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नॉमिनी केवल ट्रस्टी होता है, मृतक की संपत्ति का स्वामी नहीं…

muslim inheritanceसमस्या-

लखनऊ, उत्तर प्रदेश से वीर बहादुर ने पूछा है-

मेरे पिताजी की घर के बाहरी हिस्से में दो दुकाने थी। एक मुझे और एक मेरे बड़े भाई को दी थी। पिताजी को आशंका थी कि हम दोनों अपनी दुकाने किराये पर किसी अन्य व्यक्ति को न दे दें, इस हेतु उन्होने सन् 1986 में हम दोनो भाइयों से अलग अलग 10 रुपये के स्टाम्प पर किरायानामा लिखा लिया जिसमें पिता जी द्वारा लिखाया गया कि हमें पैसे की आवश्यकता है अतः मै 100@- किराये पर दुकान और दो कमरे इनको रहने हेतु दे रहा हूँ, ये अन्य किसी सिकमी किरायेदार को नही रखेंगे, उस एग्रीमेन्ट में कोई समय सीमा भी नही लिखी गयी। जिस व्यक्ति से स्टाम्प पर एग्रीमेन्ट लिखवाया था उसी को गवाह भी बना दिया इस प्रकार एक ही गवाह है एग्रीमेन्ट भी अनरजिस्टर्ड है। उपरोक्त एग्रीमेन्ट के अतिरिक्त दुबारा एग्रीमेन्ट नही कराया गया। 7 नवम्बर 2012 को पिताजी का देहान्त हो गया पिताजी सरकारी कर्मचारी थे ट्रेजरी द्वारा जारी पेन्शन फार्म में उनके द्वारा भरा गया कि (मेरी मृत्यु होने की दशा में पेन्शन सम्बन्धी अवशेष भुगतान ज्योति बहादुर अर्थात छोटे भाई को किया जाय) इस आधार पर छोटे भाई द्वारा पिता जी के बैंक सेविंग एकाउण्ट में पिताजी के जीवनकाल में आये पेंशन धनराशि को भी अपना बता कर नही दिया जा रहा है जबकि बैंक में पिताजी द्वारा किसी को नामित नही किया गया है। साथ ही हम दोनो भाइयों को छोटे भाई द्वारा घर में भी हिस्सा नहीं दिया जा रहा है, कहा जा रहा है कि हम दोनो किरायेदार हैं और वह मालिक है हम 3 भाई एवं 3 बहन हैं पिता द्वारा किसी को वसीयत नही की गयी है। कृपया बतायें क्या हम दोनो भाइयों को बैंक में जमा धनराशि एवं घर में हिस्सा मिल पायेगा?

समाधान-

प दोनों भाइयों के पास जो दुकानें हैं वे आप के कब्जे में हैं उन पर कब्जा बनाए रखें। आप के पिता जी की समस्त चल अचल संपत्ति में आप छहों भाई बहिनों का हिस्सा है। आप के छोटे भाई के कहने से कि वह मालिक है और आप किराएदार हैं कुछ नहीं होता। जो भी पेन्शन आदि राशि आप के पिताजी के बैंक खाते में पहले आ चुकी है वह भी आप सब की है और यदि बाद में कोई राशि मिलने वाली है तो वह भी आप सब की है। किसी भी मामले में नोमिनेशन का अर्थ सिर्फ इतना होता है कि नोमिनी उस धन को प्राप्त कर सकता है। लेकिन नोमिनी उस धन का ट्रस्टी मात्र होता है और उस का दायित्व होता है कि वह उस धन को मृतक के उत्तराधिकारियों में उन के हिस्सों के मुताबिक बाँट दे।

प को चाहिए कि आप उक्त संपत्ति के बँटवारे के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत करें साथ में एक अस्थाई निषेधाज्ञा का आवेदन भी प्रस्तुत करें कि जो चल-अचल संपत्ति आपके पिता की है उसे खुर्द बुर्द न किया जाए। इस से संपत्ति अपने मूल स्वरूप में बनी रहेगी और दावा डिक्री होने पर प्रत्येक हिस्सेदार को उस का हिस्सा प्राप्त हो जाएगा।

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