पत्नी को मायके से लाने के लिए बंदीप्रत्यक्षीकण सही नहीं
|उत्तर प्रदेश से पंकज ने पूछा है –
प्रेम विवाह करने के बाद यदि माता-पिता लड़की को उस के पति के पास न भेजें तो उस स्थिति में लड़का उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट प्रस्तुत करना चाहता है। बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका कैसे काम करती है? पेशी के दौरान क्या क्या बयान लिए जाते हैं? यदि लड़के ने रिट प्रस्तुत की है तो क्या पेशी के दौरान केवल लड़की से बयान लिए जाते हैं, लड़के से कुछ नहीं पूछा जाता है? क्या न्यायाधीश विवाह बचाने के लिए लड़का लड़की को नहीं समझाते? या केवल लड़की के बयान ले कर लड़की जहाँ जाना चाहती है उस तरफ भेज देते हैं? अगर लड़की माता-पिता के दबाव में गलत आरोप लगाती है तो क्या न्यायाधीश उन आरोपों को केवल लड़की के कहने पर मान लेते हैं? क्या लड़के की सुनवाई नहीं होती? अगर लड़के के पास 1. रजिस्ट्रार का विवाह प्रमाण पत्र 2. उच्च न्यायालय का प्रोटेक्शन आदेश 3. चित्र 4. फोन की रिकार्डिंग आदि हों तो लड़का किस तरह के आरोप में फँस सकता है?
उत्तर-
सब से पहले आप को जानना चाहिए कि कानूनी रूप से प्रेम विवाह नाम की कोई विवाह श्रेणी नहीं होती है। विवाह या तो परंपरागत रूप से किसी व्यक्तिगत विधि के अनुरूप होते हैं। जैसे हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, यहूदी विवाह आदि। इन के अतिरिक्त विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह संपन्न हो सकता है। आप के नाम से पता लगता है कि आप पर हिन्दू विधि लागू होगी। इस कारण से आप हिन्दू विधि के अंतर्गत अथवा विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह कर सकते हैं। हिन्दू विधि के अंतर्गत विवाह परंपरागत रूप से दोनों पक्षों के परिवारों की सहमति से उन की उपस्थिति में संपन्न हो सकता है और आर्य समाज पद्धति से संपन्न विवाह को भी हिन्दू विधि से संपन्न विवाह ही समझा जाता है लेकिन इस में दोनों परिवारों के सदस्यों का होना आवश्यक नहीं है। आज कल कई राज्यों में विवाह का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है। इस कारण किसी भी पद्धति से संपन्न विवाह का पंजीयन कराया जाना भी आवश्यक हो गया है। आप ने रजिस्ट्रार के विवाह प्रमाण पत्र का उल्लेख किया है जिस से लगता है कि आप ने आर्य समाज पद्धति से हिन्दू विवाह किया है अथवा विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह संपन्न किया है।
आप के दिए गए विवरण से पता लगता है कि आप के विवाह की जानकारी वधु पक्ष को नहीं है। यदि जानकारी हो भी गई है तो वधु पक्ष उस विवाह के विरुद्ध है और आप की पत्नी को आप के पास भेजना नहीं चाहता। आप अपनी पत्नी को अपने पास लाने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका प्रस्तुत करना चाहते हैं। लेकिन इस याचिका को लेकर आप के मन में अनेक प्रकार के संदेह भी उपज रहे हैं। इस के लिए आवश्यक है कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका क्या है यह आप समझ लें।
यदि किसी व्यक्ति को उस की इच्छा के विरुद्ध किसी के द्वारा निरुद्ध किया गया है तो यह एक प्रकार से उस व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है और उस व्यक्ति का कोई संबंधी या मित्र बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है। ऐसी याचिका पर उच्च न्यायालय जिस क्षेत्र में उस व्यक्ति को निरुद्ध किया गया हो उस क्षेत्र के पुलिस अधिकारी को निर्देश दिया जाता है कि वह इस तथ्य की जानकारी करे कि जिस व्यक्ति के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका प्रस्तुत की गई है वह निरुद्ध है और यदि वह निरुद्ध है तो उसे न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करे। इस पर पुलिस अधिकारी निरुद्ध व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करता है अथवा साक्ष्य सहित यह रिपोर्ट प्रस्तुत करता है कि जिस व्यक्ति के लिए याचिका प्रस्तुत की गई है वह निरुद्ध नहीं है और स्वेच्छा से कथित स्थान पर निवास कर रहा है।
