सरकारी कर्मचारी प्रकाशन, प्रसारण में कब और किस सीमा तक भाग ले सकते हैं?… भाग-4
| हम यहाँ कुछ दिनों से प्रवीण त्रिवेदी (प्राइमरी का मास्टर) के निम्न प्रश्नों का उत्तर दे रहे हैं –
सरकारी या अर्धसरकारी कर्मचारी या शिक्षक किस हद तक और किस तरह से देश के ज्वलंत मुद्दों पर अपनी अधिकतम सक्रियता रख सकता है ? क्या उस पर कर्मचारी होने के कारण देश के आम नागरिक को प्राप्त अधिकारों पर किसी तरह का अंकुश लग जाता है? उसे किसी भी शान्तिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार है कि नहीं? … यदि है तो किस हद तक? क्या शांतिपूर्ण अनशन, प्रदर्शन या अन्य विरोध के तरीकों पर जिला प्रशासन की पूर्वानुमति आवश्यक है? क्या वे कोई अराजनैतिक , सामाजिक, और सांस्कृतिक संगठन बना सकते हैं ….. या उसके अधीन कार्य कर सकते हैं? …….. या उसके अधीन कोई शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं ?
उत्तर –
यह प्रश्न अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि क्या सरकारी/अर्ध कर्मचारी समाचार पत्र पत्रिकाओं व अन्य प्रकाशनों के लिए काम कर सकते हैं? एक सरकारी/अर्ध सरकारी कर्मचारी अपने नियोजक की पूर्व स्वीकृति के बिना किसी समाचार पत्र या समयावधि प्रकाशन (Periodical) का पूर्ण रूप से अथवा आंशिक रूप से स्वामित्व ग्रहण नहीं कर सकता। वह ऐसे किसी प्रकाशन का संपादन या प्रबंधन भी नहीं कर सकता, और न उस में भाग ले सकता है। वह किसी भी रेडियो/टेलीविजन प्रसारण में नियोजक की पूर्वानुमति के बिना भाग नहीं ले सकता। नियुक्ति अधिकारी की पूर्व स्वीकृति के बिना वह किसी समाचार पत्र, पत्रिका में कोई लेख या पत्र अपने नाम से या बेनामी या किसी अन्य के नाम से प्रकाशनार्थ प्रेषित नहीं कर सकता। लेकिन यदि ऐसा लेख, रचना या अन्य सामग्री साहित्यिक, कलात्मक, या वैज्ञानिक प्रकार की हो, और उस में ऐसा कोई मामला न हो जिसे किसी कानून, नियम या उपनियम के अंतर्गत सरकारी कर्मचारी द्वारा प्रकट करना निषेध हो, तो सरकारी/अर्धसरकारी कर्मचारी को उस के प्रसारण, प्रकाशन के लिए पूर्वानुमति की आवश्यकता नहीं है। यदि उस लेख, रचना या अन्य सामग्री में सरकारी कर्मचारी के विभाग से सम्बन्धित मामले चाहे वे सरकारी स्रोत से तैयार किये गए हों या नहीं, तो कर्मचारी उस के लिए सरकार द्वारा एक कर्मचारी के लिए निश्चित मानदेय से अधिक मानदेय प्राप्त नहीं कर सकता।
कोई भी सरकारी/अर्धसरकारी कर्मचारी रेडियो/टेलीविजन प्रसारण या किसी प्रलेख में जो उस के नाम से, बेनामी या कल्पित नाम या किसी अन्य के नाम से प्रकाशित हो या प्रेस व मीडिया को दिए जाने वाले पत्र व्यवहार या सार्वजिनिक बयानों के या विचारों में ऐसे कथन नहीं करेगा जो –
1. केन्द्रीय या किसी राज्य सरकार की वर्तमान या हाल ही की नीति या कार्यवाही पर प्रतिकूल आलोचना का प्रभाव रखता हो;
2. केन्द्र व किसी भी राज्य सरकार के मध्य सम्बन्धों में उलझन पैदा कर सकता हो; या
3. जो क
ेन्द्रीय सरकार या किसी मित्र विदेशी सरकार के मध्य सम्बन्धों में उलझन पैदा कर सकता हो;
ेन्द्रीय सरकार या किसी मित्र विदेशी सरकार के मध्य सम्बन्धों में उलझन पैदा कर सकता हो;
लेकिन ..
उक्त नियम किसी सरकारी/अर्धसरकारी कर्मचारी द्वारा किए गए ऐसे कथनों या विचारों पर जो उस के द्वारा सरकारी पद की हैसियत से अपने कर्तव्य का समुचित पालन करने हुए प्रकट किये गए हों लागू नहीं होता।
अब तक दी गई जानकारी से यह स्पष्ट हो जाता है कि एक सरकारी/अर्ध सरकारी कर्मचारी का किन किन गतिविधियों में भाग लेना प्रतिबंधित है और वह क्या क्या गतिविधियाँ कर सकता है? आम तौर पर यह कहा जा सकता है कि राजनीतिक दलों और उन से संबंधित किसी भी गतिविधि में वह भाग नहीं ले सकता। वह ऐसी किसी भी गतिविधि में भी भाग नहीं ले सकता जो चुनी हुई सरकार को उलटने के उद्देश्य के अंतर्गत की जा रही हों। लेकिन वह इन के अलावा लगभग सभी गतिविधियों में भाग ले सकता है। शांतिपूर्ण प्रदर्शन के मामले में यही नियम प्रभावी होगा। यदि उक्त नियमों का उल्लंघन नहीं होता है तो सरकारी/अर्धसरकारी कर्मचारी अराजनैतिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक संगठन बना सकते हैं, या उसके अधीन कार्य कर सकते हैं, या उसके अधीन कोई शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर भी सकते हैं ?
शान्तिपूर्ण प्रदर्शन, अनशन और अन्य कार्यक्रमों के लिए जिला या स्थानीय प्रशासकों से अनुमति की आवश्यकता इसलिए होती है कि इन्हें नगर के महत्वपूर्ण स्थानों पर आयोजित किया जाता है। ये सभी स्थान सार्वजनिक स्थान हैं, जिन पर आयोजन के लिए पूर्वानुमति सदैव ही आवश्यक है। इस तरह के आयोजन में लोग एकत्र होते हैं, ध्वनि विस्तारक का प्रयोग होता है, यातायात पर असामान्य प्रभाव पड़ता है इस कारण से वह आयोजन कानून और व्यवस्था का प्रश्न भी बन जाता है। कानून व्यवस्था बनाए रखने और यातायात नियंत्रण के लिए प्रशासन को विशेष व्यवस्था करनी पड़ सकती है। इस कारण से इस तरह के आयोजनों के लिए स्थानीय या जिला प्रशासन की पूर्वानुमति की आवश्यकता होती है। पूर्वानुमति की यह आवश्यकता केवल कर्मचारियों के लिए ही नहीं अपितु सभी नागरिकों और संगठनों के लिए होती है।
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4 Comments
aap apni khair manaeeye !
achchhi post…
ब्लॉग जगत के जिस शख्स ने हमारीवाणी.कॉम का नामकरण किया था उससे पहले उसने ही हमारीअंजुमन.कॉम का भी नामकरण किया था.
इसमें वे ब्लॉगर भी फंसेगे, तो सरकारी नौकरी करते हैं और दिन भर अंट शंट बका करते है।
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हॉट मॉडल केली ब्रुक…
नदी : एक चिंतन यात्रा।
लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है
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एक ब्लोगर की हैसीयत से किसी सरकारी नौकरी करने वाले को किन किन बातों का ख्याल रखना चाहिए? .