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चेक अनादरित होने पर उसे कानूनी रूप से प्रवर्तनीय ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए देना माना जाएगा।

cheque dishonour1समस्या-

गंगानगर, राजस्थान से विजय जसुजा ने पूछा है-

मैं एक वकील हूँ, मैं ने एक मुकदमा धारा 138 परक्राम्य विलेख अधिनियम के अंतर्गत अपने मुवक्किल का प्रस्तुत किया है जो इस कानूनी की सभी शर्तों को पूरा करता है। किन्तु परिवादी ने जो चार लाख रुपया देना कहा है उसे देने का उस के पास कोई लिखित सबूत नहीं है, और इस तरह का कोई सबूत है कि उस दिन उस के पास चार लाख रुपए कहाँ से आए। क्या न्यायालय में यह साबित करना पड़ेगा कि परिवादी के पास यह धनराशि कहाँ से आई, या उस की आय का स्रोत क्या है? या केवल परिवादी को दिया गया चैक ही पर्याप्त सबूत है? कृपया मार्गदर्शन करें।

समाधान-

धारा 138 परक्राम्य विलेख अधिनियम में किसी चैक के अनादरण को अपराधिक और दंडनीय कृत्य घोषित किया है। लेकिन इस अपराध के लिए अभियुक्त पर अभियोजन चलाने की कुछ शर्तें हैं। इन शर्तों के अन्तर्गत ही अभियोजन चलाया जा सकता है। जो निम्न प्रकार हैं-

1.चेक धारक बैंक से चेक के अनादरण की सूचना प्राप्त होने की तिथि से 30 दिनों की अवधि में चेक देने वाले व्यक्ति को उस चेक की राशि का भुगतान करने का लिखित नोटिस देगा।

2. यदि चेक देने वाला व्यक्ति उसे नोटिस प्राप्त होने के 15 दिन की अवधि में चेक की राशि का भुगतान चेक धारक को कर देता है तो उक्त अपराध का शमन हो जाएगा और अभियोजन नहीं चलाया जा सकता।

3. लेकिन यदि चेक देने वाला व्यक्ति चेक धारक को 15 दिनों में चेक की राशि का भुगतान नहीं करता है तो चेक देने वाले व्यक्ति को नोटिस प्राप्त होने के 15वें दिन अभियोजन चलाने के लिए वाद कारण उत्पन्न हो जाएगा।

4. वाद कारण उत्पन्न होने की तिथि से एक माह की अवधि में चेक धारक चेक देने वाले व्यक्ति के विरुद्ध न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत कर सकेगा।

ह अपराध वस्तुतः चेक अनादरण के संबंध में है जिस का उद्देश्य चेक की महत्ता और उस के मूल्य को बनाए रखना है। उक्त कृत्य को अपराधिक बनाए जाने के पहले तक स्थिति यह थी कि कोई भी व्यक्ति कभी भी किसी को भी चेक दे देता था और चेक के अनादरित हो जाने पर चेक धारक के पास चेक की धनराशि प्राप्त करने का एक ही माध्यम था कि वह चेक देने वाले व्यक्ति पर उस राशि की वसूली के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत करे। इस के लिए चेक धारक को यह साबित करना जरूरी हो जाता था कि चेक देने वाले व्यक्ति पर चेक की धनराशि चेक धारक को अदा करने का का दायित्व था, तथा ऐसी राशि को वह कानूनी रूप से न्यायालय के माध्यम से वसूल कर सकता था। लेकिन अब कानून में यह अपराधिक उपबंध आ जाने के कारण केवल चेक का अनादरण होना ही पर्याप्त हो गया तथा यह साबित करने की कोई जिम्मेदारी नहीं रही कि चेक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय किसी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए दिया गया था।

धारा 139 में यह उपबंध है कि जब तक कि इस के विरुद्ध साबित न कर दिया जाए यह माना जाएगा कि चेक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय किसी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए दिया गया था।

स तरह धारा 138 के मुकदमे में परिवादी के लिए यह साबित करने का दायित्व नहीं रहा है कि उस चेक देने वाले व्यक्ति ने उक्त चेक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय किसी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए दिया था। अपितु यह साबित करने का दायित्व अभियुक्त पर है कि उसे उक्त चेक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय किसी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए नहीं दिया गया था।

न मामलों में अभियोजन पक्ष की साक्ष्य समाप्त होने के उपरान्त यदि अभियुक्त अपने बचाव में कोई साक्ष्य प्रस्तुत करे और उस के उपरान्त प्रकरण अन्तिम बहस के लिए तिथि निश्चित किए जाने के समय परिवादी या उस के वकील को ऐसा प्रतीत हो कि प्रकरण में अभियुक्त ने अपने बचाव में यह साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत की है कि उक्त चेक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय किसी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए नहीं दिया गया था तो यह साबित करने के लिए कि वह चेक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय किसी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए दिया गया था न्यायालय से आवेदन कर के साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर मांगना चाहिए और स्वयं यह साबित करना चाहिए कि कानूनी रूप से प्रवर्तनीय किसी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए दिया गया था।

स तरह के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्धारित किया है कि यदि अभियुक्त अभियोजन पक्ष की साक्ष्य से या प्रतिरक्षा में प्रस्तुत साक्ष्य से यह साबित कर देता है कि चेक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय किसी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए नहीं दिया गया था अपितु उस का कोई अन्य उद्देश्य जैसे किसी तरह की सुरक्षा (Security) उत्पन्न करना मात्र था तो वैसी स्थिति में अभियोजन असफल हो जाएगा।

स तरह प्राथमिक रूप से आप पर अपने मुवक्किल के मामले में यह साबित करने की कोई आवश्यकता नहीं है कि उसे चेक देने वाले व्यक्ति ने यह चेक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय किसी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए दिया था या चेक देने के समय उस के पास यह राशि कहाँ से आई या उस की आय का स्रोत क्या है।

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