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संपत्ति से बेदखल करने का कोई अर्थ नहीं है, जिसे संपत्ति देना चाहें उस के नाम वसीयत कर देना पर्याप्त है।

वसीयत कब करेंसमस्या-

नोएडा, उत्तर प्रदेश से निधिकार प्रभात ने पूछा है-

र मेरे ससुर अपने पुत्र ,बहू और पौत्र को अपनी चल-अचल संपत्ति से बेदखल करना चाहते हैं, क्योकि वो उनकी इज़्ज़त नहीं करते मारपीट करते हैं। इसका कानूनी पहलू क्या है?

समाधान-

कोई भी व्यक्ति अपने जीवनकाल में अपनी संपत्ति का पूर्ण स्वामी होता है। यह संपत्ति उस व्यक्ति ने स्वयं कमाई हो या उसे किसी से उत्तराधिकार में मिली हो। उस की इस संपत्ति में जीते जी किसी को कोई अधिकार नहीं होता है। अपने जीवनकाल में वह अपनी संपत्ति को किसी को भी विक्रय, दान आदि के माध्यम से हस्तान्तरित कर सकता है। कोई भी व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण संपत्ति या उस के किसी भाग के बारे में वसीयत कर सकता है कि उस के देहान्त के उपरान्त वह संपत्ति किसे प्राप्त होगी।

दि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और वह अपनी संपत्तियों के संबंध में कोई वसीयत नहीं करता है तो वह संपत्ति उस के उत्तराधिकारियों को प्राप्त हो जाती है। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में पत्नी, पुत्र, पुत्री व माता ही किसी पुरुष के उत्तराधिकारी होते हैं। लेकिन ये अधिकार संपत्ति में तभी उत्पन्न होता है जब कि व्यक्ति की बिना वसीयत के मृत्यु हो गई हो।

ब आप समझ गए होंगे कि आप के ससुर जी की संपत्ति में किसी भी व्यक्ति को उन के जीते जी कोई अधिकार नहीं है। जब किसी को कोई अधिकार नहीं है तो उसे बेदखल करने का भी कोई अधिकार नहीं है। यदि कोई व्यक्ति यह चाहता है कि उस के देहान्त के उपरान्त उस की संपत्ति उस के कुछ उत्तराधिकारियों को प्राप्त न हो तो वह शेष उत्तराधिकारियों के नाम या जिसे वह अपनी संपत्ति को अपने जीवनकाल के उपरान्त देना चाहता है उस के नाम वसीयत कर के उसे पंजीकृत करा दे। शेष उत्तराधिकारी जिन्हें वह कुछ नहीं देना चाहता है स्वतः ही बेदखल हो जाएंगे। वसीयत किसी भी समय और उम्र में की जा सकती है क्यों कि इसे मृत्यु के पहले व्यक्ति कभी भी परिवर्तित भी कर सकता है।

प के मामले में पुत्रवधु व पौत्र तो वैसे ही उन के उत्तराधिकारी नहीं हैं। बात सिर्फ पुत्र की है तो वे पुत्र के अतिरिक्त अन्य उत्तराधिकारियों के नाम या जिसे भी वे अपनी संपत्ति देना चाहेँ उस के नाम वसीयत कर दें मसला हल हो जाएगा।

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