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नौकरी प्राप्त करने के समय नियोजक को गलत सूचना देना या महत्वपूर्ण तथ्य छुपाना गंभीर दुराचरण है।

समस्या-

भोपाल, मध्य प्रदेश से रमेश कुमार ने पूछा है-

मैं शासकीय कार्यालय में नौकरी करता हूँ।  एक माह पहले एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी  के पद पर मेरी नियुक्ति हुई है।  अब उस का पुलिस सत्यापन चल रहा है।  कोई छह वर्ष पूर्व मुझ पर गेम्बलिंग एक्ट की धारा-13 के अंतर्गत 100-150 रुपए का जुर्माना हुआ था।  पिछले छह वर्ष में मेरा रिकार्ड बिलकुल साफ रहा है। तो क्या मुझे इस आधार पर नौकरी से हटाया जा सकता है?

समाधान-

employmentहाँ सेवा नियम की कोई बात नहीं है। समस्या ये है कि किसी भी नौकरी के समय जो आवेदन मांगा जाता है उस में पूछा जाता है कि आप के विरुद्ध कोई अपराधिक मुकदमा तो नहीं चला है? या नहीं चल रहा है? या किसी भी अपराधिक मुकदमे में कोई सजा तो नहीं हुई है? यदि हाँ तो उस का विवरण दें।  आम तौर पर नौकरी चाहने वाला व्यक्ति नहीं में इस का उत्तर दे देता है, जिस का अर्थ यह है कि उस के विरुद्ध कभी कोई अपराधिक मुकदमा नहीं चला है और न ही चल रहा है और उसे कभी दंडित नहीं किया है।

नौकरी के बाद में पुलिस सत्यापन में या कभी भी किसी सूचना के आधार पर यह पता लगता है कि कर्मचारी  के द्वारा दी गई उक्त सूचना गलत थी।  तो ऐसी स्थिति में कर्मचारी पर इस दुराचरण का आरोप लगता है कि उस ने अपने नियोजक को मिथ्या सूचना दे कर या महत्वपूर्ण तथ्य छुपा कर नौकरी प्राप्त की है।

हाँ मामला इस बात का नहीं है कि कर्मचारी के विरुद्ध मामला कितना गंभीर या अगंभीर था। मामला यह बनता है कि कर्मचारी पर यह विश्वास किया था कि उस ने जो सूचनाएँ अपने बारे में नियोजक को दी थी वे सही होंगी।  लेकिन वे गलत निकली और इस तरह कर्मचारी ने नियोजक के विश्वास को तोड़ा। इस तरह के मामलों में कर्मचारी को सेवा से मुक्त भी किया जा सकता है, यदि वह प्रोबेशन पर है तो उस का प्रोबेशन समाप्त होने पर उसे नौकरी से हटाया जा सकता है  या फिर उसे कोई मामूली दंड दे कर नौकरी पर भी रखा जा सकता है।

ह भी सोचा जा सकता है कि यदि पुलिस किसी तरह वेरीफिकेशन में इस तथ्य को कार्यालय के सामने न रखे तो उस की नौकरी बची रहेगी।  लेकिन जब भी यह मामला नियोजक के सामने आएगा तब वह कर्मचारी को आरोप पत्र दे कर जाँच कर के दंडित कर सकता है और उपरोक्त कोई भी दंड दे सकता है। ऐसे मामलों में बेहतर यही है कि पुलिस वेरीफिकेशन को आने दिया जाए। उस के बाद नियोजक को निर्णय लेने दिया जाए। यदि निर्णय कर्मचारी के विरुद्ध जाता है तो वह उसे न्यायालय या सेवा अधिकरण के समक्षघ चुनौती दे सकता है।