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मुस्लिम विधवा को पति की संपत्ति में मिला उत्तराधिकार पुनर्विवाह के बाद बना रहता है।

rp_muslim-women-common2.jpgसमस्या-

साइमा परवेज ने दरियागंज, नई दिल्ली से समस्या भेजी है कि-

मेरा ये सवाल है की एक विधवा औरत जब किसी से शादी कर लेती है तो उसका अपने पहले पति की प्रॉपर्टी में क्या हक़ रहता है? और अगर वह प्रॉपर्टी भी किसी के नाम न हो मतलब पुराने समय में D.D.A. की जगह में बाप दादाओ ने घर लिया था और वो किसी के नाम करके नहीं मरे हैं बेटे सब यूँ ही उस पर कमरे बनवाकर रहने लग गए तो उस प्रॉपर्टी पर हक़ है या नहीं? उनके अगर जवान बच्चे है तो क्या उनका कोई हक़ है इस प्रॉपर्टी पर?

समाधान

प के नाम से पता लगता है कि आप मुस्लिम व्यक्तिगत विधि से शासित होती हैं। मुस्लिम विधि में किसी तरह की कोई पुश्तैनी प्रोपर्टी नहीं होती। कोई भी संपत्ति सिर्फ व्यक्तिगत होती है। हाँ, संयुक्त संपत्ति हो सकती है जिस में व्यक्तियों के हिस्से हो सकते हैं। मसलन डीडीए की जगह में जिस व्यक्ति के नाम से घर आवंटित हुआ वह उस की संपत्ति हुई तथा उस की मृत्यु के उपरान्त उस के उत्तराधिकारियों की संयुक्त संपत्ति रहेगी जब तक कि उत्तराधिकार के नियमों के अनुसार उस का विभाजन न कर दिया जाए। यदि उन में से किसी हिस्सेदार की मृत्यु हो जाती है तो उस के हिस्से पर फिर से उस के उत्तराधिकारियों का संयुक्त स्वामित्व स्थापित हो जाता है। इस तरह विभाजन न होने के कारण किसी भी संपत्ति में हिस्सेदारों की संख्या बढ़ती जाती है। सही तो यह है कि सम्पत्ति के स्वामी या उस के किसी हिस्सेदार की मृत्यु के उपरान्त उत्तराधिकारियों के हिस्से तय कर के अलग कर दिए जाने चाहिए जिस से संपत्ति के स्वामित्व की जटिलता न बढ़े।

क मुस्लिम विधवा को अपने पति की संपत्ति में अधिकार पति की मृत्यु के उपरान्त ही प्राप्त हो जाता है। किसी मुस्लिम पुरुष की मृत्यु पर उस की संपत्ति से सब से पहले उस के अन्तिम संस्कार का खर्चा, पत्नी की महर यदि बकाया हो और अन्य देनदारियाँ चुकाई जाती हैं। शेष संपत्ति में उत्तराधिकारियों को उत्तराधिकार प्राप्त होता है। उत्तराधिकार में भी विधवा पत्नी को यदि उस के कोई सन्तान नहीं हो तो मृत पति की चौथाई संपत्ति और यदि कोई संतान या संतानों की संतान हों तो उसे पति की संपत्ति का 1/8 हिस्सा प्राप्त होता है। यह हिस्सा विधवा को उस के पति की मृत्यु के साथ ही मिल चुका होता है तथा वह उस की स्वामिनी होती है। यदि वह दूसरा विवाह कर भी लेती है तो भी वह उस हिस्से की स्वामिनी बनी रहती है। इसी प्रकार पिता की मृत्यु के साथ ही उत्तराधिकार के नियमों के अनुसार संतानों का भी मृत पिता की संपत्ति में हिस्सा निहीत हो जाता है तथा बना रहता है। लेकिन जब तक कानून के अनुसार विभाजन नहीं होता संयुक्त रूप से उत्तराधिकारी उस संपत्ति का आपसी सहमति से उपयोग करते रहते हैं। कोई अपना हिस्सा अलग प्राप्त करना चाहे तो उसे विभाजन का वाद न्यायालय में प्रस्तुत करना चाहिए।

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