मुकदमों के निपटारे में देरी का कारण जरूरत से बहुत कम न्यायालय व न्यायाधीशों का होना है।
समस्या-
हलद्वानी, उत्तराखण्ड से बीना ने पूछा है-
उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किसी प्रकरण की सुनवाई में हो रहे अनावश्यक विलम्ब हेतु क्या कहीं शिकायत की जा सकती है? या कार्यवाही शीघ्र करने हेतु कहां अपील करनी चाहिए?
समाधान –
किसी भी उच्च न्यायालय में किसी भी मुकदमे में कोई अनावश्यक देरी नहीं की जाती है। देरी का मुख्य कारण न्यायालय में लम्बित मुकदमों की संख्या है। वास्तव में हमारे न्यायालयों में केवल इतनी संख्या में मुकदमे होने चाहिए कि छह माह से दो वर्ष की अवधि में हर प्रकार के मुकदमे में अन्तिम निर्णय हो जाए। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के पद कम होने तथा जितने पद हैं उतने न्यायाधीश नियुक्त नहीं होने से लम्बित मुकदमों की संख्या बढ़ती जाती है। मुकदमे की ग्रहणार्थ सुनवाई के बाद यदि उस में कोई अन्तरिम राहत का कोई आवेदन नहीं होता या फिर अन्तरिम राहत के प्रार्थना पत्र के निर्णीत कर दिया गया होता है तो उसे क्रमानुसार (ड्यू कोर्स मे) सुनवाई के लिए रख दिया जाता है। इस तरह रखे गए मुकदमों में से प्रति सप्ताह उतने ही सब से पुराने मुकदमे सुनवाई के लिए न्यायालय में रखे जाते हैं जितने मुकदमों का प्रति सप्ताह निर्णय हो जाता है। इस तरह किसी मुकदमे में अनावश्यक देरी नहीं होती।
इस देरी को समाप्त करने का यही एक तरीका है कि सर्वोच्च न्यायालाय व उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या पर्याप्त मात्रा में बढ़ाई जाए जिस से जितने मुकदमे प्रति वर्ष न्यायालय में प्रस्तुत होते हैं उन से कम से कम सवाए मुकदमों का निर्णय प्रति सप्ताह किया जा सके और धीरे धीरे मुकदमो की सुनवाई में लगने वाले समय को कम किया जा सके।
इसी तरह अधीनस्थ न्यायालयों की संख्या जरूरत की मात्र 20 प्रतिशत होने के कारण वहाँ मुकदमों के निपटारे में अत्यधिक समय लगता है। वहाँ भी न्यायालयों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या केवल केन्द्र सरकार बढ़ा सकती है क्यों कि उसे बढ़े हुए न्यायाधीशों के खर्च और व्यवस्था के अनुपात में वित्तीय व्यवस्था और करनी पड़ेगी। इस कारण मुकदमों में लगने वाले अधिक समय के लिए केन्द्र सरकार दोषी है। उसी तरह अधीनस्थ न्यायालयों की संख्या बढ़ाने के लिए राज्य सरकार जिम्मेदार है। वह इस के लिए पर्याप्त वित्तीय व्यवस्था नहीं करती है। सरकारों को केवल मतदाताओं की नाराजगी ही इस काम के लिए बाध्य कर सकती है। लेकिन जब चुनाव होते हैं तो दूसरे रोजमर्रा के मामले अधिक महत्व प्राप्त करते हैं और त्वरित न्याय का मुद्दा सिरे से ही गायब हो जाता है।
पहली बार आम आदमी पार्टी यह वायदा कर रही है कि वह इतने न्यायालय खोले जाने के पक्ष में है जिस से जल्दी से जल्दी मुकदमे निपटाए जा सकें। यदि इस पार्टी द्वारा इस मुद्दे को गौण नहीं किया जाए तो दूसरी पार्टियों को भी यह काम करना होगा। तभी न्याय प्राप्त करने में जो देरी होती है उसे कम किया जा सकेगा।
वैसे यदि किसी मुकदमे में कोई ऐसी बात हो कि उसे तात्कालिक रूप से निपटाए जाने का कोई मजबूत कारण हो तो उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को आवेदन दे कर यह बताया जा सकता है कि उस मुकदमे में तुरन्त सुनवाई की क्या जरूरत है। तब यदि मुख्य न्यायाधीश समझते हैं कि मुकदमे की सुनवाई जल्दी की जानी चाहिए तो वे उस मुकदमे की तत्काल सुनवाई करने का आदेश दे सकते हैं।