परिवाद की जाँच में सबूत व गवाह प्रस्तुत कर उसे बन्द कराएँ।
|समस्या-
बबलू ने कोटा, राजस्थान से पूछा है-
मेरा विवाह 2009 में हुआ। 2011 में बेटी का जन्म हुआ। पत्नी को अक्सर सफेद पानी की की शिकायत रहा करती थी। समय समय पर टाइम उपचार करवाया। 12 जनवरी 2013 को पत्नी को समस्या होने पर मैं ने कोटा के जे.के. लोन हॉस्पिटल मे एडमिट करवाया। यहाँ पर 5 यूनिट रक्त चढाया गया। 22 जनवरी 13 को माइनर ऑपरेशन हुआ। जिस में बच्चेदानी के यहाँ से सैंपल लिया और जाँच को भेजा। 24 जनवरी 13 को मैं वाइफ को लेकर अपने रूम पर आ गया। इसी दिन मेरा साला, ससुर, साले की पत्नी और 2 अन्य व्यक्ति आए और मेरी अनुपस्थिति में मेरी पत्नी और बेटी को अपने साथ ले कर चले गये। मेरा ससुराल मेरे घर से करीब 70 कि.मि. दूर है। 30 जनवरी 3 को जाँच रिपोर्ट मिली। जिस में वाइफ को गर्भाशय में कैंसर की पुष्टि हुई। सेनसेर की पुस्ती हुई। बहुत प्रारंभिक स्टेज थी। डाक्टर का कहना था की कीमोथेरेपी से ठीक हो सकती है। क्यों की मामला प्रारंभिक स्तर का है। मैं ने ससुराल वालों को सूचना दी लेकिन वो लोग मेरी बात को अनसुना करने लगे। और गाँव में ही देसी उपचार करवाने लगे। 4 फरवरी 13 को ज़्यादा तबीयत बिगड़ने पर मेरा साला और अन्य लोग मेरी पत्नी को लेकर कोटा आए। मैं ने मेरे भाई को सूचित किया मेरा भाई उन को लेकर उस डाक्टर के घर पहुचा जिस का उपचार चल रहा था और जिन्होने ओपरेशन किया था। डाक्टर ने हालत देख कर उसे जेकेलोन हॉस्पिटल रेफर कर दिया। लेकिन मेरा साला और साथ वाले लोग मेरे भाई को चकमा दे कर जीप से मेरी पत्नी को पता नहीं कहाँ लेकर चले गये। मैं रात भर तलाश करता रहा पर पता नहीं चला। 5 फरवरी 13 को नज़दीकी पुलिस स्टेशन में परिवाद दिया। लेकिन पुलिस ने परिवाद दर्ज नहीं किया। परिवाद में था कि मेरी भाभी जी को उसका भाई और अन्य जाने कहाँ ले गये हैं। भाभी की तबीयत काफ़ी खराब है। लेकिन पुलिस ने परिवाद अपने पास रखा लिया। उधर. 5 फरवरी 1 को मेरी पत्नी की बच्चेदानी कोटा के एक निजी हॉस्पिटल में निकलवा दी गयी। मुझे पता चला और मैं ने 18 फरवरी 13 को पुलिस को फिर परिवाद दिया। यह परिवाद दर्ज किया, लेकिन कार्रवाई कुछ नहीं हुई। मेरे भाई के पुलिस में बयान भी हुए। 24 जनवरी 13 को जब मेरी पत्नी को घर से ले गये थे उस दौरान साथ में पत्नी 50 हजार रुपए नकद स्त्री-धन भी ले गये थे। बाद में मेरे ससुर ने मेरे और मेरे परिवार के खिलाफ 498ए, 323, 406 भा.दं.सं. में इस्तगासे के ज़रिए मामला दर्ज करवाया। जिस में जो जो आरोप लगाए गये थे, उन सभी का स्पष्टीकरण सबूतों के साथ मैं पुलिस को दे आया। हम मामले की निष्पक्ष जाँच की मांग करते र्हैं लेकिन मामले में जाँच बंद कमरे में हुई। मेरे वकील ने धारा 9. हिन्दू विवाह अधिनियम तथा धारा 97 दंड प्रक्रिया संहिता की कार्रवाई भी की। लेकिन मेरी मुलाकात मेरी पत्नी से नहीं हो सकी। 7 अग्त 2213 को मेरा साला मेरी बेटी को मेरे माता पिता के पास भीलवाड़ा छोड़ आया। एक समझौता पत्र भी लिखा गया। उस पर साले, साले की पत्नी, सरपंच और अन्य गवाहों के हस्ताक्षर हैं। ये समझौता पत्र भी मैं पुलिस को दे आया। फिर भी उस मुकदमे को बन्द नहीं किया है। 20 सितम्बर 2013 को मेरी पत्नी की मृत्यु हो गयी। मुझे मेरे ससुराल वालों ने सूचना तक नहीं दी। और बिना पोस्टमार्टम करवाए ही अंतिम संस्कार करवा दिया। मैं ने यह बात पुलिस को बताई और मामले में निष्पक्ष जाँच की माँग की। लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। मुझे शुरू से ही ब्लेक मेल करने की कोशिश मेरा साला करता रहा। मेरा ससुर जो कि फोरेस्ट डिपार्टमेंट में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था वो अपनी संपत्ति में से मेरी बेटी को हिस्सा देना चाहता था। मेरी पत्नी के एक बहिन और भी थी जिसे भी मेरे साले और उस की पत्नी द्वारा डरा धमका कर तंग किया जाता था। 