थी जिसके कारण आप को निरंतरता के साथ पुनः सेवा में लिए जाने का अधिकार प्राप्त था। राज्य सरकार के आदेश के अनुसार आप को 2004 में ही सेवा में पुनः वापस ले लिया जाना चाहिए था। आप को सेवा में पुनः नहीं लिया गया यह आप के विभाग और राज्य सरकार की त्रुटि थी, आप की नहीं। इस कारण से आप की सेवा में न रहने की अवधि को भी सेवा में निरंतरता मानते हुए आप की प्रथम नियुक्ति से सेवा के वर्षों की गणना की जा कर दस वर्ष पूर्ण होने की तिथि से आप को नियमितिकरण का लाभ दिया जाए।
आप को इस के
लिए तुरंत एक नोटिस न्याय प्राप्ति के लिए राज्य सरकार आप के विभाग के प्रमुख और आप के नियुक्ति अधिकारी को वकील के माध्यम से तुरंत प्रेषित करना चाहिए। यदि आप का विभाग उद्योग की श्रेणी में आता है और आप श्रमिक की श्रेणी में तो आप इस संबंध में अपने विभाग की ट्रेड यूनियन के माध्यम से यह विवाद श्रम विभाग में उठा सकते हैं। वहाँ से असफल वार्ता प्रतिवेदन राज्य सरकार को भेजा जाएगा। राज्य सरकार यदि आप के विवाद को किसी श्रम न्यायालय या औद्योगिक न्यायाधिकरण को न्याय निर्णयन के लिए संप्रेषित करती है तो वह न्यायालय आप के मामले में निर्णय दे सकता है। यदि आप ट्रेड यूनियन का सहयोग प्राप्त न कर सकते हों तो। यूनियन के समर्थन के अभाव में आप का विवाद एक औद्योगिक विवाद नहीं बन पाएगा। लेकिन वैसी अवस्था में आप अपना विवाद सीधे एक रिट याचिका द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष उठा सकते हैं, वहाँ आप अपनी ओर से यह तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं कि आप को किसी भी यूनियन का समर्थन प्राप्त न होने के कारण आप का विवाद औद्योगिक विवाद की श्रेणी में नहीं आता है और उच्चन्यायालय को इस मामले पर क्षेत्राधिकार प्राप्त है। मेरे विचार में आप के लिए दूसरा उपाय अधिक बेहतर होगा। आप को इस संबंध में नोटिस देने के लिए उच्च न्यायालय में सेवा संबंधी मामलों की प्रेक्टिस करने वाले वकील से संपर्क करना चाहिए जिस से बाद में रिट याचिका करने के लिए भी उन का ही सहयोग प्राप्त किया जा सके।
लिए तुरंत एक नोटिस न्याय प्राप्ति के लिए राज्य सरकार आप के विभाग के प्रमुख और आप के नियुक्ति अधिकारी को वकील के माध्यम से तुरंत प्रेषित करना चाहिए। यदि आप का विभाग उद्योग की श्रेणी में आता है और आप श्रमिक की श्रेणी में तो आप इस संबंध में अपने विभाग की ट्रेड यूनियन के माध्यम से यह विवाद श्रम विभाग में उठा सकते हैं। वहाँ से असफल वार्ता प्रतिवेदन राज्य सरकार को भेजा जाएगा। राज्य सरकार यदि आप के विवाद को किसी श्रम न्यायालय या औद्योगिक न्यायाधिकरण को न्याय निर्णयन के लिए संप्रेषित करती है तो वह न्यायालय आप के मामले में निर्णय दे सकता है। यदि आप ट्रेड यूनियन का सहयोग प्राप्त न कर सकते हों तो। यूनियन के समर्थन के अभाव में आप का विवाद एक औद्योगिक विवाद नहीं बन पाएगा। लेकिन वैसी अवस्था में आप अपना विवाद सीधे एक रिट याचिका द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष उठा सकते हैं, वहाँ आप अपनी ओर से यह तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं कि आप को किसी भी यूनियन का समर्थन प्राप्त न होने के कारण आप का विवाद औद्योगिक विवाद की श्रेणी में नहीं आता है और उच्चन्यायालय को इस मामले पर क्षेत्राधिकार प्राप्त है। मेरे विचार में आप के लिए दूसरा उपाय अधिक बेहतर होगा। आप को इस संबंध में नोटिस देने के लिए उच्च न्यायालय में सेवा संबंधी मामलों की प्रेक्टिस करने वाले वकील से संपर्क करना चाहिए जिस से बाद में रिट याचिका करने के लिए भी उन का ही सहयोग प्राप्त किया जा सके।
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8 Comments
आपकी सलाहें अब जनसंदेश में भी नियमित पढ़ने को मिल रही हैं। अच्छा लगता है।
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
ब्लॉगवाणी: अपने सुझाव अवश्य बताएं।
बहुत अच्छी जानकारी जी धन्यवाद
मेरा अनुमान है कि अन्य राज्यों में भी बहुत से कामगार सरकार के साथ बदलती नीतियों का खामियाजा भुगत रहे हैं। शायद उन्हें भी कोई राह मिल सके।
बहुत सुंदर जानकारी.
रामराम.
अच्छी जानकारी दी है!हवे अ गुड डे ! मेरे ब्लॉग पर आये !
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अच्छी जानकारी.
बाप रे !
बहुत ही कठिन लीगल मैटर है।
भाग झपाटे यहाँ से।
हा हा।
होली की बहुत बहुत शुभकामनायें आपको अंकलजी।
आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है.