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न्यायालय से निर्दोष निर्णय प्राप्त करने के लिए पक्षकारों का सजग रहना आवश्यक

दीवानी प्रक्रिया संहिता में न्यायालय को अनेक अधिकार प्रदान किए गए हैं जिन के द्वारा वह अन्यान्य परिस्थितियों में कोई भी कदम स्वेच्छा से न्याय प्रदान करने के लिए उठा सकता है। लेकिन आज जब देश में न्यायालयों की कमी है और मुकदमे की सुनवाई पूर्ण कर निर्णय पारित करने में बहुत समय लग रहा है। न्यायाधीशों पर दबाव रहता है कि वे मुकदमे मे शीघ्र निर्णय करें। वैसी परिस्थिति में किसी न्यायाधीश के यह ध्यान में आने पर भी कि उसे न्याय प्रदान करने के लिए कोई कदम उठाया जाना आवश्यक है वह उसे टालने का प्रयत्न करता है। क्यों कि ऐसे किसी भी कदम से मुकदमे में निर्णय करने में देरी होती है। यदि ऐसा कोई भी आवश्यक कदम नहीं उठाया जाता है तो उस से न्याय पर असर आता है। निर्णय पूर्णतया निर्दोष नहीं रहता। एक बार मुकदमे का निर्णय हो जाने पर उस दोष को समाप्त करना संभव नहीं रहता। इस कारण से यह जरूरी है कि न्याय़ाधीश उन्हें प्रदान की गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए निर्दोष निर्णय प्रदान करने का प्रयत्न करें। ऐसी अवस्था में जब कि न्यायालय का ध्यान उस के किसी कर्तव्य की ओर नहीं जा रहा है अथवा ध्यान जाने पर अथवा मौखिक रूप से ध्यान दिलाए जाने पर भी यदि न्यायालय अपनी किसी शक्ति का प्रयोग नहीं करता है तो उस मुकदमे का कोई भी पक्षकार न्यायालय का ध्यान एक लिखित आवेदन प्रस्तुत कर आकर्षित कर सकता है। एक बार न्यायालय के समक्ष किसी पक्षकार की ओर से आवदेन प्रस्तुत कर दिए जाने के उपरान्त न्यायालय को उस आवेदन का निस्तारण करना पड़ेगा और अपनी शक्तियों का प्रयोग करना पड़ेगा। इस तरह पक्षकारों के सजग रहने पर ही एक निर्दोष निर्णय प्राप्त किया जा सकता है।

दाहरण के रूप मे किसी मुकदमे की सुनवाई के दौरान यदि दीवानी न्यायालय को ऐसा लगे कि उस मुकदमें में विधि का कोई ऐसा प्रश्न प्रत्यक्ष रूप से और सारतः विवादित है जिस में कोई व्यक्ति या व्यक्तियों या कोई हितबद्ध है और ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों या निकाय को न्यायालय के समक्ष विधि के उस प्रश्न पर अपनी राय प्रकट करने का अवसर प्रदान करना जनहित में आवश्यक है। ऐसी परिस्थिति में न्यायालय को व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम 8 क के अंतर्गत यह अधिकार है कि वह ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों या निकाय को ऐसी राय देने के लिए और वाद की कार्यवाहियों में भाग लेने के लिए निर्धारित रूप में अनुमति प्रदान कर सकता है।

लेकिन यह बात कि कोई व्यक्ति या निकाय किसी मुकदमे में विवादित विधि के प्रश्न से प्रत्यक्ष रूप से और सारतः हितबद्ध हैं और उन्हें सुनवाई का अवसर देना जन हित में आवश्यक है न्यायालय के ध्यान में नहीं आती है तो उस मुकदमे का कोई भी पक्षकार या उस का वकील न्यायालय के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर न्यायालय से निवेदन कर सकता है कि संबंधित व्यक्ति या निकाय को पक्षकार बना कर उसे ऐसी राय प्रकट करने का अवसर प्रदान किया जाए। इस तरह कोई भी पक्षकार एक निर्दोष निर्णय प्रदान करने में अपनी भूमिका अदा कर सकता है।

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