2007 में उस ने ससुराल मे आत्मदाह कर लिया था। उस के भी एक बेटी है। साला और साले की पत्नी किसी भी सूरत में यह नहीं चाहते कि ससुर की सम्पत्ति में नातियों को भी हिस्सा मिले। 31 दिसम्बर 2013 को मेरे ससुर की भी संदिग्ध मृत्यु हो गयी। एस दफ़ा भी मुझे और मेरे परिवार को कोई सूचना नहीं दी गई। बगैर पोस्ट मार्टम के अंतिम संस्कार कर दिया गया। जब मैं ने जानकारी जुटाई तो पता चला कि बहू और बेटे ने पोइजन देकर मार डाला। 31 को सुबह 9 बजे से पहले अंतिम संस्कार भी जल्दी में कर दिया। .बहन बेटियों और समाज के लोगों को भी अंतिम दर्शन नहीं करवाए। आप बताएँ मैं क्या करूँ। मेरी 2 साल की बेटी अभी मेरे पास है। मैं ऑटो ड्राइवर द्र हूँ। जैसे तैसे बेटी की परवरिश कर रहा हूँ। लेकिन पुलिस अभी तक भी मामले को बन्द नहीं कर रही है। 1 मई 2013 को मेरे खिलाफ 498ए, 323. 406 आईपीसी के मामले में शिकायत मेरे ससुर ने दी थी। अभी तक जाँच चल रही है। मेरी पत्नी के कहीं कोई बयान नहीं हैं। मैं और मेरा परिवार काफ़ी परेशन है। हमारे परिवार का सम्मान समाज में धूमिल किया गया है जब कि हम पर जो आरोप लगाए वो सभी झूठे थे। जिस के हमने सबूत भी पुलिस को दिए हैं। अब मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान-
आप के द्वारा प्रस्तुत तथ्यों से प्रतीत होता है कि आप के व आप के ससुराल वालों के बीच आप की पत्नी की चिकित्सा के तरीके के संबंध में मतभेद थे, जिन्हें हल करने में संवेदनशीलता का अभाव रहा। जिस के कारण विवाद बढ़ा और दोनों पक्षों के बीच यह स्थिति उत्पन्न हुई कि आप की पत्नी के पिता उसे जबरन अपने तरीके से इलाज कराने के लिए ले गए। आप ने जब उन का पीछा किया तो उन्हों ने पुलिस को परिवाद दर्ज करवा दिया। इसी बीच आप की पत्नी की मृत्यु हो गई। बाद में पत्नी के पिता की मृत्यु भी हो गई। तब आप की बेटी को आप के पास भेज दिया गया। अब केवल पुलिस के पास परिवाद मौजूद है जिस में अभी तक कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई है।
आप के मामले में 498-ए के लिए अब कोई साक्षी मौजूद नहीं है। सब से मजबूत साक्षी आप की पत्नी हो सकती थी वह अब इस दुनिया में नहीं है और 161 के बयानों के लिए उपलब्ध नहीं है। अन्य कोई प्रत्यक्षदर्शी साक्षी नहीं है। दूसरी और आप के पास अपनी पत्नी की चिकित्सा कराने के सारे सबूत और साक्षी उपलब्ध हैं। वैसी स्थिति में धारा 498-ए के लिए प्रारंभिक सबूत भी उपलब्ध नहीं हैं। धारा-406 का कोई प्रश्न ही अब नहीं रहा है। पत्नी की मृत्यु के उपरान्त स्त्री-धन के स्वामी उस का पति और संतानें हैं। इस तरह आज आप स्वयं और आप की पुत्री स्वामी हैं। पुत्री आप के पास आप के संरक्षण में है और आप उस के प्राकृतिक संरक्षक हैं। धारा 323 में भी आप की पत्नी के जीवित नहीं रहने के कारण कोई साक्षी नहीं है। वैसी स्थिति में जाँच कर्ता पुलिस अधिकारी को रिपोर्ट आप के पक्ष में दे देनी चाहिए।
आप को चाहिए कि आप पुलिस का जो अधिकारी परिवाद की जाँच कर रहा है उस से मिलें और उसे सारे तथ्य बताएँ और जरूरत पड़ने पर आवश्यक गवाहों के बयान भी करवा दें। जिस से मामला बन्द हो सके। आप अपनी बेटी की परवाह करें, उस का पालन पोषण करें। यदि आवश्यक हो और सही जीवनसाथी मिल जाए तो आप दूसरा विवाह कर लें। एक लम्बा जीवन बिना जीवन साथी के बिना जीना बहुत कठिन है वह भी तब जब छोटी बच्ची साथ में हो और आप को रोजगार के लिए भी बाहर रहना हो।