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श्रमिकों, कर्मचारियों को भारत के कानून और न्याय व्यवस्था से किसी तरह के न्याय और राहत की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

rp_retrenchment-300x300.jpgसमस्या-
दिलीप सेठिया ने खंडवा, मध्यप्रदेश से  समस्या भेजी है कि-

मैं एक निजी कंस्ट्रेक्सन कंपनी में 4 साल से मार्केटिंग एवं फील्ड का पूरा काम देख रहा हूँ। मेरे 2 बच्चे भी हैं जो स्कूल में अध्यनरत हैं और किराये के मकान में रहते हैं। मुझे कंपनी ने 1 जनवरी 2011 को ऑफर लैटर दे कर काम पर रखा है। मुझे जिस मासिक वेतन 13625/= पर आरंभ में रखा था, वर्तमान मई 2015 में भी वही वेतन बैंक द्वारा दे रहे हैं। 1 जनवरी 2012 को मुझे वेतन बढ़ाने का बोल कर, आज तक मुझे बढ़ी हुई वेतन नहीं दी है। अब मांगता हूँ तो जवाब मिलता है, काम छोड़ दो। मेरे दोनों बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। मैँ अब क्या करूँ?

समाधान-

निजि कम्पनी में आप की नौकरी आप को दिए गए ऑफर लैटर की शर्तों पर निर्भर करती है। आप ने उस ऑफर लैटर को स्वीकार किया और वह एक संविदा में परिवर्तित हो गया। उस में यदि वेतन निश्चित है और वेतन बढ़ाने की कोई शर्त नहीं है तो आप को कोई कानूनी अधिकार नहीं है कि आप अपने वेतन को बढ़ाने की मांग करें। वैसे भी मार्केंटिंग के लोगों को औद्योगिक विवाद अधिनियम के अन्तर्गत वर्कमेन साबित करना बहुत कठिन काम है। यदि किसी तरह की कानूनी लड़ाई लड़ना चाहेंगे तो अदालतों की हालत यह है कि उन का निर्णय आप के जीवनकाल में हो जाए तो समझिए आप को सरकार ने खैरात दे दी। यूँ भी नियोजन क्षेत्र से संबंधित कानून अब कर्मचारियों के पक्ष में नहीं है। इस कारण कोई भी कानूनी उपाय आप के पास इस के लिए उपलब्ध नहीं है। यदि आप बच्चों का भविष्य खराब होने की दुहाई दे कर कुछ राहत की मांग करेंगे तो आप की विवशता देख कर नियोजक आप का वेतन बढ़ाना तो दूर काम की कमी बता कर आप का वेतन कम करने का प्रयत्न करते दिखाई देंगे।

निजि क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों को चाहिए कि वे अपना स्किल बढ़ाएँ, अपना अनुभव बढ़ाएँ और अपने काम की मांग पैदा करें। और एक कंपनी की नौकरी को अपना जीवन बनाने से बचें। आप के नियोजक हर काम अपने मुनाफे के लिए करते हैं। जिस दिन उन्हें आप की जरूरत नहीं होगी या आप से कम वेतन में आप का काम करने वाला व्यक्ति मिल जाएगा वे आप को काम से बाहर कर देंगे। इस कारण आप को निरन्तर काम की तलाश भी जारी रखनी पड़ेगी। जैसे ही आप को वर्तमान से बेहतर काम मिले आप तुरन्त छोड़ कर दूसरा नियोजन पकड़ लें।

च्छी तरह समझ लें कि भारत में श्रमिकों और कर्मचारियों के लिए कोई भी सामाजिक सुरक्षा नहीं है। उन्हें उचित वेतन देने के लिए कोई कानून नहीं है। उन के नियोजन की सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं है। यदि कोई कानून की किताब खोल कर बताए कि यह कानून है तो उस कानून के आधार पर किसी तरह की राहत पाना आसान नहीं है। एक श्रम न्यायालय में तीन कर्मचारियों की सेवा समाप्ति के विवाद 1983 से चल रहे हैं जिन्हें हम खुद देख रहे हैं। लेकिन आज तक श्रम न्यायालय उन का निर्णय नहीं कर सका। श्रम न्यायालय 32 वर्ष में जब तीन कर्मचारियों को उन के विवाद का निर्णय नहीं दे सकता तो फिर इस देश के न्यायालयों से श्रमिक कर्मचारी वर्ग न्याय की आशा नहीं कर सकता। अब तो श्रमिक वर्ग के लिए इस देश में न्याय तभी संभव होगा जब वे एक जुट हो कर देश की सत्ता को अपने और मित्र वर्गों के हाथों में ले लेंगे। वर्तमान में तो पूंजीपतियों और भूस्वामियों का बोल बाला है। इस व्यवस्था से कुछ भी आशा करना मजदूरों, किसानों, रिटेलरों आदि मेहनतकश वर्गों के लिए मूर्खता सिद्ध हो रहा है।