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मिथ्या प्रथम सूचना रिपोर्टे निरस्त कराने के लिए हाईकोर्ट में निगरानी याचिका प्रस्तुत करें

Cr.P.C.समस्या-

गायत्री कँवर ने जगदारी जिला भीलवाड़ा राजस्थान से समस्या भेजी है कि-

मारा परिवार करीब ढाई साल से गांव जगदारी जिला भीलवाड़ा में खेत पर ही मकान बना कर रह रहा है। मेरे माता-पिता, बहिन और भैया। हम मूलतः कोटा के रहनेवाले हैं। पापा की जे.के. फैक्ट्री से नोकरी छूटने के बाद यहाँ खेत खरीदे और अब हम यहाँ रहते हैँ। मेरे 3 भाई हैं, बीच वाले भाई के खिलाफ रावतभाटा थाने में 1 मई 2013 को उनके ससुर रेंखेड़ा निवासी श्री तेज सिंह ने 498ए, 406, 323 आईपीसी में मामला इस्तगासा से दर्ज करवाया था। जिस का एफआईआर नं. 107/13 है जो पूरी तरह झूठी कहानी पर आधारित है। जब कि मेरे भैया शिवराज ने कोटा में महावीर नगर थाने में मेरी भाभी के पीहर वालों के खिलाफ परिवाद दर्ज करवा दिया था। जिस में कहा था कि मेरी पत्नी का जेके लोन अस्पताल में उपचार करवा रहा था। उसे कैंसर की बीमारी है। लेकिन मेरे साले ने और गायनॉलॉजिस्ट डाक्टर ने बच्चेदानी निकलवा दी। जिस से मेरी पत्नी की जान को जोखिम हो गया आदि आदि…। 20 सितम्बर 2013 को मेरी भाभी अजब कँवर ओर 30 दिसंबर को भाभी के पिता श्री तेज सिंह की गाँव रेंखेड़ा में मृत्यु हो गयी। दोनोँ ही मामलो में साले ब्रजराजि सिंह ने ना तो पुलिस को सूचना दी और ना ही पोस्टमार्टम करवाया। हम लोगों को भी सूचना भी नहीं दी।मेरी भाभी के 1 बेटी हे जो अभी मेरे भैया के पास रह रही है। मेरा भैया ऑटो चालक है। हम काफ़ी ग़रीब परिवार से हैं। आज दि. 20-9-014 को रावतभाटा से 2 पुलिस वाले हमारे घर पर आए ओर बोलने लगे कि शिवराज कहाँ है उस के खिलाफ 498ए का मामला दर्ज है रावतभाटा में उसे ले जाने आए हैं। मेरे पापा ने कहा कि वो यहाँ नहीं है ओर पता नहीं कहाँ गया। इस बात पर पुलिस वाले गुस्सा हो गये और कहा कि बताओ नहीं तो तुम्हें पकड़ ले जाएंगे। कहा सुनी के बाद वो शांत हुए और एक नोटिस दिया और पापा के हस्ताक्षर करवाए। यह धारा 9 या 14 का नोटिस था। यानी मामला दर्ज होने के 16 माह बाद पुलिस को नोटिस देने की याद आई। बड़ा सवाल ये है कि जब मेरे भाई के जीवन से उन की पत्नी को कुदरत ने दूर कर दिया और एक बेटी है जो अभी उन के पास है। जिन्हों ने मामला दर्ज करवाया था वो भी मर चुके हैं। तो ऐसे में पुलिस एफआर क्यूं नहीं लगा पा रही है ओर पुलिस का हम लोगों को परेशान करना कहाँ तक उचित है ? क्या हम लोगों को न्याय मिलेगा ? पूरा परिवार काफ़ी मानसिक तनाव में है और मेरे भैया का कुछ पता नहीं कहाँ जाते हैं, कहाँ हैं? पुलिस के डर से वे भी काफ़ी मानसिक तनाव में हैं डर लगता है वे कहीं ग़लत कदम ना उठा लें। अब हमें क्या करना चाहिए। इस परेशानी का हल कैसे हो?

समाधान-

क्त मामले में एक प्रथम सूचना रिपोर्ट न्यायालय के परिवाद के माध्यम से पुलिस थाना रावतभाटा में दर्ज करवाई गई थी। इस प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति न्यायिक मजिस्ट्रेट रावतभाटा के कार्यालय में उपलब्ध होगी। सब से पहले आप को उक्त प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त करनी चाहिए। जिस से यह पता लगाया जा सके कि उस रिपोर्ट में किन तथ्यों के आधार पर किस किस अपराध के आरोप उन पर लगाए हैं। इस रिपोर्ट का अध्ययन किसी अच्छे वकील से कराया जाना चाहिए।

स प्रथम सूचना रिपोर्ट में आप की भाभी के मामले में भाई पर आरोप हैं और दर्ज कराने वाले पिता की मृत्यु हो चुकी है वैसी स्थिति में मामला आगे चलने योग्य है या नहीं इस तथ्य की जाँच करने के उपरान्त राजस्थान उच्च न्यायालय में उक्त प्रथम सूचना रिपोर्ट को निरस्त कराने के लिए 482 दंड प्रक्रिया संहिता में निगरानी याचिका प्रस्तुत की जा सकती है और प्रथम सूचना रिपोर्ट को निरस्त कराया जा सकता है।

दि अध्ययन के बाद भी ऐसा लगता है कि उच्च न्यायालय इस मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट को निरस्त नहीं करेगा तो आप के भाई को चित्तौड़ जिला एवं सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत का आवेदन प्रस्तुत कर जमानत करवा लेनी चाहिए। जिस से पुलिस का अनावश्यक दबाव आप लोगों के मन से उतर जाए और भाई अपना काम ठीक से कर सकें।

स तरह के मामले गलत और मिथ्या होते हुए भी लोग पुलिस, अदालत और फैसले से डरने लगते हैं और डर में इधर उधर भागते रहते हैं। जिस से बहुत पैसे की हानि और मानसिक यंत्रणा होती है। किसी भी मिथ्या मामले का मुकाबला भाग कर नहीं किया जा सकता बल्कि उस का सामना कर के ही किया जा सकता है। कोई कितना ही गरीब और लाचार क्यों न हो वह अदालत में मामले का मुकाबला तो कर ही सकता है। इस तरह के मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट निरस्त न भी हो और अभियुक्त को गिरफ्तार कर भी लिया जाए तो एक दो दिन या एक दो सप्ताह में उस की जमानत हो जाएगी। इस के बाद कम से कम डर और आशंका तो कम हो जाएगी। जिस से सामान्य जीवन जिया जा सकेगा।

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