बँटवारे के वाद हेतु कोई समय सीमा नहीं।
गजेन्द्र पाण्डे ने बस्सी खुर्द, ताजगंज, आगरा, उत्तरप्रदेश से समस्या भेजी है कि-
हमारी पैतृक सम्पत्ति है, जिस पर हमारे दादाजी के चाचाजी आदि लोगों ने कब्ज़ा कर रखा है। सन १९९० से पूर्व हमारे दादाजी ने उस संपत्ति १/२ भाग विक्रय कर दिया था। जिसकी जानकारी हमें खतौनी १४१०-१५ फसली से हुयी है, हमारे दादाजी का अकस्मात देहांत हो जाने के कारण, हमें उस जगह की कोई भी जानकारी नहीं थी। लेकिन दादाजी के चाचाजी के परिवार के लोगो को उसकी जानकारी तभी से थी और वो उस ज़मीन पर तभी से कब्ज़ा किये हैं। सं २००४ में हमारे दादाजी के बड़े भाई के परिवार के लोगों ने उस ज़मीन के बटवारे के लिए उन लोगों के खिलाफ मुकदमा किया, किन्तु न तो वकील किया न तारीख में गए, जिससे पक्ष अनुपस्थित होने के कारण मुकदमा ख़ारिज कर दिया गया। वो बताते भी नहीं उन्होंने ऐसा क्यों किया? दादाजी के चाचाजी के परिवार का कहना है कि हमारे दादाजी ने अपना सम्पूर्ण भाग विक्रय कर दिया था, किन्तु वर्तमान खतौनी मैं भी हमारे पिताजी का नाम अंकित है। क्या ऐसा संभव की हम पुनः बटवारे के लिए मुकदमा करके अपनी ज़मीन प्राप्त कर सकते हैं? और मुकदमे ख़ारिज होने तथा इतने दिनों से उन लोगो का उस ज़मीन पर कब्ज़ा होने से कोई फर्क पड़ेगा?
समाधान–
आप के पिताजी का नाम अभी भी खाते में दर्ज है, इस कारण वे सहखातेदार हैं और अब भी बंटवारे का दावा कर सकते हैं। किसी भी सहखातेदार के लिए बँटवारे का वाद संश्थित करने की कोई समय सीमा नहीं है। पहले बँटवारे का जो वाद हुआ था उस में किसी के अधिकारों पर कोई निर्णय नहीं किया गया था इस कारण उस मुकदमा खारिज होने का भी कोई प्रभाव इस वाद पर नहीं होगा।
कब्जे का प्रभाव अधिक नहीं है। कोई भी संयुक्त संपत्ति किसी एक संयुक्त खातेदार के खाते में होने पर भी सभी संयुक्त खातेदारों के कब्जे में मानी जाती है। इस कारण किसी का कब्जा होने से इस मामले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
आप को चाहिए कि आप उक्त भूमि के राजस्व रिकार्ड की प्रमाणित प्रतिलिपियाँ प्राप्त करें और राजस्व मामलों का काम करने वाले किसी स्थानीय वकील से मिलें और उस की सहायता से बँटवारे का वाद प्रस्तुत करें।