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राजस्थान की मीणा जनजाति में विवाह विच्छेद और नातरा

पिछले दिनों मुझे डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ जयपुर, राजस्थान से अनुसूचित जनजाति से संबंधित कुछ समस्याएँ भेजी हैं। सभी समस्याएँ विस्तृत उत्तर की अपेक्षा रखती हैं। सभी का उत्तर एक साथ दिया जाना संभव नहीं है। यहाँ मैं उन का राजस्थान की मीणा अनुसूचित जनजाति में विवाह विच्छेदों से संबंधित एक समस्या और उस के संबंध में मेरा समाधान यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। समस्या इस प्रकार है-

समस्या-
मीणा जन जाति में निम्न प्रकार से विवाह विच्छेदों का प्रचलन है :-
(१) समाज के कुछ लोगों या दोनों परिवारों के कुछ (एक-दो) लोगों के संयुक्त हस्ताक्षर से एक साधारण कागज पर या स्टाम्प पेपर पर यह घोषणा कर दी जाती हैं कि-
‘‘श्री….एवं श्रीमती……का अजजा वर्ग में शामिल मीणा जाति के प्रचलित स्थानीय रीति रिवाजों के अनुसार दि. :…………को विवाह सम्पन्न हुआ था। …..वर्ष साथ रहने के बाद भी दोनों का वैवाहिक रिश्ता निभ नहीं रहा है और दोनों पक्ष एक दूसरे को वैवाहिक सुख देने और एक-दूसरे को खुश रखने में असफल रहे हैं। आगे यह रिश्ता निभना सम्भव नहीं है। इस कारण से हम समाज के प्रचलित स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुसार इस विवाह को समाप्त करके दोनों पक्षों को विवाह बन्धन से आजाद करते है। ऐसा हमारी जाति में पूर्वजों के समय से किया जाता रहा है। दोनों पक्ष आगे अपनी इच्छानुसार दूसरा विवाह करने या नहीं करने के लिये स्वतन्त्र होंगे। यदि इस मामले में दोनों पक्षों में से कोई भी पक्ष कोर्ट कचेहरी में एक-दूसरे के विरुद्ध किसी के बहकावे में आकर या बाद के किसी विचार से प्रभावित होकर कोई कानूनी या अन्य कार्यवाही करेगा तो उसे कोर्ट-कचेहरी में झूठा समझा जायेगा। पति से पत्नी को एक मुश्त गुजारा भत्ता दिला दिया गया है। अत: गुजारे भत्ते के लिये भी कोई वाद नहीं लाया जा सकेगा। दोनों पक्षों से उत्पन्न बच्चों के लालन-पालन की सम्पूर्ण जिम्मेदारी केवल पिता की ही होगी, लेकिन माता जब भी चाहे अपने बच्चों से मिलने आ सकेगी और यदि बच्चे उसके साथ जाना चाहें तो उन्हें कुछ दिनों के लिये अपने साथ भी ले जा सकेगी।’’
नोट-इस प्रकार के घोषणा-पत्र पर अनेक बार पति और पत्नी में से दोनों के या एक किसी पक्ष के हस्ताक्षर भी नहीं होते हैं।
(२) पति-पत्नी दोनों आपसी सहमति एक साधारण कागज पर या स्टाम्प पेपर पर यह घोषणा कर देते हैं कि-
‘‘मैं श्री …..एवं मैं श्रीमती….के मीणा जाति हैं, अजजा वर्ग में शामिल हैं। हमारी जाति के प्रचलित स्थानीय रीति रिवाजों के अनुसार दि. :…………को हमारा विवाह सम्पन्न हुआ था। ….. वर्ष साथ रहने के बाद भी हम दोनों का वैवाहिक रिश्ता निभ नहीं रहा है और हम दोनों एक दूसरे को वैवाहिक सुख देने और एक-दूसरे को खुश रखने में असफल रहे हैं। इस कारण से हम दोनों लम्बे विचार-विमर्श के बाद आपसी सहमति से हमारे विवाह को समाप्त करने की घोषणा करते हैं| हम दोनों आपसी सहमति से हमारी जाति एवं समाज में पुराने समय से प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार इस विवाह को समाप्त करने की घोषणा करके एक-दूसरे को विवाह बन्धन से मुक्त करते हैं। ऐसा हमारी जाति में पूर्वजों के समय से किया जाता रहा है| हम दोनों भविष्य में अपनी इच्छानुसार दूसरा विवाह करने या नहीं करने के लिये स्वतन्त्र होंगे। यदि इस मामले में हम दोनों में से कोई भी पक्ष कोर्ट कचेहरी में एक-दूसरे के विरुद्ध किसी के बहकावे