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न्यायालय में गवाही होने के उपरान्त ही धारा 340 दं.प्र.संहिता का आवेदन प्रस्तुत करें।

rp_Desertion-marriage.jpgसमस्या-

प्रमोद ने भिलाई छत्तीसगढ़ से पूछा है-

त्नी व ससुराल वालों ने मेरे व मेरे परिवार के विरुद्ध आजमगढ़ न्यायालय (उ.प्र.) में डी.वी. एक्ट 2005, 125, 498ए, 323, 504, 506, 3/4 डी.पी. एक्ट के तहत झूठा मुकदमा लगाया है। उसने अपने आरोप पत्र में दहेज मांगने, दिनांक 15/08/2015 को मार-पीट गाली-गलौज करके घर (गांव के घर) से निकाल देने का आरोप लगाया है। उसने अपने गांव के सरपंच से फर्जी कागज बनवाया है जिसमें उसने शादी का स्थान उसके गांव कोलमोदीपुर (आजमगढ़) को दर्शाया व उसे न्यायालय में लगाया है। जबकि शादी दिनांक 22/02/2015 को गाजीपुर (उ.प्र.) में होने के गवाह व सबूत हैं तथा दिनांक 15/08/2015 को मैं अपने गांव के घर में नहीं था उस दिन मैं ट्रैन से यात्रा कर रहा था उसका टिकट व गवाह हैं। मेरे भाई भी गांव में नहीं थे वे हमारे मूल- निवास भिलाई (छ.ग.) में थे।  मेरे पास ये भी सबूत है कि पत्नी के विदाई के दिनांक 14/08/2015 को ही पत्नी अपने पिता व रिश्तेदार के साथ मिलकर गांव-समाज व पंचायत के सामने अपने मांग का सिन्दूर पोंछकर तलाक देने की बात कहकर अपना पूरा सामान गहना व हमलोगों से रुपये लेकर अपने मायके चली गयी थी।  मेरे पास पत्नी के द्वारा दिया हुआ नोटरियल इकरारनामा/ शपथपूर्वक कथन है जिसमें स्पष्ट लिखा है कि मैं और मेरा परिवार कभी भी उससे या उसके परिवार से धन- दहेज की मांग नहीं किये है, कभी भी उसके साथ मार- पीट गाली गलौज व दुर्व्यवहार नहीं किया है। उल्टा पत्नी ने ही मेरे व मेरे परिवार वालो से गाली गलौज व दुर्व्यवहार किया है तथा उसके तलाक देना व उसकी धमकियों का विवरण है। उसने यह नोटरी अपने मायके (गाजीपुर) में रहते हुए गाजीपुर न्यायालय में दिनांक 07/12/2015 को कर के दिया है। जिसमें उसका फोटो व हस्ताक्षर तथा उसके पिता व चार गवाहों के हस्ताक्षर हैं।  मेरे पास गवाह दस्तावेजी सबूत है जिससे यह साबित हो जायेगा कि मैं और मेरा परिवार निर्दोष है तथा पत्नी व ससुराल वाले दोषी साबित हो जायेंगे। मेरे ससुराल वाले किसी भी तरह से समझौता नहीं करना चाहते हैं। मेरा प्रश्न आप से यह है कि क्या मैं सीआरपीसी की धारा 340 के तहत मुकदमा कर सकता हूँ यदि हाँ तो किस प्रकार से और किस न्यायालय में (मेरी शादी के स्थान गाजीपुर या मूल निवास भिलाई में) और यदि नहीं तो किस वजह से नहीं कर सकता हूँ इसका कारण बताईये । यह भी जानना चाहता हूँ कि और कौन- कौन सा मुकदमा उनके विरुद्ध कर सकता हूँ?

समाधान-

प ने अपनी समस्या से संबंधित काफी तथ्य यहाँ रखे हैं। हमारी अपराधिक न्याय व्यवस्था ऐसी है कि जब तक न्यायालय किसी अपराधिक मामले में प्रसंज्ञान नहीं ले लेता तब तक अभियुक्त को कुछ कहने का अधिकार नहीं है, अदालत को भी उसे सुनने का अधिकार नहीं है। प्रसंज्ञान लेने के उपरान्त आरोप विरचित करने के लिए बहस होती है वहाँ अभियुक्त को सुनवाई का अवसर प्राप्त होता है वहाँ आप अपनी बात कह सकते हैं, लेकिन वहाँ भी आप के बचाव वाले सबूतों को नहीं देखा जाएगा।

जब मुकदमे की सुनवाई होगी तब आप को गवाहों से जिरह का अवसर मिलेगा। अभियोजन पक्ष की गवाही हो जाने के उपरान्त आप को बचाव में साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर मिलेगा तब आप इन सारे सबूतों का उपयोग कर सकते हैं। मुकदमे तो आप को लड़ने ही होंगे।

धारा 340 दंड प्रक्रिया संहिता में आप उसी न्यायालय को शिकायत प्रस्तुत कर सकते हैं जहाँ आप के विरुद्ध झूठे सबूत या गवाही आदि दी जा रही है। पर यदि आप अभी यह आवेदन प्रस्तुत करेंगे तो यह जल्दबाजी होगी। पहले उन सबूतों को गवाही से प्रमाणित हो जाने दीजिए तभी तो आप धारा 340 के अन्तर्गत आवेदन दे सकेंगे।

आप किन किन धाराओं के अन्तर्गत धारा 340 का आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं यह आप की सामग्री का अध्ययन कर तथा आप से बातचीत कर के आप के वकील तय कर सकते हैं।

फिर भी आप को लगता है कि प्रथम दृष्टया ही आप यह साबित कर सकते हैं कि आप के विरुद्ध किए गए मुकदमे झूठे हैं तो आप प्रथम सूचना रिपोर्ट तथा मुकदमा रद्द कराने के लिए उच्च न्यायालय में धारा 482 के अन्तर्गत रिविजन याचिका दायर कर सकते हैं।

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