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मुस्लिम स्त्री की मृत्यु के बाद उस की आधी संपत्ति पर पति तथा शेष आधी संपत्ति पर मायके वालों का हक …

तलाकसमस्या-

बलिया, उत्तर प्रदेश से नदीम अख्तर ने पूछा है –

मैं मुस्लिम हूँ और जाति का पठान हूँ। मैं ने नवम्बर 2011 में अपनी छोटी बहन की शादी इसी जिले के ‘सिकन्दरपुर कस्बे’ में रहने वाले एक सजातीय परिवार में किया था। किन्तु हमारा दुर्भाग्य यह कि जून 2013 में उसकी अकाल मृत्यु हो गई। मृत्यु का कारण हार्ट अटैक था। मृत्यु हॉस्पीटल में इलाज के दौरान हुई। इलाज हम ही करा रहे थे। जिस रात उसकी मृत्यु हुई, वह उसी दिन सुबह हमारे यहाँ आई थी। उसे सर दर्द, कमजोरी और घबराहट हो रही थी। उसे पहले कभी हार्ट की कोई तकलीफ नहीं थी। खुशमिजाज, जहीन और चरफर रहने वाली लड़की थी। जो भी उसके सम्पर्क में आता, उसके काम और व्यवहार की तारीफ किये बिना न रहता था। उम्र महज 26 वर्ष थी। हॉस्पीटल की लापरवाही भी नही कह सकता, सब हमारे सामने ही हुआ था। डॉक्टर ने पूरी कोशिश की, लेकिन हालत बिगड़ी ही चली गई। पोस्टमार्टम नहीं हुआ, धार्मिक हवाले से कोई इसके लिए तैयार भी नहीं हुआ। उसके ससुराल में कोई कमी नहीं थी, लेकिन ससुरालियों का व्यवहार ठीक नहीं था। पति दुबई में काम करता है, और उसकी डेढ़ साल की शादी शुदा जिन्दगी में महज दो महीने ही साथ रहा। कोई बच्चा नहीं था। मृत्यु के समय वह दुबई ही था। ससुराली हर समय उसके पीछे पड़े थे।  दिन भर कामों में वह झुँकी रहती थी। आखरी दो हफ्तों में स्थिति अधिक बुरी हो गई थी। परिवार के दामाद अपने पूरे परिवार के साथ आ गये थे। उसे प्रातः 4 बजे से देर रात तक गर्मी में उन लोगों की सेवा में खटना पड़ा। कई दिनों से वह सही से सोई नहीं थी। बिजली न रहने पर उसे पंखा चला कर सोने की मनाही थी और वे इनवर्टर के पंखे में चैन से सोते रहे। मृत्यु से तीन-चार दिन पहले से उसे तकलीफ थी, लेकिन इलाज के लिए ध्यान नहीं दिया गया। उस नेकबख्त ने हमसे भी नहीं बताया। सम्बन्धियों के वापस चले जाने के बाद उसने मुझे फोन कर के ले चलने के लिए कहा। मैं उसे उसी दिन लाया। एडमिट कराया, लेकिन वो नहीं बची। मैं उसे नहीं बचा सका। वह हमारे हाथ से फिसल गई। फोन करने पर वह कुछ बताती भी नही थी, सब ठीक है कह जाती थी। ससुराल में उसे कुछ परेशानी है, इसका हमें एहसास था। हमने बहनोई से बात भी किया था। उसने कुछ महीनों बाद वहीं ले जाने की बात कही थी। हमने उम्मीद किया कि सब ठीक हो जाएगा, लेकिन उसकी नौबत ही नही आई।  उसकी अकाल मौत से हमारे परिवार को गहरा सदमा लगा है और हम इसे नियति के हवाले खुद को दिलासा दे रहे हैं। लेकिन उधर बहन के मरने के बाद से ही दूसरी शादी की तैयारियाँ हो रही हैं। वे खुश हैं कि शादी का सारा दहेज जस का तस उनके पास ही है। फिर शादी करेंगे, फिर दहेज बटोरेंगे। बहन की मौत से तो जैसे उनकी लॉटरी लग गई है।

मेरी बहन तो बेहतर जिन्दगी की आस लिए तड़पती हुई चली गई और ये गिद्ध उसके सामान को नोचने की फिराक में हैं। साथ ही मर चुकी मेरी बहन और हमें जलील कर रहे हैं  कि उसे हार्ट की बीमारी थी और हमने इसे छिपाते हुए उनके गले मढ़ा था। यह सब सुन कर खून खौलता है। लेकिन शिक्षित इन्सान हूँ, कानून हाथ में नहीं ले सकता।

शादी में हमने अपनी हैसियत से ज्यादा कर्ज-बाकि करके दहेज दिया था। करीब छः लाख खर्च हुए थे, जिसमें से पचास हजार से कुछ अधिक ही नकद दिया था। हमारे पास दहेज की सूची तो है, परन्तु बिना किसी हस्ताक्षर के है। हालाँकि तमाम लोग इसके साक्षी हैं। हमारे सभी रिश्तेदारों ने हमसे दहेज वापस माँगने के लिए कहा।

