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न्याय प्रणाली के विकास में लॉर्ड मिंटो का योगदान : भारत में विधि का इतिहास-55

अधीनस्थ न्यायालयों में सुधार

 

लॉर्ड मिंटो ने अधीनस्थ न्यायालयों के काम काज मे सुधार के प्रयत्न भी किए। उस ने प्रांतीय न्यायालयों की अपील की अधिकारिता में वृद्धि की पहले 5000 रुपए मूल्य तक के वादों में जिला दीवानी अदालतों के निर्णय की अपील प्रान्तीय  न्यायालय को और इस से अधिक मूल्य के मामलों में निर्णय की अपील सदर दीवानी अदालत को किए जाने के उपबंध थे। अब जिला दीवानी अदालतों के सभी निर्णयों की अपील प्रान्तीय न्यायालयों को की जा सकती थी।
स ने मजिस्ट्रेट के रूप में कार्यरत जिला दीवानी अदालतों की अधिकारिता में वृद्धि की। वे अब विभिन्न मामलों में तीस कोड़ों और 200 रुपए तक के जुर्माने की सजा देने के अधिकारी हो गए थे। जुर्माने की राशि अदा न करने पर छह मास तक के कारावास की सजा भी दे सकते थे। इस से अधिक दण्डों के लिए विचारण सर्किट न्यायालयों द्वारा और डकैती व हिंसामूलक अपराधों के लिए सदर निजामत अदालत ही विचारण कर सकता था।
मिंटो ने जिला दीवानी अदालतों में कार्याधिक्य को देखते हुए उन की सहायता के लिए संयुक्त और सहायक मजिस्ट्रेटों की नियुक्ति की। इन पदों पर किसी भी उपयुक्त व्यक्ति की नियुक्ति की जा सकती थी। ये मजिस्ट्रेट जिला दीवानी अदालत के दांडिक मामलों में विचारण कर सकते थे उन्हें जिला दीवानी अदालत के समान ही अधिकारिता प्रदान की गई थी।
मिंटो ने बंगाल और बिहार में डकैती और अन्य अपराधों पर नियंत्रण के लिए पुलिस अधीक्षक के पद का सृजन किया। वे सन्देहास्पद अपराधियों की गिरफ्तारी कर सकते थे और वांछित अपराधियों की गिरफ्तारी के वारंट का निष्पादन अपने अधीन कर्मचारियों के माध्यम से करवा सकते थे। गवर्नर जनरल को कलकत्ता, ढाका, मुर्शिदाबाद, बनारस और बरेली के पुलिस अधीक्षकों को भी मजिस्ट्रेट का दायित्व निर्वाह करने की शक्तियाँ प्रदान करने की अधिकारिता दी गई थी।
मिंटो द्वारा किए गए न्यायिक सुधार के प्रयत्नों से न्याय प्रशासन को गति मिली थी। काम अधिक तीव्रता से होने लगा था। उस ने कलेक्टरों को कुछ न्यायिक अधिकार प्रदान किए थे जिस के लिए उसे यह आलोचना सहन करनी पड़ी कि उस ने कार्यपालिका से न्यायपालिका की स्वतंत्रता के सिद्धांत को एक कदम पीछे धकेल दिया।
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