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वसीयत फर्जी होने की संभावना होने पर वंचित उत्तराधिकारी विभाजन का वाद करें।

समस्या-

बुरहानपुर, मध्यप्रदेश से नीतेश दलाल ने पूछा है-

मेरे नानाजी का देहान्त हो गया है।  मेरे चारों मामा कहते हैं कि नाना अपनी पूरी संपत्ति उन के नाम वसीयत कर गए है।  मेरी माँ और मौसी नाना जी की दो लड़कियाँ हैं। उन के नाम पर कुछ भी नहीं छोड़ा है। जो वसीयत लिखी है  वह पंजीकृत नहीं है, और उन के गवाह भी मर चुके हैं।  वसीयत बनावटी भी हो सकती है। मुझे क्या करना चाहिए?

समाधान-

प ने यह नहीं बताया कि क्या आप की माता जीवित हैं?  आप का तो अभी अपनी माता के जीवित रहते हुए कोई अधिकार नहीं बनता है।

से मामलों में जहाँ वसीयत के दोनों गवाह जीवित न हों और वसीयत कर्ता के जीवन काल में उस ने वसीयत के बारे में किसी को न बताया हो वसीयत के फर्जी कूट रचित होने की संभावनाएँ अत्यन्त प्रबल होती हैं। यदि आप की माता जी और मौसी यह समझती हैं कि वसीयत आप के नाना जी ने नहीं लिखी है अपितु फर्जी बनाई गई है तो वे कार्यवाही कर सकती हैं।

प की माता जी और मौसी हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार आप के नाना द्वारा कोई वसीयत नहीं करने पर मामाओं के समान उक्त संपत्ति के हिस्से की हकदार होंगी।  आप की माता जी और मौसी को उक्त संपत्ति के विभाजन के लिए दीवानी वाद जिला न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए।   आप की माँ और मौसी द्वारा प्रस्तुत विभाजन के वाद में उस वसीयत का कोई उल्लेख न किया जाए।  तब आप के मामा अवश्य ही वाद के जवाब में उस कथित वसीयत का उल्लेख करते हुए यह अभिवचन करेंगे कि उन के पिता ने उन की समस्त संपत्ति की उन चारों के नाम वसीयत कर दी थी। यह अभिकथन मामाओं की ओर से होने के कारण उन पर उस वसीयत को साबित करने का भार होगा। लेकिन वसीयत को सही साबित करना गवाहों की गैर मौजूदगी में उन के लिए आसान नहीं होगा।  यदि आप के मामा वसीयत को साबित नहीं कर पाए तो इस वाद के निर्णय पर पारित डिक्री से आप की माँ और माता जी को उन के पिता की संपत्ति में मामाओं के बराबर का हिस्सा प्राप्त हो सकता है।

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