वाद किस न्यायालय में संस्थित किया जाए ?
|पिछले रविवार को हमने बात की थी कि दीवानी प्रकृति के वाद क्या हैं ? इस कड़ी में स्पष्ट किया गया था कि ‘वह वाद, जिस में संपत्ति संबंधी या पद सम्बन्धी अधिकार प्रतिवादित है, इस बात के होते हुए भी कि ऐसा अधिकार धार्मिक कृत्यों या कर्मों सम्बन्धी प्रश्नों के विनिश्चय पर पूर्ण रूप से अवलम्बित है, दीवानी प्रकृति का वाद है। आज इसी बात को आगे बढ़ाते हुए हम बात करेंगे इस प्रश्न पर कि दीवानी वाद कहाँ और किन न्यायालयों में संस्थित किए जा सकते हैं?
आर्थिक क्षेत्राधिकार
इस का सब से पहला और महत्वपूर्ण नियम यह है कि कोई भी वाद उस निम्नतम श्रेणी के न्यायालय में संस्थित किया जाएगा जिस का विचारण करने के लिए वह सक्षम है। यहाँ निम्नतम श्रेणी से तात्पर्य किसी न्यायालय के आर्थिक क्षेत्राधिकार से हैं। उदाहरण के रूप में दिल्ली में 1 पैसे से ले कर 20 लाख रुपए तक मूल्य के वाद जिला न्यायालय में तथा इस से अधिक मूल्य के सभी वाद उच्च न्यायालय में संस्थित किए जाएंगे। जब कि राजस्थान में एक पैसे से 25 हजार रुपयों तक मूल्य के वाद सिविल जज कनिष्ठ खंड के न्यायालय में, 25001 रुपए से ले कर 50000 रुपए मूल्य तक के वाद सिविल जज वरिष्ठ खंड के न्यायालय में तथा इस से अधिक मूल्य के सभी वाद जिला न्यायाधीश के न्यायालय में संस्थित किए जाएंगे। इस तरह सभी राज्यों के लिए न्यायालयों का आर्थिक क्षेत्राधिकार भिन्न भिन्न है। जिस व्यक्ति को जिस राज्य में अपना वाद संस्थित करना हो उसे पता करना चाहिए कि उस राज्य में आर्थिक क्षेत्राधिकार का निर्धारण किस प्रकार से किया गया है। उसी के अनुरूप अपना वाद सक्षम न्यायालय में संस्थित करना चाहिए।
स्थान आधारित क्षेत्राधिकार
वाद यदि …
- किसी स्थावर संपत्ति का कब्जा प्राप्त करने का हो चाहे वह किराया या लाभ प्राप्ति के साथ हो या न हो;
- स्थावर संपत्ति के विभाजन का हो;
- स्थावर संपत्ति के बंधक की या उस पर या उस पर भार के पुरोबंध, विक्रय या मोचन के लिए हो;
- स्थावर संपत्ति में किसी अन्य अधिकार या हित के अवधारण के लिए हो;
- स्थावर संपत्ति के प्रति किए गए किसी दोष के प्रतिकर के लिए हो; या
- कुर्की या कर की वसूली के लिए स्थावर संपत्ति स्थावर संपत्ति को हस्तगत करने के लिए हो
तो वाद उस स्थानीय न्यायालय में संस्थित किए जाएँगे जिस की स्थानीय अधिकारिता के अंतर्गत वह संपत्ति स्थित है।
लेकिन प्रतिवादी के लिए या उस के द्वारा धारित संपत्ति के संबंध में अनुतोष की या ऐसी संपत्ति के प्रति दोष के लिए प्रतिकर की प्राप्ति के लिए वाद यदि जो राहत मांगी गई है वह व्यक्तिगत अनुपालना के द्वारा प्राप्त की जा सकती है तो वाद या तो उस न्यायालय में संस्थित किया जा सकेगा जिस की स्थानीय अधिकारिता में वह संपत्ति स्थित है या फिर वहाँ संस्थित किया जा सकेगा जहाँ प्रतिवादी स्वेच्छा से और वास्तव में निवास करता है, या कारोबार करता है, या अभिलाभ के लिए स्वयं काम करता है।
- उपरोक्त मामलों में संपत्ति जहाँ एक से अधिक न्यायालयों के स्थानीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत स्थित है तो वाद किसी भी ऐसे न्यायालय में संस्थित किया जा सकेगा जिस के स्थानीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत उस संपत्ति का कोई भाग स्थित है। किन्तु तभी जब कि पूरे की विषय वस्तु के मूल्य की दृष्टि से उस न्यायालय द्वारा वाद संज्ञेय हो।
- जहाँ यह अभिकथित किया जाता है कि यह अनिश्चित है कि किन्ही एकाधिक न्यायालयों के स्थानीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत स्थित है, वहाँ वाद उन में से किसी भी न्यायालय में संस्थित किया जा सकेगा और उस के द्वारा पारित डिक्री मान्य होगी लेकिन तभी जब कि न्यायालय ऐसा है जो वाद की प्रकृति और मूल्य की दृष्टि से अधिकारिता का प्रयोग करने में सक्षम हो।
- जहाँ वाद शरीर या चल संपत्ति के प्रति दोषों के प्रतिकर के लिए हो वहाँ यदि दोष किसी एक न्यायालय की अधिकारिता के भीतर किया गया हो और प्रतिवादी किसी अन्य न्यायालय की सीमा के भीतर निवास करता है तो वादी के चयन पर वह वाद उन में से किसी भी न्यायालय के सन्मुख संस्थित किया जा सकेगा।
अन्य सभी वाद वहाँ संस्थित किए जा सकेंगे जहाँ प्रतिवादी निवास करते हैं या वाद हेतुक उत्पन्न होता है। इस मामले में जहाँ एक से अधिक प्रतिवादी हों वहाँ कोई एक प्रतिवादी वाद के संस्थित करने के समय जिस न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता के भीतर स्वेच्छा से वास्तव में निवास करता है या कारोबार करता है या अभिलाभ के लिए स्वयं काम करता है, या ऐसा नहीं है तो उन्हों ने वाद प्रस्तुत करने के लिए सहमति दे दी हो या जहाँ वाद हेतुक पूर्णतः या भागतः उत्पन्न हुआ हो।
उपरोक्त में निगमों के मामले में यह समझा जाएगा कि वह भारत में अपने एक मात्र या प्रधान कार्यालय में या किसी ऐसे वाद हेतुक के संबंध में किसी ऐसे स्थान में उत्पन्न हुआ है जहाँ उस का अधीनस्थ कार्यालय भी है ऐसे स्थान में कारोबार करता है।
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