व्यक्ति के जीवनकाल में उस की स्वअर्जित संपत्ति पर किसी अन्य का कोई अधिकार नहीं।
|पसमस्या-
अशोक कुमार ने अलीगढ़ उत्तर प्रदेश से पूछा है-
मेरे पिताजी सेवानिवृत्त अध्यापक हैं। वे अपना कमाया हुआ सारा धन मेरे भाई के बेटे पर खर्च कर रहे हैं। इस बात से मुझे कोई एतराज नहीं है, लेकिन मैं चाहता हूँ कि जितना पैसा उसके ऊपर खर्च हो उतना ही मुझे भी मिले। मगर पापा ने साफ मना कर दिया है। अब मुझे क्या करना चाहिए कोई कानून है जिस से मुझे मेरा हक़ मिल सके।
समाधान-
आप की तरह बहुत लोगों को यह भ्रम है कि पिता के जीते जी उन की स्वअर्जित संपत्ति पर उन का अधिकार है। वस्तुतः किसी भी व्यक्ति की संपत्ति पर उस के सिवा किसी भी अन्य व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं है। पुत्र वयस्क होने तक, पुत्री वयस्क होने तक और उस के बाद विवाह तक पिता से भरण पोषण के अधिकारी हैं। पत्नी और निराश्रित माता पिता भी भरण पोषण के अधिकारी हैं। लेकिन इन में से किसी का भी उस व्यक्ति की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है।
आप के पिता अपनी संपत्ति को किसी भी प्रकार से खर्च कर सकते हैं। यदि वे आप को नहीं देना चाहते तो आप को उन से पाने का कोई अधिकार नहीं है। फिर वे आप के भाई के बच्चे की पढ़ाई पर खर्च कर रहे हैं, वे चाहते हैं कि वह पढ़ लिख कर कुछ बन जाए। जब कि आप को ईर्ष्या हो रही है कि आप को भी उतना ही मिलना चाहिए। ईर्ष्या से कोई अधिकार सृजित नहीं होता।
आप अपने पिता से कोई धनराशि पाने के अधिकारी नहीं हैं। आप के भाई और उस के बेटे को भी ऐसा कोई अधिकार नहीं है। बस आप के पिता उन की इच्छा से यह सब कर रहे हैं, और वे कर सकते हैं।
आप के पिता के जीवनकाल के बाद यदि आप के पिता ने अपनी संपत्ति की वसीयत नहीं की हो तो आप हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार उन की संपत्ति के हिस्से के अधिकारी हो सकते हैं।
मेरे ताऊ जी का स्वर्ग वास हो गया लेकिन उनके कोई संतान उत्पन्न नही हुई और उनकी पत्नी पहले ही स्वर्ग सिधार चुकी हैं।
अब उनके शेष पांच भाइयो की जीवित संताने वारिस होंगी या कोई और नियम होंगे।