मैने उनसे महज डेढ़ साल की शादी होने, कोई बच्चा न होने सामान जस का तस पड़ा होने और दूसरी शादी होने पर नई वधु के द्वारा अपना दहेज अपने साथ लाने के हवाले उनसे दहेज वापसी की माँग किया तो उन सभी का एक सुर (बहनोई भी) जवाब था—

—ऐसा कहाँ होता है? कोई तलाक थोड़े ही हुआ है।

—एक बार दे देने के बाद आपको वापस पाने का कोई हक नही है।

—आप का खर्च हुआ तो हमारा भी खर्च हुआ है।

—आप ने बीमार लड़की हमें ब्याही।

मैं समझता हूँ कि मेरी बहन के प्रति उनके किए सुलूक के लिए मै उन्हें कोई सजा नहीं दिला सकता। लेकिन दहेज वापसी के लिए मैं न्यायालय की मदद लेना चाहता हूँ। इसलिए भी कि, मुझे स्वीकार्य नहीं है कि हमारी मेहनत के पैसों से जो चीजें मैं ने अपनी बहन को दी थी, जिन का इस्तेमाल तो दूर, कई चीजों को तो उसने खोल कर देखा भी नहीं था।  उस का इस्तेमाल वो लोग करें जो अप्रत्यक्षतः उसकी हत्या के दोषी हैं। मैने लोगों की पंचायत का भी विचार किया, तो मैं देखता हूँ कि वहाँ के स्थानीय लोग भले ही अन्दर से उनकी आलोचना कर रहे हैं, लेकिन सब के सामने उन्हीं का पक्ष लेंगे और हमारे लोग भले हमसे हमदर्दी जता रहें है, लेकिन समय पर अपनी व्यस्तता जता कर हट जाएंगे।

मैं आप से जाननाचाहता हूँ कि-

—क्या वाकई मुझे दहेज वापस माँगने का हक नहीं है?

—क्या कहीं किसी कोर्ट में ऐसा केस हुआ है और वादकार के हक में कोर्ट ने आर्डर किया है। क्या ऐसा कोई प्रावधान या सन्दर्भ है?

—मुझे क्या, कैसे करना चाहिए? किस हवाले कैसे अपनी बात कोर्ट में रखनी चाहिए?

—क्या कोर्ट जाने से हमें कुछ हासिल होगा?

कृपया सलाह अवश्य दें! हो सकता है आपकी सलाह पर अमल करके मेरे परिवार और मेरी मृत बहन की आत्मा को सुकून मिले।

समाधान-

मुस्लिम विधि में स्त्री के माता-पिता या रिश्तेदारों द्वारा दहेज दिए जाने का कोई उल्लेख नहीं है. अपितु स्त्री अपने पति से मेहर मुकर्रर करती है जिसे उसे प्राप्त करने का अधिकार होता है। इस तरह मुस्लिम स्त्री को विवाह के पूर्व या बाद में मिले हुए तमाम उपहार चाहे वे दहेज के रूप में क्यों न हों, उस की अपनी संपत्ति हैं।

किसी भी मुस्लिम की मृत्यु के उपरान्त उस की जो भी संपत्ति है वह शरिया के कानून के अनुसार उस के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होती है। एक मुस्लिम स्त्री की मृत्यु के उपरान्त उस की संपत्ति भी शरिया के कानून के अनुसार उस के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी।

रिया के अनुसार आप की बहिन की जो भी संपत्ति है उस का आधा (1/2) हिस्सा उस के पति को प्राप्त होगा। यदि बहिन की माता-पिता जीवित हैं तो एक तिहाई (1/3) हिस्सा माता को प्राप्त होगा तथा छठवाँ (1/6 हिस्सा) पिता को प्राप्त होगा। लेकिन यदि माता-पिता जीवित नहीं हैं तो फिर पति को प्राप्त होने वाले आधे हिस्से के अलावा शेष आधा (1/2) हिस्सा स्त्री की बहन को भाई के साथ प्राप्त होगा।

स से स्पष्ट है कि स्त्री के देहान्त के उपरान्त उस की संपत्ति पर उस के ससुराल में सिर्फ उस के पति को आधे हिस्से पर अधिकार है। शेष आधे हिस्से पर उस के मायके के संबंधियों का अधिकार है।

प अपनी बहिन के ससुराल वालों को कानूनी नोटिस भेज सकते हैं और बहिन की आधी संपत्ति लौटाने के कह सकते हैं। ससुराल वालों के पास आप की बहिन की आधी संपत्ति आप की अमानत है। आप इस अमानत को प्राप्त करने के लिए दीवानी वाद न्यायालय में संस्थित कर सकते हैं। यदि वे स्पष्ट रूप से उक्त अमानत को लौटाने से इन्कार करें तो यह अमानत में खयानत का अपराध होगा जिस के लिए आप उन के विरुद्ध धारा 406 में पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवा सकते हैं। यदि पुलिस कार्यवाही करने से इन्कार करे तो आप न्यायालय में परिवाद दर्ज करवा सकते हैं।