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राष्ट्रध्वज का अपमान करने के आरोप में अभियुक्तों की जमानत होना असामान्य नहीं।

Independence-Dayसमस्या-

भानु प्रताप सिंह डांगी ने मुंगावली, मध्यप्रदेश से समस्या भेजी है कि-

मैं पेशे से एक पत्रकार हूं। 15 अगस्त के रात्रि करीब 8:45 प्राथमिक विद्यालय मुंगावली पर राष्ट्रीय ध्वज लगा हुआ था। जिस की मेरे एवं मेरे एक पत्रकार साथी के द्वारा मौके पर जाकर विडियो रिकार्डिंग की गई। जिस के बाद कुछ असामाजिक लोगों के द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को गलत तरीके से निकाला गया और उसे वहां से ले गये। मेरे साथ उनका झगड़ा भी हुआ जिस की मैंने विधिवत एफआईआर भी थाने में कराई। पुलिस द्वारा उक्त लोगों के खिलाफ धारा 323, 294, 341, 452, 506 एवं 34 आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया और बाद में गवाहों के कथन लेकर प्रकरण में राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971 की धारा 2 का इजाफा किया गया। परंतु न्यायालय में जब उक्त आरोपियों का जमानत आवेदन पत्र प्रस्तुत किया गया। मजिस्ट्रेट ने यह कहते हुए कि यह उक्त व्यक्ति स्कूल के न तो शिक्षक हैं और न ही इनका स्कूल से कोई संबंध है इस से इन पर यह धारा लागू नहीं होती है,जमानत दे दी। मैं इस संबंध में जानना चाहता हूँ कि अब मुझे उक्त प्रकरण में क्या करना चाहिए?

समाधान

प ने यहाँ राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971 का उल्लेख किया है। इस धारा के अन्तर्गत तीन वर्ष के कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडित करने का प्रावधान है। इस धारा को जमानतीय घोषित नहीं किया गया है इस कारण से यह धारा अपराध अजमानतीय है। अजमानतीय होने के कारण इस धारा के अन्तर्गत अभियुक्त को गिरफ्तार कर के मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करना आवश्यक है। पुलिस इस मामले में अन्वेषण कर के आरोप पत्र मजिस्ट्रेट के न्यायालय में प्रस्तुत करती है और आरोप पर अभियुक्त का विचारण होता है। पुलिस का कर्तव्य इतना ही है, जो उस ने पूरा किया है। आप ने यह नहीं बताया कि इस मामले में आरोप पत्र प्रस्तुत हुआ है अथवा नहीं।

हाँ तक जमानत का प्रश्न है तो तीन वर्ष से अनधिक कारावास का दंड होने के कारण उस की जमानत लिया जाना सामान्य प्रक्रिया है। जमानत आवेदन में मजिस्ट्रेट ने क्या लिखा है और क्या नहीं लिखा है इस से बहुत अन्तर नहीं पड़ता है। फिर भी मुझे नहीं लगता कि मजिस्ट्रेट ने ऐसा आदेश दिया होगा जो आपने लिखा है। आप ने जो लिखा है उस के अनुसार मजिसट्रेट ने निश्चयात्मक रूप से यह लिखा है कि यह धारा संबंधित अभियुक्तों पर लागू नहीं होती। किसी भी जमानत के आदेश में इस तरह की निश्चयात्मक भाषा नहीं लिखी जाती है। क्यों कि यह निश्चय तो अभी न्यायालय को विचारण के दौरान आई साक्ष्य के आधार पर दिया जाना है।

प का काम पुलिस को सूचित कर के प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराना था, वह आप करा चुके हैं। आरोप पत्र पुलिस ने प्रस्तुत कर दिया है तो उस की व सभी संलग्न दस्तावेजात की प्रतिलिपियाँ आप न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर प्राप्त कर सकते हैं। उन का अध्ययन कीजिए तथा अपने किसी मित्र वकील से कराइए। यदि आप को लगता है कि पुलिस ने बचाने के लिए पर्याप्त साक्ष्य एकत्र नहीं की है तो तथ्य को आप एक आवेदन के माध्यम से न्यायालय को अवगत करवा सकते हैं। आप इस बात का ध्यान रखें कि विचारण के दौरान गवाह सच्चा बयान दें और पुलिस को दिए गए अपने बयान से न बदलें। आप अपना बयान तो सही दे ही सकते हैं। यदि न्यायालय के समक्ष साक्ष्य से यह प्रमाणित हुआ कि वास्तव में अपराध किया गया है तो अभियुक्तों को दोष सिद्ध हो जाएंगे और उन्हे दंडित किया जा सकता है। लेकिन यदि अपराध साबित नहीं हो सका तो वे दोष मुक्त भी हो सकते हैं।

दि आप को लगता है कि पुलिस और अभियोजन पक्ष अपनी ड्यूटी पूरी तरह नहीं कर रहे हैं तो आप के लिए यह एक समाचार होगा आप एक पत्रकार की हैसियत से उस समाचार को प्रकाशित करवा सकते हैं।

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