में आकर या बाद के किसी विचार से प्रभावित होकर कोई कानूनी या अन्य कार्यवाही करेगा तो उसे कोर्ट-कचेहरी में झूठा समझा जायेगा| पति से पत्नी को एक मुश्त गुजारा मिल गया है। अत: गुजारे भत्ते के लिये भी कोई वाद नहीं लाया जा सकेगा। हम दोनों पक्षों से उत्पन्न बच्चों के लालन-पालन की सम्पूर्ण जिम्मेदारी केवल पिता की ही होगी, लेकिन माता जब भी चाहे अपने बच्चों से मिलने आ सकेगी और यदि बच्चे उसके साथ जाना चाहें तो उन्हें कुछ दिनों के लिये अपने साथ भी ले जा सकेगी| हम यह घोषणा दो स्वतन्त्र साक्षियों की उपस्थिति में कर रहे हैं।’’
(३) उपरोक्त या ऐसी ही मिलती-जुलती भाषा लिखकर के मीणा जाति में विवाह विच्छेद हो जाते हैं। यह भी सही है कि मीणा जाति में आदिकाल से इस प्रकार से विवाह विच्छेद करने का सामाजिक प्रचलन रहा है। पूर्व में तो केवल पतिपक्ष ही इकतरफा निर्णय लेकर पत्नी को छोड़ देता था। इसके बाद दोनों पक्षों दूसरा विवाह/नातरा कर लिया जाता था। ऐसे अनेक मामले भी हैं, जिनमें कुछ लोगों ने या पक्षकारों ने पुलिस में शिकायत की है। समाज के निर्णय को मनमाना करार देकर या आपसी सहमति को मजबूरी की सहमति करार देकर चनौती दी है। कोर्ट में भी मामले चले हैं, लेकिन मेरी जानकारी में किसी भी पक्ष के खिलाफ कोई दण्डात्मक कार्यवाही नहीं होती है। मीणा जाति के अनेक उच्च पदों पर पदस्थ लोगों के विरुद्ध ऐसे मामले सामने आये हैं।
(४) उक्त बिन्दु (१) से (३) के प्रकाश में मेरा निवेदन है कि कृपया बतावें कि-
क-क्या इस प्रकार से विवाह विच्छेद करना और ऐसे विवाह विच्छेद के बाद दूसरा विवाह/नातरा करना कितना कानून सम्मत है?
ख-यदि इसमें कोई खामी है तो क्या?
ग-मीणा समाज में जारी यह घोषणा-पत्र यदि अपूर्ण है तो इसमें क्या कुछ और जोड़ने या घटाने की जरूरत है| जिससे कि ऐसे विवाह विच्छेद की वैधानिकता को कोई चुनौती नहीं दी जा सके। विशेषकर बिन्दु (२) में वर्णित मामले में, क्योंकि इन दिनों आपसी सहमति का घोषणा-पत्र ही अधिक प्रचलन में है। जिसे उच्च शिक्षा प्राप्त पत्नियां भी मंजूर कर रही हैं।
समाधान-
भारत में सभी धर्मावलंबियों की व्यक्तिगत विधियों को मान्यता प्रदान की गई है और विवाह तथा विवाह विच्चेद के संबंध में सभी के लिए अलग अलग कानून हैं। मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी धर्मावलंबियों के अतिरिक्त भारत में निवास करने वाले सभी लोगों पर हिन्दू विवाह अधिनियम-1955 को प्रभावी बनाया गया है। लेकिन संविधान के अनुच्छेद 366 के क्लॉज 25 में के अर्थेो में घोषित अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर इस अधिनियम की कोई बात लागू नहीं होती है। राजस्थान में मीणा जनजाति घोषित अनुसूचित जनजाति है। इस कारण से राजस्थान की मीणा जनजाति के सदस्यों पर हिन्दू विवाह अधिनियम-1955 के प्रावधान प्रभावी नहीं हैं। अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के इस कानून से मुक्ति प्राप्त हो जाने से उन पर विवाह और विवाह विच्छेद के मामलों में उन की परंपरागत विधियाँ प्रभावी हैं।
नजाति के लोगों में परंपरा के अनुसार विवाह हो जाते हैं, उन्हें कोई नहीं नकारता। आप के द्वारा प्रदर्शित उक्त प्रकार के शपथ पत्रों के माध्यम से विवाह विच्छेद भी हो जाते हैं और किसी पक्ष को कोई आपत्ति नहीं होती तो उन्हें चुनौती भी नहीं मिलती। सब चलता रहता है, चल रहा है और धीरे धीरे परंपरा में शामिल होता जा रहा है। समस्या तब उठ खड़ी होती है जब विवाह विच्छेद को किसी एक पक्ष द्वारा चुनौती दी जाती है और मामला अदालत के सामने चला जाता है। अदालत में चुनौती इस आधार पर दी जा सकती है कि विवाह विच्छेद परंपरा के अनुसार नहीं हुआ है या फिर उस में शिकायत कर्ता की सहमति सम्मिलित नहीं थी जबरन प्राप्त की गई थी।
