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वसीयत और हक-त्याग विलेख में क्या अन्तर हैं?

समस्या-

लालसोट, जिला दौसा, राजस्थान से अर्जुन मीणा ने पूछा है-

हक त्याग और वसीयत नामा में क्या अंतर है क्या कोई पुरुष या औरत हक त्याग करने के बाद उसकी संपत्ति वापस ले सकती है या नहीं?

समाधान-

क-त्याग हमेशा संयुक्त संपत्ति में अर्थात ऐसी संपत्ति में होता है जिस के एक से अधिक स्वामी हों। यह संपत्ति या तो पुश्तैनी हो सकती है या फिर  संयुक्त रूप से खरीदी गयी हो सकती है। किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद संपत्ति हमेशा संयुक्त हो जाती है क्यों कि मृत्यु के साथ ही उस के तमाम उत्तराधिकारी उस संपत्ति के संयुक्त स्वामी हो जाते हैं। यदि इन संयुक्त स्वामियों में से कोई एक या अधिक व्यक्ति उस संपत्ति में अपना अधिकार किसी अन्य संयुक्त स्वामी के पक्ष में त्याग दें तो हक त्याग करने वाले का हिस्सा उस संयुक्त स्वामी को मिल जाता है जिस के हक में हक-त्याग विलेख निष्पादित कराया गया है। संपत्ति में हक-त्याग विलेख से संपत्ति का हस्तांतरण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हो जाता है इस कारण इस विलेख का पंजीकृत होना भी आवश्यक है। पंजीकृत कराए बिना हक-त्याग विलेख का कोई मूल्य नहीं है।

क व्यक्ति  जिस संपत्ति का स्वामी है उस संपत्ति को पूरा या उस का कोई भाग किसी अन्य व्यक्ति के नाम वसीयत कर सकता है। वसीयत पर किसी तरह की कोई स्टाम्प ड्यूटी नहीं है और न ही उस का पंजीकृत कराया जाना जरूरी है। इस कारण वसीयत किसी सादा कागज पर भी हो सकती है, किसी भी मूल्य के स्टाम्प पर लिखी जा कर रजिस्टर भी कराई जा सकती है। वसीयत के लिए जरूरी है कि वसीयत करने वाला वसीयत (इच्छा-पत्र) पर अपने हस्ताक्षर कम से कम दो गवाहों की उपस्थिति में करे और वे दो गवाह भी अपने हस्ताक्षर वसीयत पर करें। वसीयत को पंजीकृत भी कराया जा सकता है। इस का लाभ यही है कि तब वसीयत का वसीयतकर्ता द्वारा दो गवाहों के समक्ष निष्पादित किया जाना प्रथम दृष्टया साबित मान लिया जाता है। इस के विपरीत कोई आपत्ति करे तो वह आपत्ति आपत्ति कर्ता को साबित करनी होती है। लेकिन वसीयत से संपत्ति का हस्तान्तरण तब तक नहीं होता जब तक कि वसीयतकर्ता की मृत्यु नहीं हो जाती। उस  की मृत्यु के साथ ही वसीयत प्रभावी हो जाती है और संपत्ति का हस्तान्तरण हो जाता है। लेकिन वसीयत को वसीयतकर्ता कभी भी निरस्त कर सकता है। कभी भी उसी संपत्ति के संबंध में दूसरी वसीयत कर सकता है।  दूसरी वसीयत पहली से भिन्न हो सकती है। एक ही संपत्ति के बारे ेमें कई वसीयतें हो सकती हैं। यदि अनेक वसीयतें हों तो वसीयत कर्ता ने जो वसीयत अंतिम बार की होगी वह मान्य होगी।

क्त विवरण से आप समझ गए होंगे कि वसीयत और हक-त्याग में क्या भिन्नता है। हक-त्याग केवल सहस्वामी के पक्ष में हो सकता है।  हक-त्याग एक बार होने पर निरस्त नहीं हो सकता। वसीयत वसीयतकर्ता कभी भी निरस्त कर सकता है या दूसरी बना सकता है। हक-त्याग विलेख यदि पंजीकृत है तो वह हक-त्याग करने वाले की इच्छा से निरस्त नहीं कराया जा सकता। हाँ उस में कोई अवैधानिकता हो तो उसे कानून के अनुसार न्यायालय में दावा कर के जरूर निरस्त कराया जा सकता है।