प्रेम विवाह को सफल बनाने की चुनौती स्वीकारें
| सुधीर कुमार ने पूछा है –
हमारी शादी 1.2.2010 को हुई है, शादी से पहले मैं और मेरी पत्नी दो वर्ष से प्रेम में थे। विवश हो कर दोनों परिवारों को हमारा विवाह करना पड़ा। लेकिन मेरी पत्नी अब अपने मायके में अधिक रुचि लेती है। उस के माता-पिता पत्नी को मेरे विरुद्ध भरते रहते हैं, पत्नी को मेरे साथ भेजने में आनाकानी करते हैं तथा मेरे पूरे परिवार को दहेज के मामले में फँसाने की धमकी देते हैं। मैं सरकारी कर्मचारी हूँ, मेरी मदद करें।
उत्तर –
सुधीर जी,
आप की समस्या कानूनी है ही नहीं। यह विश्वास और अविश्वास से पनपा मामला है। आजकल अरेंज विवाहों में ही अविश्वास के कारण बहुत समस्याएँ रहती हैं, आप ने तो प्रेम को अरेंज विवाह का रूप दिया है। आप और आप की पत्नी प्रेम में थे और आप के परिजनों को आप का विवाह विवशता में करना पड़ा। उन्हों ने आप को विवाह के बंधन में तो बांध दिया, लेकिन उस की सफलता में उन्हें विश्वास नहीं है। वे आज तक भी स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि यह विवाह सफल हो सकता है। वे इस के असफल होने की प्रतीक्षा में हैं जिस से स्वयं को सही साबित कर सकें। वे विवाह में असफलता के सूत्र तलाशते रहते हैं। निश्चित रूप से यह दोनों ही परिवारों की ओर से होता होगा। जब आप की पत्नी आप के साथ रहती है तो उसे यहाँ परिवार में बहुत कुछ सुनना सहना पड़ता होगा। फिर जब वह मायके जाती है तो उस से खोद खोद कर पूछा जाता होगा कि ससुराल में वह कैसे रहती है। ससुराल वालों का व्यवहार उस के साथ कैसा है? फिर आरंभ होती है आगे की कहानी। विवाह पूर्व प्रेम और प्रेमपूर्ण विवाहित जीवन दोनों में बहुत अंतर है।
आप यदि इस पर गंभीरता से विचार करें तो आप पाएंगे कि आप और आप की पत्नी के परिवारों ने आप दोनों के सामने चुनौती रख दी है कि आप अपना विवाह सफल साबित कर के दिखाएँ। आप दोनों को इस चुनौती पर खरा उतरना है। इस के लिए जिस हथियार की जरूरत है वह आप दोनों के बीच प्रेम और विश्वास का लगातार मजबूत होते जाना है। उसे किसी भी बाहरी हमले से टूटना या कमजोर न होना चाहिए। यह साथ रहने से बनता है। यदि आप दोनों को कुछ समय दोनों परिवारों से अलग अकेले साथ रहने का अवसर प्राप्त हो तो यह प्रेम और विश्वास बढ़ेगा। उस के बढ़ने के साथ ही दोनों परिवारों में आप के विवाह की सफलता के प्रति जो अविश्वास है वह विरल होता जाएगा।
आप सरकारी कर्मचारी हैं। एक काम कर सकते हैं, अपना स्थानान्तरण दो-चार वर्ष के लिए कुछ दूरस्थ स्थान पर करवा लें। दोनों पति-पत्नी वहाँ साथ रहें। साथ रहेंगे तो आपसी प्रेम और विश्वास बढ़ेगा। समय के साथ ये समस्याएँ समाप्त हो जाएंगी। ये सब काम आप दोनों पति-पत्नी को आपसी समझ के साथ करना होगा।
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7 Comments
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दिनेश राय जी , बहुत माकूल हिदायत आपने दी है. वकील होने के साथ बहुत अच्छे इंसान है आप. मैंने भी कुछ यही सोचा:
स्थांतरण ले तो बहुत ख़ूब रहेगा,
या एक 'हनीमून' दोबारा हो जाय,
ससुराल या मैके को समझना ही पड़ेगा,
बच्चों की कहीं उनके खुशी न खो जाय.