प के द्वारा दिए गए विवरण से इतना तो पता लगता है कि मीणा समाज में आपसी सहमति से विवाह विच्छेद मान्य है। आपसी सहमति से विवाह विच्छेद होने के समय पत्नी को दिया जाने वाला एक मुश्त गुजारा भत्ता और बच्चों के दायित्व आदि भी तय कर दिए जाते हैं। यदि पति पत्नी दोनों वयस्क हों तो आपसी सहमति को प्रकट करने के लिए दोनों पक्षों द्वारा साक्षियों की उपस्थिति में निष्पादित किया गया कोई दस्तावेज होना चाहिए जिस से बाद में यह साबित किया जा सके कि विवाह विच्छेद परंपरा के अनुसार हुआ है। लेकिन यह परंपरा क्या है? इस का कोई विवरण किसी दस्तावेज आदि में नहीं मिलता कि वास्तव में राजस्थान के मीणा समाज में विवाह और विवाह विच्छेद की परंपरा क्या है? पूरे देश भर की अनुसूचित जनजातियों में आरक्षण का सर्वाधिक लाभ यदि किसी जनजाति के लोगों ने उठाया है तो वह राजस्थान की मीणा जनजाति है। उस में पढ़े लिखे लोगों की भरमार है। बहुत से आईएस और आईपीएस हैं, डाक्टर और इंजिनियर हैं, बहुत से सांसद, विधायक और मंत्री हैं। राजस्थान की मीणा जनजाति जातीय स्तर पर संगठित भी है। उन की ग्राम स्तर पर, जिला और संभाग स्तर पर पंचायतें भी हैं और संभवतः राज्य़ और अखिल भारतीय स्तर की पंचायतें भी। उन की कुछ वेब साइटस् भी हैं। लेकिन इस बात की जानकारी कहीं उपलब्ध नहीं होती है कि मीणा जनजाति में विवाह और विवाह विच्छेद की परंपरा क्या है जिस से निर्देश प्राप्त किया जा सके। खोज के उपरान्त भी मैं यह जानकारी करने में सक्षम नहीं हो सका कि राजस्थान की मीणा जनजाति में विवाह और विवाह विच्छेद की परंपरा के बारे में कोई शोध हुआ है अथवा नहीं। कोई शोधपत्र या पुस्तक भी इस विषय पर उपलब्ध नहीं है, न्यायालय के समक्ष कोई विवाद आ जाने पर न्यायालय जिन से कोई मार्गदर्शन प्राप्त कर सके। (निश्चित रूप से मीणा जाति के अनेक विद्यार्थियों ने समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की होगी, उन में से कुछ तो ऐसे होंगे जो पीएच.डी. करना चाहते होंगे। उन में से किसी को शोध के लिए ‘राजस्थान की मीणा जनजाति में विवाह और विवाह विच्छेद की परंपरा’ विषय को चुन लेना चाहिए, जिस से भविष्य में कम से कम एक प्रामाणिक पुस्तक मार्गदर्शन के लिए उपलब्ध हो सके) इस संबंध में मैं कुछ जनजातियों में विवाह और विवाह विच्छेद की परंपरा का उल्लेख करना चाहूंगा।
धिकांश जनजातियों में विवाह विच्छेद के कड़े नियम नहीं हैं। जनजातियों में विवाह एक सामाजिक संविदा मात्र होती है। अधिकांश विवाह पुरुषों की यौनेच्छा और बच्चों की चाहत पूर्ण करने के उद्देश्य से की जाती हैं। मिर्जापुर की कोरबा जनजाति में विवाह विच्छेद की बहुत आसान प्रक्रिया है। जब पति अपनी पत्नी से असंतुष्ट होता है तो वह उसे अपना घर छोड़ देने के लिए कहता है और उस का भरण पोषण करने से इन्कार कर देता है तो पत्नी अपने पिता के घर चली जाती है। उसे तलाकशुदा माना जाता है और वह दूसरा विवाह करने के लिए स्वतंत्र होती है। इस जनजाति में तलाकशुदा स्त्रियों का बहुत सम्मान किया जाता है यहाँ तक कि जिस स्त्री का सात बार तलाक हो चुका हो उसे धार्मिक और सामाजिक समारोहों में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया जाता है। भील जनजाति में पुरुष जब विवाह विच्छेद चाहता है तो गाँव की जातीय पंचायत बुलाता है और अपने साफे का एक टुकड़ा काट कर पत्नी को देता है इस का अर्थ यह होता है कि वह अपनी पत्नी को