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बँटवारा केवल दीवानी वाद या आपसी समझौते से ही हो सकता है . . .

DCF 1.0समस्या –
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश से लवी ने पूछा है –

मेरे ससुर की तीन संताने थी जिनमें दो लडके व एक लडकी थी। सन 1999 में मेरे जेठ की मृत्यु हो गयी। 1998 में मेरी ननद की शादी हो गयी थी जब कि मेरी 2004 में हुई। सन 2000 में मेरी जेठानी दूसरी जगह चली गयी और उसने वहां पर शादी कर ली। उनके दो बच्चे थे एक लड़का और एक लड़की जिन्हें वे अपने साथ ले गयी।  2004 में मेरी शादी हुई और 2007 में मेरे ससुर का देहांत हो गया।  मेरी सास को पेंशन मिलती है एवं मेरे पति को ससुर की अनुकंपा नौकरी मिली है। इस बीच मेरी जेठानी कभी नहीं आयी। मेरे ससुर के नाम एक मात्र संपत्ति जो उनके जाने के बाद भी उनके नाम है वो एक मकान है जो कि 130 गज में बना है और उसमें अधिकतर निर्माण मेरे पति और सास ने कराया है। नगर पंचायत में जब हम ने हाउस टैक्स नाम कराने के लिये आवेदन किया तो उन्होने मेरी जेठानी के पास भी सूचना भेजी जिस पर वो अपने बच्चों सहित जुलाई 2013 में आयी और उन्हों ने बच्चों से शपथपत्र दिलवाया कि वे अपने दादा की संपत्ति में हिस्सा चाहते हैं। इस बारे में मेरे पति ने मेरी जेठानी के वर्तमान विवाह स्थल पर जाकर तहकीकात की तो उन बच्चों में से एक लडकी का दसवीं पास का सर्टिफिकेट एवं राशन कार्ड व बैंक खाता जिन सबमें उन बच्चो के पिता का नाम मेरे जेठ का ना होकर मेरी जेठानी के वर्तमान पति का पाया। जिसे साक्ष्यों सहित मेरे पति ने आपत्ति के रूप में नगर पंचायत के लिपिक के समक्ष जमा करा दिया है। अभी लिपिक ने मेरी जेठानी से सम्पर्क किया तो वो अभी भी मानने को तैयार नहीं हैं। वे कह रही हैं कि उनके पास एक निजी नर्सिंग होम का दिया जन्म प्रमाण पत्र एवं फोटो एलबम आदि हैं। साथ ही उन्हों ने ये भी कहा कि उन्हों ने इन बच्चों का गोदनामा नही किया है इसलिये वे हिस्सा लेकर रहेंगी। मेरा सवाल है कि- 1. संपत्ति मेरे ससुर के नाम केवल आपसी बंटवारे एवं 30 या चालीस वर्ष से कब्जे के आधार पर मिली थी, ना कि किसी वसीयत या उनके पिता के बैनामे के आधार पर अर्थात उस जगह का कोई बैनामा नहीं है। वो मेरे ससुर को परिवार में दे दी गयी थी, जिस पर वो इतने वर्ष से काबिज थे और करीब इतने वर्ष से टाउन को टैकस दे रहे थे। तो क्या मेरी शादीशुदा ननद का भी इसमें हिस्सा बनता है?
2. मेरी जेठानी ने गोदनामा किया या नहीं ये सबूत तो मैं या मेरे पति नहीं दे सकते। पर जब हर कागज में उन्हों ने उन बच्चों को अपना लिखवाया हुआ है तो फिर क्या एक निजी एवं गैर मान्यता प्राप्त नर्सिंग होम के या फोटोज के आधार पर वे इस मकान में हिस्सा ले सकते हैं?
3. बच्चे अभी नाबालिग हैं एवं पहले उनके मामा ने एक झूठा शपथपत्र दिया जिस में उन्हों ने बताया कि बच्चे मेरे पास रहकर पढ़ते हैं, बाद में उन बच्चों ने ही शपथपत्र दिया कि हम अपना हिस्सा चाहते हैं। तो क्या इन शपथपत्रों के आधार पर हम कोई कार्यवाही कर सकते हैं? उनके विरूद्ध एवं किस तरह अर्थात थाने में या परिवाद के आधार पर?
4. यदि नगर पंचायत दुर्भावनावश साक्ष्य ना होते हुए भी उन बच्चों के पक्ष में नाम उनका भी चढा देती है तो क्या हम इस मामले में आगे किस जगह अपील कर सकते हैं?
5. मकान में ससुर जी के बाद के निर्माण कार्य जो कि हमने करवाया है का बंटवारा होने के समय पर हम क्या अपना हिस्सा ले सकते हैं एवं किस तरह से?

