मुस्लिम महिलाओं द्वारा विवाह विच्छेद कराने के अधिकार का कानून
|तीसरा खंबा के एक पाठक फीरोज़ अहमद साहब ने कुछ दिन पहले तीसरा खंबा को कहा था कि कृपया मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 के बारे में संक्षेप में हिन्दी में बताएँ। लेकिन यह अधिनियम इतना महत्वपूर्ण है कि मुझे लगा कि इस पर कुछ खुल कर बात करना चाहिए। मैं ने इसे समझने का प्रयत्न किया है। वैसे किसी भी कानून का खुलासा तभी होता है जब उस के प्रावधानों का विश्लेषण उँची अदालतों द्वारा किया जाए। हम यहाँ पहली नजर इस कानून पर डालेंगे। यदि पाठकों की इस कानून में रुचि दिखाई दी तो हम इस कानून के विश्लेषण की ओर कदम बढ़ाएँगे।
यदि कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी की भऱण पोषण करने में उपेक्षा करे, उसे त्याग दे, या उस के साथ लगातार क्रूरता का व्यवहार करे, उसे छोड़ कर गायब हो जाए या किसी अन्य प्रकार से उस के जीवन को नारकीय बना दे तो भी हनाफ़ी मुस्लिम कानून में एक विवाहित महिला द्वारा उस के पति से विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने का कोई प्रावधान नहीं है। इस स्थिति से ब्रिटिश भारत में एक बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं का जीवन नारकीय बना हुआ था। हालांकि हनाफी न्यायविदों ने यह स्पष्ट किया था कि ऐसे मामलों में जहाँ हनाफी कानून कठोर बन कर सामने आता है, वहाँ मालिकी, शाफ़ी और हम्बली कानूनों के सिद्धान्तों का सहारा लिया जा सकता है। इस संबंध में उलेमाओं ने अनेक फ़तवे भी जारी किए हुए थे। मौलाना आसिफ़ अली साहब ने अपनी पुस्तक ‘हिलातुन नजेज़ा’ में उन दिनों भारत के मुसलमानों में प्रचलित हनाफी कानून के उन सिद्धांतों को प्रस्तुत किया था जो इन कठिन परिस्थितियों में मुस्लिम महिलाओं को राहत प्रदान करते थे। बहुत बड़ी संख्या में उलेमाओं ने इस पुस्तक में वर्णित सिद्धांतों की पुष्टि करते हुए अपनी सहमति व्यक्त की थी। लेकिन अदालतें मुश्किल हालात में फँसी मुस्लिम महिलाओं को इन सिद्धांतों के आधार पर राहत देनें में हिचकिचाती थीं।
एक समस्या और थी कि न्यायालय ये मानते थे कि मुस्लिम महिलाओं के धर्म बदल लेने से उन का विवाह स्वतः ही समाप्त हो जाता है। हालांकि इस सिद्धांत को अनेक बार चुनौती दी गई। उलेमाओँ ने इस सिद्धांत को मुस्लिम विधि के विरुद्ध बताते हुए फ़तवे जारी किए, मुस्लिम आबादी में से इस के विरुद्ध आवाजें उठती रहीं, अनेक लेख अखबारों में प्रकाशित हुए। लेकिन अदालतें लगातार इस सिद्धांत को सही मानते हुए निर्णय देती रहीं। मुस्लिम महिलाओं के विवाह विच्छेद के अधिकार और उन के संन्यास लेने पर विवाह समाप्त हो जाने के सिद्धांत को स्पष्ट करने के लिए मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम-1939 पारित किया गया।
मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम-1939 के प्रावधान क्या हैं हम अगली कड़ी में जानेंगे। (जारी)
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9 Comments
I’d come to acquiesce with you here. Which is not something I usually do! I really like reading a post that will make people think. Also, thanks for allowing me to comment!
I’d come to come to terms with you here. Which is not something I usually do! I really like reading a post that will make people think. Also, thanks for allowing me to speak my mind!
@संजय बेंगाणी
संजय जी उस के लिए विशेष विवाह अधिनियम-1954 मौजूद है। इस विषय के उपरांत उस पर भी लिखता हूँ।
जिज्ञासा बनी हुई है.
इस सम्बन्ध में एक राष्ट्रीय कानून भी होना चाहिए जैसे विवाह के लिए है. जाती धर्म से परे कोई भी कोर्ट मैरेज कर सकता है वैसा.
बहुत बढ़िया लिखा है आपने और बड़े ही सुंदर रूप से प्रस्तुत किया है! उम्मीद है कि कुछ न कुछ परिवर्तन ज़रूर होगा! अच्छी और महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई आपके पोस्ट के दौरान! बधाई!
बहुत महत्वपूर्ण विशय पर आपने सम्वाद की शुरुआत की है । इस से कई अन्य लोगों की धारणाओ मे भी परिवर्तन आयेगा ।
आप जिस साबधानी ओर बारीकी से इस के बारे बता रहे है, बहुत अच्छा लगा, इस से कई लोगो का भला होगा.
धन्यवाद
बहुत गहरी बारीकियाँ हैं सर इस क़ानून में। शुक्र है विश्लेषण आप कर रहें हैं। आपका यह क़दम बहुत सराहनीय है सर और आप तो जानते ही हैं आपका यह शागिर्द सदा ही आपके साथ है। अगले अंक के इंतज़ार में।
बहुत अच्छी जानकारी है…इसके लिए शुक्रिया…