लाचारी को त्यागें और अपना आत्म सम्मान पुनः हासिल करें
|समस्या-
मेरी शादी 18 फरवरी 2006 को हुई थी मेरे 2 बच्चे हैं एक पाँच वर्ष का दूसार तीन वर्ष का। मेरी नौकरी जा चुकी है। 2008 में मेरा एक्सीडेंट हो गया था जिस में मेरा एक पैर टूट गया था। मेरी पत्नी मुझे लंगड़ा कहती है। दो माह पहले तक हम साथ रहते थे। लेकिन मेरा पैरा मुझे काम करने में मदद नहीं करता है जिस के कारण मैं अपने घर आ गया। तब वह कहने लगी कि मैं गाँव में नहीं रहूँगी। वह चरित्रहीन है। फिर पतनी मेरी लड़की को छोड़ कर लड़के को ले कर अपने मायके चली गई। जब हम उसे लेने गए तो पता चला कि वह लखनऊ गई है, हम लखनऊ गए तो वहाँ हमें बहुत बुरा भला कहा और कहा कि मैं लंगड़े के साथ नहीं जाउंगी। हमें खाने पीने के लिए भी नहीं पूछा। जब हम वापस आने लगे तो मेरा बेटा वापस मेरे साथ आ गया। 10 दिन बाद पता चला कि हमारे ऊपर हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण का केस चला दिया है। हमें पुलिस पकड़ कर ले गई तब हम ने बयान दिया। उस के बाद मैं ने जिला न्यायालय में धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर दिया है। जब भी मैं पत्नी से बात करता हूँ तो वह गाली देती है और साथ न रहने को कहती है। मैं अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहना चाहता हूँ। क्या मेरी पत्नी मेरे पास नहीं आएगी? क्या वह मेरे पुत्र को ले लेगी?
-अजय, लालगंज, रायबरेली, उत्तर प्रदेश
समाधान-
दुनिया में किसी भी व्यक्ति को उस की इच्छा के विरुद्ध किसी के साथ रहने को बाध्य नहीं किया जा सकता। यदि आप की पत्नी आप के साथ नहीं रहना चाहती है तो कानून के पास ऐसा कोई उपाय नहीं कि आप की पत्नी को आप के पास जबरन रहने को कहा जाए। यदि आप की पत्नी के पास ऐसा कोई उचित और वैध कारण नहीं है कि वह आप से अलग रह सके तो आप ने जो धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम का आवेदन प्रस्तुत किया है उस में आप के पक्ष में डिक्री पारित कर दी जाएगी कि आप की पत्नी आप के साथ आ कर रहे। यदि ऐसी डिक्री पारित होने से एक वर्ष की अवधि में आप की पत्नी आप के साथ आ कर नहीं रहती है तो फिर आप उस से इसी आधार पर तलाक ले सकते हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि आप की पत्नी आप के साथ रहने की इच्छुक नहीं रही है। वह अब आप से स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना चाहती है। जब तक उस की यह इच्छा आप के साथ रहने की इच्छा में परिवर्तित नहीं होती है। आप की उस के साथ रहने की इच्छा की पूर्ति संभव नहीं है। यह कानून से संभव नहीं है। इस के लिए तो काउंसलिंग और सामाजिक दबाव ही उपाय हैं। यदि दोनों संभव नहीं हों तो अधिक अच्छा यह है कि दोनों पक्ष आपस में बैठ कर तय कर लें कि आगे क्या करना है। यदि पत्नी आप के साथ नहीं ही रहना चाहती है तो फिर आपसी सहमति से तलाक लेना ही आप के लिए बेहतर होगा।
आप के दो बच्चे हैं एक लड़का और एक लड़की। आप की पत्नी लड़के को तो अपने पास रखना चाहती है लेकिन लड़की को नहीं। लेकिन ऐसी स्थिति में न्यायालय को इस बात पर विचार करना होगा कि दोनों बच्चों को अलग किया जाए या नहीं, न्यायालय को इस बात पर भी विचार करना होगा कि दोनों बच्चों का लालन पालन कहाँ बेहतर तरीके से हो सकता है और उन के हित कहाँ अधिक सुरक्षित हैं। यह भी देखा जाएगा कि दोनों बच्चे खुद को कहाँ अच्छा महसूस करते हैं। जब भी न्यायालय किसी बच्चे की अभिरक्षा के विषय पर विचार करता है तो सर्वोपरि तथ्य यही होता है कि बच्चे का हित किस की अभिरक्षा में हो सकता है।
अभी आप के पैर के कारण आप को लाचार स्थिति में ला दिया है। आप पत्नी की निगाह में अपना सम्मान खो चुके हैं। आप को हर हालत में इस लाचारी से निजात पानी पड़ेगी और अपना आत्म सम्मान वापस हासिल करना होगा। तभी आप के और आप की पत्नी के बीच के स्थितियाँ ठीक हो सकेंगी। किसी भी स्थिति में लाचारी का त्याग तो करना ही होगा। मेरे विचार में आप को अपने पैर की चिकित्सा पर अधिक ध्यान देना चाहिए और पैर के उपयोग से संबंधित अधिक से अधिक क्षमता हासिल करनी चाहिए। यदि आप अपने पैरों पर खड़े होंगे तो बहुत सारी समस्याएँ उसी से हल हो जाएंगी।
बिलकुल सही राय दी है।
nirmla.kapila का पिछला आलेख है:–.गज़ल
सही सलाह दी है अपने की लाचारी त्याग केर आत्मसम्मान से जीना चाहिए