सरकारी कर्मचारी प्रकाशन, प्रसारण में कब और किस सीमा तक भाग ले सकते हैं?… भाग-4
| हम यहाँ कुछ दिनों से प्रवीण त्रिवेदी (प्राइमरी का मास्टर) के निम्न प्रश्नों का उत्तर दे रहे हैं –
सरकारी या अर्धसरकारी कर्मचारी या शिक्षक किस हद तक और किस तरह से देश के ज्वलंत मुद्दों पर अपनी अधिकतम सक्रियता रख सकता है ? क्या उस पर कर्मचारी होने के कारण देश के आम नागरिक को प्राप्त अधिकारों पर किसी तरह का अंकुश लग जाता है? उसे किसी भी शान्तिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार है कि नहीं? … यदि है तो किस हद तक? क्या शांतिपूर्ण अनशन, प्रदर्शन या अन्य विरोध के तरीकों पर जिला प्रशासन की पूर्वानुमति आवश्यक है? क्या वे कोई अराजनैतिक , सामाजिक, और सांस्कृतिक संगठन बना सकते हैं ….. या उसके अधीन कार्य कर सकते हैं? …….. या उसके अधीन कोई शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं ?
उत्तर –
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1. केन्द्रीय या किसी राज्य सरकार की वर्तमान या हाल ही की नीति या कार्यवाही पर प्रतिकूल आलोचना का प्रभाव रखता हो;
2. केन्द्र व किसी भी राज्य सरकार के मध्य सम्बन्धों में उलझन पैदा कर सकता हो; या
3. जो क
ेन्द्रीय सरकार या किसी मित्र विदेशी सरकार के मध्य सम्बन्धों में उलझन पैदा कर सकता हो;
ेन्द्रीय सरकार या किसी मित्र विदेशी सरकार के मध्य सम्बन्धों में उलझन पैदा कर सकता हो;
लेकिन ..
उक्त नियम किसी सरकारी/अर्धसरकारी कर्मचारी द्वारा किए गए ऐसे कथनों या विचारों पर जो उस के द्वारा सरकारी पद की हैसियत से अपने कर्तव्य का समुचित पालन करने हुए प्रकट किये गए हों लागू नहीं होता।
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शान्तिपूर्ण प्रदर्शन, अनशन और अन्य कार्यक्रमों के लिए जिला या स्थानीय प्रशासकों से अनुमति की आवश्यकता इसलिए होती है कि इन्हें नगर के महत्वपूर्ण स्थानों पर आयोजित किया जाता है। ये सभी स्थान सार्वजनिक स्थान हैं, जिन पर आयोजन के लिए पूर्वानुमति सदैव ही आवश्यक है। इस तरह के आयोजन में लोग एकत्र होते हैं, ध्वनि विस्तारक का प्रयोग होता है, यातायात पर असामान्य प्रभाव पड़ता है इस कारण से वह आयोजन कानून और व्यवस्था का प्रश्न भी बन जाता है। कानून व्यवस्था बनाए रखने और यातायात नियंत्रण के लिए प्रशासन को विशेष व्यवस्था करनी पड़ सकती है। इस कारण से इस तरह के आयोजनों के लिए स्थानीय या जिला प्रशासन की पूर्वानुमति की आवश्यकता होती है। पूर्वानुमति की यह आवश्यकता केवल कर्मचारियों के लिए ही नहीं अपितु सभी नागरिकों और संगठनों के लिए होती है।
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4 Comments
aap apni khair manaeeye !
achchhi post…
ब्लॉग जगत के जिस शख्स ने हमारीवाणी.कॉम का नामकरण किया था उससे पहले उसने ही हमारीअंजुमन.कॉम का भी नामकरण किया था.
इसमें वे ब्लॉगर भी फंसेगे, तो सरकारी नौकरी करते हैं और दिन भर अंट शंट बका करते है।
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हॉट मॉडल केली ब्रुक…
नदी : एक चिंतन यात्रा।
लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है
मैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें
कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है.. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है.
मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए..मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ.
एक ब्लोगर की हैसीयत से किसी सरकारी नौकरी करने वाले को किन किन बातों का ख्याल रखना चाहिए? .