पोस्टमार्टम से पर्याप्त और ठोस सबूत मिलते, अब अन्य कमजोर सबूतों पर निर्भर रहना होगा।
|संदीप भलावी ने पुराना दमुआ माइन्स, तहसील जुन्नारदेव, जिला छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश से पूछा है-
मेरी दीदी (चैताली भलावी) की शादी 27-5-2015 में हुई थी। वह ANM नर्स थी, उनकी शादी को 9 महीने ही पूरे हो पाए कि 31-3-2016 के दिन मायके में उनकी मृत्यु हो गयी उनका अन्तिम संस्कार मायके से ही हुआ। 2-4-2016 के दिन साफ सफाई के दौरान उनकी डायरी मिली, उनके बिस्तर के नीचे। जिसमें उनके साथ सुसराल में जितना भी अत्याचार हुआ था उन्होने सब कुछ लिखा था और हर पेज पर उनके हस्ताक्षर भी हैं, उन्होंने कभी भी हम लोगो को नहीं बताया कि उनके साथ इतना कुछ हो रहा था। 5-4-2016 को दीदी का फोन चेक किया तो उनके फोन में कुछ phone recording मिलीं, जिसको सुनके हम लोग बहुत दुखी हो गये। हमने 7-4-2016 को दमुआ थाना, परासीया थाना, में रिपोर्ट दर्ज करादी। साथ ही छिन्दवाड़ा कलेक्टर के पास व भोपाल मुख्यमँत्री के पास डायरी की प्रति ओर आरोपी को सजा दिलवाने की मांग की। 17-4-2016, को हमने NGO वालों के साथ जाकर कलेक्टर व एसपी के आफिस में डायरी की प्रतिया दीं। 24 तारीख को दीदी के बेग से एक लेटर मिला जिसमें दीदी ने पूरी डायरी का सार एक पेज में लिखा था। एसपी ऑफिस से कार्यवाही आदेश आ चुका है। 4-5-2016 को मम्मी पापा का बयान लिया, दमुआ थाने में, और बयान लिखवाकर परासीया थाने भिजवा दिये। इसके बाद भी 1 महीना हो चुका है दीदी की मृत्यु को पर आरोपी आजाद घूम रहा है। मैं जानना चहता हूँ कि क्या उनकी लिखी डायरी जिसमें हर पेज पर हस्ताक्षर हैं और साथ ही कानून से एक अपील भी है कि उनके पति, सास ननद ओर देवर को कड़ी सजा मिलनी चाहिये। क्या कानून जिन्दा लोगों की ही गवाही मानता है, दीदी के जिन्दा ना रहने से क्या उनकी डायरी ओर फोन रिकार्डिंग का कोई मूल्य नहीं? दमुआ के TI कहते हैं कि पोस्ट मार्टम करना था, डायरी से कुछ नहीं होगा, क्या पोस्ट मार्टम बहुत जरुरी होता है। दीदी को उनका पति मारता पीटता था, जान से मारने की धमकी देता था, उनसे 1 लाख रु मायके से मंगाए और गाड़ी भी, रेकार्डिंग से तो ये बातें साबित हो रही हैं। हमें दीदी को इन्साफ दिलाना है और रास्ता समझ नहीं आ रहा है। क्या हमें अदालत का सहारा ले लेना चाहिये?
समाधान-
आप पोस्ट मार्टम नहीं करा पाए क्यों कि आप को पहले पता ही नहीं था कि चैताली के साथ क्या हुआ है। हो सकता है आप ने दीदी की मृत्यु को प्राकृतिक या किसी बीमारी के कारण होना समझा हो। इस तरह पोस्ट मार्टम नहीं कराने का आप के पास उचित कारण है। यदि पोस्ट मार्टम होता तो पता लगता कि उन की मृत्यु के कारण क्या हैं तथा यह भी पता लगता कि आप की दीदी चैताली के साथ क्या क्या हत्याचार हुए हैं। वैसी स्थिति में पुलिस के पास अपराध को प्रमाणित करने के लिए मजबूत सबूत होते। पोस्टमार्टम न होने से पुलिस उन सबूतों से वंचित हो गयी है।
अब जो भी सबूत हैं उन के आधार पर जिन अपराधों को साबित करने के सबूत मिलेंगे उन्हीं के आधार पर मुकदमा तैयार होगा। डायरी और रिकार्डिंग सबूत तो हैं लेकिन केवल मात्र उन्हीं के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती। पुलिस को डायरी और रिकार्डिंग से जो भी कहानी निकल कर आयी है उसे साबित करने के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी जुटाने होंगे। इस काम में पुलिस को समय लगेगा। जब तक पुलिस को पर्याप्त सबूत नहीं मिल जाते जिन के आधार पर वह एक मजबूत आरोप पत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत न कर सके तब तक वह अभियुक्तों को गिरफ्तार नहीं कर सकती। अभी 4 मई को बयान लिए गये हैं उसे दस दिन ही हुए हैं। आप को थोड़ी प्रतीक्षा करनी चाहिए। यदि आप को लगे कि पुलिस लापरवाही कर रही है या फिर किसी कारण से अभियुक्तों को बचाना चाहती है तो आप उच्चाधिकारियों से मिल कर अपनी बात उन के समक्ष रख सकते हैं।
आप ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करा दी है और उस पर अन्वेषण जारी है। वैसी स्थिति में आप न्यायालय के समक्ष नहीं जा सकते। यदि आप को लगे कि एक लंबे समय तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है तो आप न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर पुलिस से अन्वेषण की प्रगति की रिपोर्ट मंगवा सकते हैं। न्यायालय पुलिस को निर्देश भी दे सकता है। यदि पुलिस इस मामले में आरोप पत्र प्रस्तुत न कर यह रिपोर्ट पेश करे कि अभियुक्तगण के विरुद्ध कोई मामला नहीं बनता या अपराध घटित होना नहीं पाया जाता है तो आप उस रिपोर्ट के विरुद्ध न्यायालय में अपनी आपत्तियाँ प्रस्तुत कर सकते हैं। इस के लिए आप किसी अच्छे स्थानीय वकील की मदद ले सकते हैं।