विवाह विच्छेद पर दी जाने वाली राशि एक साथ न दें, अंतिम किस्त सारे काम पूरे होने पर ही दें।
समस्या-
मृगेश रावल ने पाटन, गुजरात से पूछा है-
मेरे बड़े भाई का विवाह फऱवरी 2012 में हुआ था। आरंभ में दो माह सब कुछ ठीक ठाक रहा, पर बाद में मेरी भाभी छोटी छोटी बातों पर घर के सभी लोगों से लड़ने झगड़ने लगी। उस के बाद उन्हों ने एक बार जहर पीने की कोशिश की तो मेरे भाई ने उन्हेंअपने मायके भेज दिया। उस के बाद मेरे माता, पिता व भाई एक साथ जा कर भाभी को वापस ले आए। पर थोड़े दिन बाद फिर से वही पुरानी समस्या उठ खड़ी हुई। उन्हो ने मेरे भाई के साथ मारपीट की और गाली गलौच करने लगी। फिर मायके चली गई और अपने आप पर पेट्रोल छिड़क कर वहाँ के पुलिस स्टेशन में चली गई। हमारे घर के सभी लोगों पर 498 ए आईपीसी का मामला बना दिया। वह तो 307 आईपीसी का मुकदमा भी बनवाना चाहती थी पर हमारी किस्मत अच्छी थी कि पुलिस उस से सहमत नहीं हुई। हम लोग अदालत से जमानत पर हैं। अब भाभी मेरे भाई से तलाक चाहती है पर सात लाख रुपया भी चाहती है। हम देने को भी तैयार हैं लेकिन हम चैक से देना चाहते हैं, वह नकद चाहती है। हमारी समझ में नहीं आ रहा है कि अब करें तो क्या करें? किसी तरह इस समस्या से निकलने का रास्ता बताएँ।
समाधान-
आप की समस्या उस स्तर पर पहुँच गई है जिस स्तर पर आप के भाई व भाभी के बीच विवाह विच्छेद ही एक मात्र रास्ता रह गया है। बात सिर्फ इतनी है कि वह अपने स्त्री-धन व स्थाई पुनर्भरण के लिए सात लाख रुपया नकद चाहती है लेकिन आप उसे चैक से देना चाहते हैं। पर मामला इतना आसान भी नहीं है।
एक तो अभी अभी आप के भाई के विवाह को एक साल होने जा रहा है। इस लिए सहमति से विवाह विच्छेद की अर्जी अब लगाई जा सकती है। विवाह विच्छेद तभी मंजूर होगा जब अर्जी लगाए जाने के छह माह के बाद आप की भाभी और भाई दोनों न्यायालय में अपना बयान दें और विवाह विच्छेद के लिए सहमत हों। इस कारण से अभी तो सात लाख रुपया पूरा देने का कोई प्रश्न नहीं है। यह तभी दिया जाना चाहिए जिस दिन तलाक की अर्जी मंजूर हो। ऐसे भी बहुत मामले सामने आए हैं जहाँ पत्नी को सारा रुपया अर्जी दाखिल करने के पहले या दाखिल करने के समय दे दिया गया। बाद में पत्नी ने विवाह विच्छेद के लिए इन्कार कर दिया। इस तरह रुपया देने पर भी तलाक नहीं हो सका। हमारा मत है कि आप के भाई और भाभी के बीच एक एग्रीमेंट लिखा जाना चाहिए जिस में यह तय हो कि दोनों साथ रहने में अक्षम हैं और गृहस्थी नहीं चला सकते इस कारण स्वेच्छा से विवाह विच्छेद करना चाहते हैं। दोनों मिल कर सहमति से विवाह विच्छेद की अर्जी दाखिल करेंगे। उस समय कुछ रुपया पत्नी को दे दिया जाएगा। कुछ रुपया तब दिया जाएगा जब पत्नी द्वारा दर्ज कराया गया 498 ए का मुकदमा खत्म हो जाएगा। उस के लिए आप को उच्च न्यायालय से अनुमति प्राप्त करनी होगी। उस में भी समय लगेगा। शेष रूपया तब दिया जाएगा जब न्यायालय विवाह विच्छेद की डिक्री पारित करेगी।
इस एग्रीमेंट की एक एक प्रति दोनों रखें और मूल प्रति को संलग्न करते हुए न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत करें उस समय सात लाख रुपयों में से पहली किस्त दे दी जाए। दूसरी किस्त 498 ए का मुकदमा खत्म हो जाने पर या विवाह विच्छेद की डिक्री पारित होने पर जो भी पहले हो तब तथा अंतिम किस्त तीसरा और अंतिम कार्य सम्पन्न होने पर दी जाए। यह नकद भी दिए जा सकते हैं और चैक से भी क्यों कि तीनों किस्तों को प्राप्त करने का सबूत किसी न किसी रूप में न्यायालय मे रहेगा इस कारण से आप को भी किसी तरह की आशंका नहीं रहेगी। यदि इस पर आप की भाभी व उस के माता पिता सहमत नहीं होते हैं तो आप के भाई को भी सहमत होने की जरूरत नहीं है।
धारा 498-ए आईपीसी के मुकदमे में सजा होना आसान नहीं है। कई वर्ष लग जाते हैं। फिर मान लो सजा हो भी जाए तो भी अपील की जा सकती है उस में भी समय लगेगा। समझौता किसी भी स्तर पर हो सकता है। आप के भाई अपनी बात पर दृढ़ रहें। हमारा अनुभव है कि आप के भाई अपनी शर्तों पर दृढञ रहेंगे तो आप की भाभी को कुछ समय लगा कर ही सही पर इन शर्तों पर मानना पड़ेगा।
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- स्त्री से उसका स्त्री-धन वापस प्राप्त करने का विचार त्याग दें।
- सहमति से तलाक में शर्तें आपस में तय की जा सकती हैं।
- बिना न्यायालय की डिक्री के हिन्दू विवाह विच्छेद संभव नहीं है।
- तलाक का आधार हो तो दूसरे पक्ष की सहमति की जरूरत नहीं।
- आपसी समझ बना कर वैवाहिक समस्या का समाधान तलाशने का प्रयत्न करें।
- जब विवाह चल सकने लायक न रहे तो सहमति से तलाक ही उचित और आसान उपाय है।
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थैंक यू…….फॉर रेप्लीइंग में इम्मीडिएटेली…..सर,क्या हम मेरा भाई खुद सामने से तलाक कि अर्जी नहीं कर सकता?