पति किस विधिक उपबंध में पत्नी से गुजारे भत्ते की मांग कर सकता है?
|समस्या-
क्या देश में कोई ऐसा कानून भी है की पति अपनी पत्नी से खर्चा मांग सके, जबकि पति बेरोजगार है और पत्नी एक लिमिटेड कंपनी में कार्यरत है।
-कमल हिन्दुस्तानी
समाधान-
यह एक दुर्भाग्य ही है कि देश में ऐसा कोई सामान्य कानून नहीं है जिस के अंतर्गत कोई पति अपनी कमाऊ और संपन्न पत्नी से गुजारे भत्ते की मांग कर सके। लेकिन हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 24 एवं धारा 25 के अंतर्गत उस परिस्थिति में जब कि उन के बीच किसी न्यायालय में हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत किसी तरह का कोई आवेदन लंबित हो तो पति द्वारा गुजारे भत्ते की मांग की जा सकती है।
धारा 24 हिन्दू विवाह अधिनियम में मुकदमा लंबित रहने के दौरान पति पत्नी से गुजारे भत्ते की मांग कर सकता है। इसी तरह धारा 25 के अंतर्गत वह स्थाई पुनर्भरण की मांग कर सकता है और न्यायालय को यह अधिकार है कि वह पति को पत्नी से गुजारा भत्ता दिला सके।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने रानी सेठी बनाम सुनील सेठी के मुकदमे में दिनांक 31 मार्च 2011 को एक निर्णय में एक व्यवसायी महिला को अपने 55 वर्षीय पति को 20 हजार रूपए हर माह गुजाराभत्ता देने एवं कहीं आने-जाने के लिए मारूति जेन कार भी देने को कहा था। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दायर महिला की अपील को खारिज करते हुए यह फैसला दिया था। निर्णय में कहा गया था कि महिला की आय लाखों में है, जबकि पति के पास आय का कोई साधन नहीं है, ऎसे में उसे पति को भरण-पोषण का खर्चा देना होगा। दोनों की शादी 1982 में हुई थी। उनका 26 साल का एब बेटा व 24 साल की एक बेटी है।
पति ने एक लाख रूपए से ग्रेटर नोएडा में पत्नी के नाम पेइंग गेस्ट रखने का व्यवसाय शुरू किया जो कि काफी कामयाब हुआ, लाखों की आय होने लगी। इस बीच दोनों मे झगडा हुआ और अलग हो गए। पत्नी व उसके बच्चों ने विज्ञापन देकर पति को संपत्ति से बेदखल कर दिया। पति ने 2008 में कडकडडूमा कोर्ट में तलाक की अर्जी लगाई और साथ ही हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-24 के तहत गुजारा भत्ता देने की गुहार की। इस याचिका में कहा गया था कि उसे घर से निकाला गया और उसे गुजारे के लिए खर्चा तक नहीं दिया जा रहा है। याचिका में कहा गया है कि जो गेस्ट हाउस उसने बनवाया था उससे काफी कमाई हुई है।
पति ने अदालत को बताया कि उसकी पत्नी की सालाना आमदनी एक करोड है। उसकी पत्नी के पास चार गाडियां है दूसरी तरफ उसकी कोई आमदनी नहीं है और वह सडक पर आ चुका है। पत्नी ने कहा था कि उसको अपनी बीमारी पर बहुत खर्च करना पडता है, उसके बच्चे बड़े हो रहे हैं और बेटी की शादी करनी है इसलिए वो ये गुजारा भत्ता नहीं दे सकती। लेकिन ऊपरी अदालत ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए तीन माह के भीतर उसे निचली अदालत के फैसले का पालन करने का आदेश दिया।
धारा – १२५ क्रि. प्र. सं.१९७३
https://sites.google.com/site/randhirvakil/home
अगर आप पीड़ित पतियों कि एक झलक देखना चाहते है तो कृपया एक नजर और अपने कीमती समय से थोडा टाइम निकाल कर कमल हिन्दुस्तानी के इस ब्लॉग पर नजर डाले becharepati.blogspot.in और इस ब्लॉग को अपनी राय और आशीर्वाद जरुर प्रदान करें | आपकी अति कृपया होगी धन्यबाद |
kamalsharma440@gmail.com mobile :- 09034048772
सर.meri wife bahut hi chidchde swabhaw ki hai isliye meri usase bilkul bhi banati nahi hai.his karan meresasusal wale mujhe dhamaki dete hai ki mai kes kar dooga tumhe barbad kar dooga. सर agar koi bachane ka rasata ho to mujhe batane ka kiripa kare. danywad. please
अमित जी आप कहाँ से है और मैं आपको बता दू कि आज देश में काफी ऐसी संस्थाए है जो सताये पतियों कि मदद करती है अधिक जानकारी के लिए आप मेरा ब्लॉग becharepati.blogspot.com देखे और मुझे मेरे नंबर 09034048772 पर मिले
Jankari dene ke liye dhanyawaad.
Par purush-mahila ko samaan adhikaar kee baat kahaan gaya?
mahesh
यह एक दुर्भाग्य ही है कि देश में ऐसा कोई सामान्य कानून नहीं है| जबकि दूसरी तरफ हम लोग स्त्री और पुरुष को समान दर्जा देने की बात करते है |तो ये है समान बनाने की कोशिश ? ये बात उन ऊपर बेठे कानून बनाने वालो से पूछनी चाइये,लेकिन उनके पास तो आपस में झगडा करने के अलावा और कोई काम नहीं बचा है.उन्हें तो बस जनता की याद जब आती है जब वोट लेनी होती है | कुछ तो शर्म करो ????????????????