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यदि वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना संभव न रह गई हो तो सहमति से विवाह विच्छेद श्रेयस्कर है।

liveinसमस्या-

जयपुर, राजस्थान से राजीव ने पूछा है –

मेरी शादी 2009 में हुई थी,  मेरी पत्नी अजमेर की रहने वाली हैं। हम ने प्रेम विवाह किया था। मैं ने तो अपने घर पर सब कुछ बता दिया था पर वो लड़की अपने घर वालों से अपनी शादी के बारे में बता नहीं पाई। उसकी नौकरी जयपुर में थी इसलिए उसे मेरे साथ रहने में कोई दिक्कत नहीं हुई। मेरे घर वालों ने उसे कहा कि तुम्हारे घर वालों से बात करे तो उसने कहा की वो टाइम आने पर खुद कर लेगी। पर मेरे चाचा जी ने उसके पापा से बात की तो उन्होंने कहा की मेरी बड़ी बेटी की शादी नहीं हुई है उसकी शादी हो जाएगी तब इनकी शादी की बात खोल देंगे । जब उनकी बड़ी बेटी की शादी हो गई तब हम ने उन्हें शादी की बाद सब को बताने को कहा तो उन होने 2011 में लड़की को घर भेजने को कहा और बोले तीन चार दिन बाद आकर ले जाना। में जब लेने गया तो लड़की ने कहा की मेरी मम्मी की तबीयत खराब हैं बाद में आउंगी।  कुछ टाइम बाद मुझे तलाक का नोटिस मिला , मैं ने जयपुर में धारा 9 के तहत वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना का केस किया। लड़की के न आने पर उसका फैसला मेरे हक में कर दिया गया। अजमेर में जो तलाक का केस लड़की ने मुझ पर किया उसका फैसला भी मेरा हक में हो गया।  अब लड़की ने हाईकोर्ट में अजमेर वाले फैसले के खिलाफ अपील की है। में ये जानना चाहता हूँ की आगे क्या होगा? एक बात और कि मैं अनुसूचित जाति का हूँ और लड़की सामान्य वर्ग की है।  इस बात को लेकर उसके पापा ने मुझ पर जाति सूचक शब्दों से संबोधित किया था जिस का मैं ने उन पर मुकदमा किया था, पर वो मुकदमा मैं ने वापस ले लिया था।  क्या अब मैं उन पर मानहानि का केस कर सकता हूँ। मैं एक व्यापारी हूँ मेरा सारा काम मेरी पत्नी के नाम की फर्म से चलता है। वो मेरी बहिन के साथ भी उसकी फर्म में पार्टनर है, मतलब कि वो मेरा साथ हर कागजी कार्यवाही में हैं। इन केस की वजह से मैं अपने काम में भी बराबर ध्यान नहीं दे पा रहा। हमारे बच्चे नहीं हैं, वो २ बार गर्भवती हुई थी, पर उसका दोनों बार गर्भपात हो गया था। उसने अपने तलाक के नोटिस में क्रूरता का या मारपीट का इल्जाम नहीं लगाया। न ही पैसे की लेन देन का बस वो बिना शर्त तलाक चाहती है। पर क्यों ये नहीं बताया। बाद में उसने अपने बयानों में पेसे का लेनदेन और मेरे द्वारा माँ बाप को डरना धमकाना बताया पर वो दोनों केस में जीत चुका हूँ। में ये जानना चाहता हो की अब हाईकोर्ट में क्या हो सकता है?

समाधान-

प के वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना के मामले में आप के पक्ष में डिक्री हो चुकी है। जिस की कोई अपील नहीं हुई है तथा डिक्री की पालना में आप की पत्नी आप के साथ आ कर नहीं रहने लगी है। इस तरह आप के पास विवाह विच्छेद के लिए आधार मौजूद है। पत्नी द्वारा किए गए विवाह विच्छेद के मामले में आवेदन निरस्त हो गया। उस ने उच्च न्यायालय में अपील की है। उस मुकदमे में क्या आधार आप की पत्नी ने तलाक के लिए लिया था, क्या तथ्य वर्णित किए थे तथा उस पर क्या साक्ष्य ली गई थी यह तो आप के मामले की पूरी पत्रावली देखे बिना कोई भी वकील या विधिवेत्ता नहीं बता सकता। लेकिन जो तथ्य यहाँ आप ने प्रकट किए हैं उन से प्रतीत होता है कि आप की पत्नी के पास विवाह विच्छेद के लिए कोई मजबूत आधार नहीं है और उच्च न्यायालय भी इस मामले में विवाह विच्छेद की डिक्री पारित नहीं करेगा।

दि आप की पत्नी आप के साथ रहना नहीं चाहती है और विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करना चाहती है तो मेरे विचार से आप का संबंध अब बना नहीं रह सकता। जब संबंध के जल्दी ही पुनः स्थापित न होने की कोई संभावना न हो तो उसे बनाए रखने का कोई लाभ नहीं। वैसी स्थिति में सहमति से अलग हो जाना सब से श्रेयस्कर है। इस से दोनों पक्षों के बीच कोई कटुता उत्पन्न नहीं होती और कम से कम मानवीय संबंध बरकरार रह सकते हैं। आप अपनी पत्नी से खुल कर बात करें और पूछ लें कि क्या साथ रहने की तनिक भी संभावना है? यदि नहीं तो आप को पत्नी की इच्छा का सम्मान करते हुए सहमति से विवाह विच्छेद की डिक्री हेतु आवेदन करने का प्रस्ताव अपनी पत्नी के समक्ष रखना चाहिए। इस के साथ आप शर्त ये रख सकते हैं कि आप के जिन जिन व्यवासायों में वह भागीदार है उन से वह बिना कुछ लिए दिए रिटायर हो जाएगी तथा भविष्य के लिए कोई खर्चे की मांग नहीं करेगी न भविष्य में कभी खर्चे की मांग करेगी।

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