समाधान –

संपत्ति आप के ससुर की थी। इस कारण से जिस दिन आप के ससुर का देहान्त हुआ उस दिन की स्थिति को देखा जाएगा। क्यों कि जिस दिन आप के ससुर जी का देहान्त हुआ है उस दिन जो संपत्ति थी वह उसी दिन उन के उत्तराधिकारियों की संयुक्त संपत्ति में परिवर्तित हो गई। आप के ससुर जी की मृत्यु के दिन आप की सास, आप के पति और आप की ननद ये तीन उत्तराधिकारी तो स्पष्ट हैं जिन का एक एक शेयर बनता है। इन के अतिरिक्त आप के जेठ की पत्नी, व बच्चे भी हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की अनुसूची में प्रथम श्रेणी के अधिकारी हैं, जिन का कुल मिला कर एक हिस्सा बनता है।

लेकिन आप के ससुर की मृत्यु के पूर्व ही आप की जिठानी विवाह कर चुकी थी इस कारण से वह उत्तराधिकारी नहीं रही क्यों कि वह उस दिन तक विधवा नहीं रही थी। जहाँ तक बच्चों का प्रश्न है यदि वे आप के ससुर की मृत्यु के पहले गोद जा चुके थे तो ही उन्हें उत्तराधिकार से वंचित किया जा सकता है। गोद देने के लिए माता-पिता की सहमति जरूरी होती है और लेने के लिए भी दत्तक माता-पिता की सहमति की आवश्यकता है। इस मामले में गोद देने व लेने वाली माता तो एक ही है तथा गोद देने वाले पिता का देहान्त हो चुका है इस कारण माता अपने वर्तमान पति को बच्चों को गोद दे सकती है। गोद के लिए एक समारोह जरूरी है। चूंकि गोद जाना आप के पति, ससुर तथा आप की ननद कहना चाहेंगे, इस कारण से आप को ही प्रमाणित करना होगा कि बच्चे गोद जा चुके थे। यह आप के लिए अत्यन्त कठिन बल्कि दुष्कर कार्य होगा। लेकिन बच्चों के स्कूल आदि के प्रमाण पत्र आप के ससुर की मृत्यु के पहले के हों जिन में उन के पिता का नाम आप की जिठानी के वर्तमान पति का दर्ज हो तो यह माना जा सकता है कि बच्चे गोद जा चुके हैं। यदि न्यायालय ने यह मान लिया कि बच्चे गोद जा चुके हैं तो उन तीनों का कोई हिस्सा नहीं बनेगा।

प की ननद का विवाह होने के बाद भी वह आप के ससुर की उत्तराधिकारी है और उस का हिस्सा बनता है।

गर पंचायत केवल संपत्ति का हिसाब रखती है। उसे संपत्ति का बंटवारा करने का कोई अधिकार नहीं है। यदि वह अपने रिकार्ड में गलत रूप से नामान्तरण दर्ज करती है तो वह संपत्ति के स्वामित्व का प्रमाण भी नहीं है। बँटवारा केवल दीवानी वाद के माध्यम से अथवा आपसी रजामंदी से संभव है। इस के लिए आप के पति, सास या ननद को बँटवारे का दीवानी वाद दीवानी न्यायालय में प्रस्तुत करना होगा। इस वाद में शेष सभी हिस्सेदारों को आप को पक्षकार बनाना होगा। यदि आप तीनों में से कोई वाद प्रस्तुत करता है और आप मानते हैं कि जिठानी और उस के पुत्रों का कोई हिस्सा नहीं है तो उन्हें पक्षकार बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। आप तीनों में से कोई भी नगर पंचायत को पक्षकार बना कर यह वाद प्रस्तुत करते हैं और नगर पंचायत के विरुद्ध इस आशय का आदेशात्मक स्थाई व्यादेश न्यायालय से प्राप्त करने की राहत भी मांगते हैं कि वह बँटवारे के आधार पर रेकार्ड में नामान्तरण दर्ज करे तो आप अस्थाई व्यादेश का आवेदन प्रस्तुत कर न्यायालय के निर्णय तक नगर पंचायत के रिकार्ड में नामान्तरण दर्ज न करने का अस्थाई व्यादेश भी प्राप्त कर सकते हैं। आप के पति वर्तमान में नगर पंचायत में आवेदन प्रस्तुत कर आपत्ति प्रस्तुत कर सकते हैं कि आप लोगों में संपत्ति के स्वामित्व के संबंध में विवाद है तथा जब तक आपसी समझौते से अथवा न्यायालय के निर्णय से हिस्सों का निर्धारण नहीं हो जाता है तब तक वे उन के रिकार्ड में किसी तरह का नामान्तरण दर्ज नहीं करें तो नगर पंचायत अपने रिकार्ड में नामान्तरण की कार्यवाही को रोक सकती है।

प के ससुर जी के देहान्त के उपरान्त यदि कोई निर्माण कार्य आप की सास या आप के पति ने करवाया है और न्यायालय के समक्ष इसे प्रमाणित किया जा सके तो इस कराए गए निर्माण का मूल्य आँक कर संपत्ति के मूल्य में से अलग किया जा सकता है शेष संपत्ति का बँटवारा हो सकता है। इस मामले में आप को दीवानी मामलों के स्थानीय वकील से परामर्श कर के कार्यवाही करनी चाहिए।

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