-mansoor ali hashmi
http://aatm-manthan.com
यह एक आम समस्या है कि माता-पिता अपनी सोच का वर्चस्व बच्चों पर स्थापित करने के लिए उनकी ज़िंदगी कठिन बना देते हैं। वैसे इसका उल्टा भी होता है। अनेक बुजुर्ग दम्पति भी अपने बेटे-बहू से प्रताड़ित होकर नारकीय जीवन जी रहे हैं।
यह मामला पहली कोटि का है। इसमें कठिनाई यह है कि पति-पत्नी में आपसी विश्वास भी कम होता जा रहा है।
घर से अलग पति-पत्नी एक साथ रहें तो अच्छे परिणाम आने की संभावना जरूर बढ़ेगी। लेकिन पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता क्योंकि आपकी पत्नी की आपसे अपेक्षाएँ क्या हैं यह स्पष्ट नहीं है।
सही सलाह दी हे दिनेश जी ने, घर बनाना ओर बसाना आसान नही, लेकिन उसे बरवाद करना बहुत आसान हे.इस लिये अभी कोशिश करे ओर बिखरे तिनको को फ़िर से इकक्ठा कर ले
श्रीमान सुधीर कुमार जी, आपको मेरे गुरुवर श्री दिनेशराय द्विवेदी जी ने बहुत अच्छी सलाह "आप सरकारी कर्मचारी हैं। एक काम कर सकते हैं, अपना स्थानान्तरण दो-चार वर्ष के लिए कुछ दूरस्थ स्थान पर करवा लें। दोनों पति-पत्नी वहाँ साथ रहें। साथ रहेंगे तो आपसी प्रेम और विश्वास बढ़ेगा। समय के साथ ये समस्याएँ समाप्त हो जाएंगी। ये सब काम आप दोनों पति-पत्नी को आपसी समझ के साथ करना होगा।" दी है.
इसको आप मौत का सम्मन समझकर जल्दी से जल्दी अमल में लायें और श्री दिनेशराय द्विवेदी से सलाह लेकर आप अपने संबंधित थाने या न्याय क्षेत्र में एक प्रार्थना पत्र जरुर दे दें.मेरा स्वंय का बिजनेस होने के कारण आपना निवास स्थान नहीं छोड़ सका था और अपनी पत्नी के साथ अलग(पति-पत्नी) रहता था. मगर अपनी सुसराल वालों की हद से ज्यादा दखलंदाजी के कारण ही आज अनेकों फर्जी केसों के कारण अपनी जिदंगी के आखिरी साँस गिन रहा हूँ.आप मेरे ब्लोगों का अवलोकन करके मेरी कुछ पीड़ा को देख सकते हैं.अगर समय हो तो आप "सच का सामना" ब्लॉग पर कल की पोस्ट देख सकते हैं.हमारे देश में किसी भी महिला द्वारा दर्ज करवाए फर्जी वैवाहिक केसों(असली पीड़ित को जल्दी इन्साफ ही नहीं मिल पाता है)में भी पुलिस,वकीलों और जजों की महिला "दया" की पात्र रहती है.चाहे आप कितने ही सच्चे हो और महिला कितनी बड़ी झूठी क्यों न हो? आपसे निवेदन है आप भी मेरे गुरुवर का दामन तब तक बिलकुल न छोड़ें.जब तक आपका वैवाहिक जीवन सुखमय न हो जाये. आप हद से ज्यादा अपनी पत्नी की "क्रूरता" बिलकुल सहन न करें.अगर आपको लगे आपकी यह नाचीज़ "सिरफिरा" कुछ मदद कर सकता है. तब आप निसंकोच मुझे फ़ोन कर लें.आर्थिक रूप से असमर्थ हूँ मगर तन-मन,कलम से और दुआओं से आपकी मदद करने की कोशिश जरुर करूँगा.मैं श्रीमती निर्मला कपिला की टिप्पणी से पूर्णता सहमत भी हूँ.
आपकी सलाह काबिलेतारीफ है
बहुत अच्छी सलाह दी है प्रेम विवाह मे अक्सर ही यही होता है। माँ बाप खुद को सही सिद्ध करने के चक्कर मे दोनो के जीवन से खिलवाड करते हैं यूँ भी अक्सर ये प्रेम नही होता अगर प्रेम हो तो आपस मे अविश्वास उपजे ही नही। इसलिये ऐसे प्रेम विवाह से पहले विश्वास को पक्का करना जरूरी है। तभी प्रेम विवाह सफल हो सकते हैं। आभार।