आप के मामले में दोनों ही परिणाम सामने आ सकते हैं। पुलिस आप की पत्नी को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है अथवा इस तथ्य की रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकता है कि वह स्वेच्छा से अपने माता-पिता के साथ निवास कर रही है। यदि आप की पत्नी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाती है तो उस न्यायालय उस से सिर्फ इतना पूछ सकता है कि वह अपने माता-पिता के साथ स्वेच्छा से निवास कर रही है या उसे उस की इच्छा के विपरीत रोका गया है। यदि पत्नी यह कहती है कि वह अपनी इच्छा से अपने माता-पिता के साथ निवास कर रही है और आगे भी करना चाहती है तो न्यायालय उसे उस की इच्छानुसार निवास करने की स्वतंत्रता प्रदान कर देगा। यदि पुलिस रिपोर्ट प्रस्तुत करती है तो न्यायालय रिपोर्ट की सत्यता की जाँच करेगा और यदि यह पाएगा कि आप की पत्नी स्वेच्छा से अपने माता-पिता के साथ निवास कर रही है तो वह आप की याचिका को निरस्त कर देगा।
यदि आप रजिस्ट्रार का विवाह प्रमाण पत्र, उच्च न्यायालय का प्रोटेक्शन आदेश, चित्र तथा फोन की रिकार्डिंग न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करते हैं तो इस से यह तो साबित हो जाएगा कि वह आप की पत्नी है, आप का विवाह वैध है। लेकिन फिर भी पत्नी के यह चाहने पर कि वह माता-पिता के साथ रहना चाहती है उसे स्वतंत्र कर दिया जाएगा। कोई भी न्यायालय आप की पत्नी को आप के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। केवल पत्नी के यह चाहने पर कि वह पति के साथ रहना चाहती है। उसे उस के पति के साथ भेजा जा सकता है।
आप का विवाह यदि वैध है तो यह भी सच है कि आप की पत्नी दूसरा विवाह नहीं कर सकती। आप की पत्नी के माता-पिता भी उस का दूसरा विवाह नहीं करवा सकते हैं। यदि वे ऐसा कोई प्रयत्न करते हैं तो उन्हें न्यायालय के आदेश से ऐसा करने से आप रुकवा सकते हैं। आप के पास पत्नी को अपने पास लाने का सब से सही उपाय यह है कि आप हि्न्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए आवेदन प्रस्तुत करें। वहाँ से आप की पत्नी को सूचना भेजी जाएगी। पत्नी का जवाब आने पर न्यायालय आप दोनों के बीच सुलह कराने का प्रयत्न करेगा। यदि वहाँ आप दोनों के मध्य सुलह हो जाती है तो ठीक है अन्यथा आप उसी आवेदन को विवाह आवेदन में परिवर्तित कर विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकते हैं इस तरह से दोनों के मध्य विवाह विच्छेद हो जाएगा और दोनों विवाह से स्वतंत्र हो कर स्वेच्छा से अपने आगे का जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
क्या ऐसा कोई कानून है जिसके तहत् पति पत्नि दोनों एक दूसरे के उपर कोई भ्ी आरोप न लागा सकें और नहीं उनका कोई शिकायत कहीं दर्ज हो.
आप ने प्रेम विवाह के लिए तो बड़ी अच्छी राय दी है । लेकिन जिन का विवाह पारंपरिक पद्धति से किया गया है , उस का क्या ? यदि लड़की के मातापिता ल़ड़की को मायके लाना चाहते है तो क्या पति उस पर आपत्ति उठा सकता है ? लड़की की सास उलाहने देकर उस को दुखी करती है और पति अपनी मां का साथ देता है और लड़की मानसिक रूप से दुखी होती है तो क्या उस के लिए लड़की के माता पिता उस को माय के ला सकते है ? यदि लड़का (पति ) मना कर सकता है तो कानूनी तौर पर लाने के लिए क्या प्रावधान है ? कृपया मार्गदर्शन करें ।
एक उलझी हुई समस्या का समाधान बहुत अच्छे से सुझाया है आपने । इस तरह के हालात युवाओं की जिंदगी में बहुत देखने को मिलते हैं ।
बढ़िया आलेख ।
अच्छी तरह समझाया आपने, धन्यवाद।