छोड़ रहा है और अब उसे उस की बहिन माना जाए। महिला कपड़े के उस टुकड़े को अपने पिता के घर की छत पर लटका देती है जो एक माह तक लटका रहता है जिस का अर्थ यह होता है कि उस पर उस के पति का कोई अधिकार नहीं रह गया है और वह अब किसी अन्य पुरुष से विवाह कर सकती है। गोंड जनजाति में यदि कोई महिला उस के पति की अनुमति के बिना विवाह विच्छेद करना चाहती है तो वह जिस दूसरे पुरुष से विवाह करती है उसे पूर्व पति को हर्जाना देना होता है, हर्जाने की राशि जातीय पंचायत तय करती है।
स तरह विभिन्न जनजातियों मे विवाह विच्छेद की पृथक पृथक परंपराएँ हैं। निश्चित रूप से राजस्थान की मीणा जनजाति में भी कोई न कोई परंपरा अवश्य होगी। जिस का उल्लेख इस तरह के शपथ पत्रों में नहीं किया जाता है। ये शपथ पत्र अक्सर वकीलों और अदालत के टाइपिस्टों द्वारा तैयार किए जाते हैं जिन्हें स्वयं परंपरा की कोई जानकारी नहीं होती। जब इस तरह के विवाह विच्छेद को चुनौती दी जाती है तो न्यायालय के समक्ष सब से पहले यह प्रश्न आता है कि विवाह विच्छेद की परंपरा क्या है और विवाह विच्छेद उस परंपरा के अनुसार हुआ है या नहीं? जो पक्ष विवाह विच्छेद को चुनौती देता है उसे यह साबित करना पड़ता है कि परंपरा क्या है और उस का निर्वाह किस तरह से नहीं हुआ है। अक्सर परंपरा को साबित करना ही कठिन हो जाता है और चुनौती असफल हो जाती है। जिस का परिणाम यह होता है कि कोई कार्यवाही हो ही नहीं पाती है।
प का पहला प्रश्न है कि क्या इस तरह विवाह विच्छेद और नातरा करना कानून सम्मत है। मेरा कहना है कि केवल परंपरा के अनुरूप किया गया विवाह विच्छेद और नातरा ही कानून सम्मत है। इस तरह के शपथ पत्र और इकरारनामे केवल परंपरा के अनुसार विवाह विच्छेद व नातरा करने की स्वीकृति के दस्तावेज मात्र हैं। यदि इस तरह के दस्तावेज तैयार किए जाते हैं तो उस में यह विवरण होना चाहिए कि समाज में परंपरा क्या है और उस के अनुसार क्या कार्यवाही की गई है जिस से विवाह विच्छेद और नातरा सम्पन्न हो गया है। आप के दूसरे प्रश्न का उत्तर भी यही है कि इन में खामी यही है कि परंपरा का विवरण और उस के निर्वाह का विवरण इन दस्तावेजों में नहीं लिखा जाता है।
प का अगला प्रश्न है कि क्या किया जाए जिस से इस तरह के विवाह विच्छेद को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सके। तो यह संभव नहीं है। न्यायालय द्वारा विवाह विच्छेद की डिक्री को भी उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा सकती है। फिर इस तरह के दस्तावेजों के आधार पर किए गए विवाह विच्छेद और नातरा को क्यों नहीं दी जा सकती? चुनौती तो हर किसी चीज तो दी जा सकती है। चाहे वह सफल हो या नहीं। आप का प्रश्न यह होना चाहिए था कि क्या किया जाए जिस से विवाह विच्छेद और नातरा वैधानिक हो और चुनौती दी जाने पर उसे गलत साबित नहीं किया जा सके। इस प्रश्न का उत्तर भी यही है कि परंपरा को स्प्ष्ट किया जाना चाहिए और उस के अनुरूप विवाह और नातरा होना चाहिए।
प स्वयं राजस्थान की मीणा जनजाति के गणमान्य व्यक्ति हैं। आप को प्रयास करना चाहिए कि जनजाति की ग्राम, जिला, प्रदेश पंचायतों और यदि कोई वैश्विक मंच भी हो तो वहाँ भी विवाह, विवाह विच्छेद और नातरा के संबन्ध में विचार किया जाए और प्रक्रिया के किसी एक स्वरूप को मान्यता प्रदान की जाए। इस पर पुस्तक प्रकाशित की जाए जिस से समाज के लोग मार्गदर्शन प्राप्त करें और विवाद न्यायालय के समक्ष जाने पर न्यायालय भी उस से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें।
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